जम्मू-कश्मीर से चिंताजनक खबर सामने आई है कि घाटी में आने वाले समय में पानी का संकट गहरा सकता है। जलवायु परिवर्तन ने जम्मू-कश्मीर को इस कदर प्रभावित किया है कि इन सर्दियों में राज्य में बहुत कम बर्फबारी हुई है। कम बर्फबारी और लंबे समय तक सूखे के कारण कश्मीर घाटी में जलाशयों के भरने में देरी हो रही है। इसका असर ये हुआ है कि कश्मीर की जीवन रेखा झेलम सहित ज्यादातर नदियां 'शून्य स्तर' से नीचे बह रही हैं।

 

कश्मीर घाटी में सिर्फ कम बर्फबारी ही नहीं बल्कि बहुत कम बारिश भी दर्ज की गई है। पिछले 45 दिनों में पहाड़ों और ऊंची चोटियों से अपेक्षा से बहुक कम बर्फ पिघलने और कम बारिश होने की वजह से नदियों का जलस्तर लगातार घट रहा है। 

 

माइनस में झेलम का जलस्तर 

 

पुलवामा में संगम पर झेलम का जलस्तर माइनस 1.01 फीट तक पहुंच गया है, जबकि राम मुंशी बाग में पहले जलस्तर 3.52 फीट था, जो अशाम में गिरकर 0.75 फीट तक आ पहुंचा है। जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी नदियों में से एक चेनाब नदी का जलस्तर खतरनाक तरीके से नीचे चला गया है। पानी की कमी की वजह से चेनाब घाटी में ही नदी की तलहटी की रेत दिखाई देने लगी है। अचबल झरना पूरी तरह सूख चुका है। 

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पर्यावरणविद जम्मू-कश्मीर के इस जल संकट को सिर्फ जलवायु परिवर्तन का नतीजा नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि जम्मू-कश्मीर में पिछले सालों में जिस तरीके से विकास हो रहा है वह जम्मू-कश्मीर के साथ में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए घातक है। अगर इसी तरह से पहाड़ों में विकास के नाम पर दोहन होता रहा है स्थितियां इससे भी बदतर हो सकती हैं। 

 

'खबरगांव' से क्लाइमेट एक्टिविस्ट ने की बात

 

कश्मीर के क्लाइमेट एक्टिविस्ट और आरटीआई कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर भट्ट ने 'खबरगांव' से बात करते हुए कहा कि जल संकट, कम बर्फबारी और कम बारिश सिर्फ कश्मीर घाटी तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह समस्या जम्मू, हिमाचल, उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी राज्यों में भी है।  

 

राजा मुजफ्फर इन सबके पीछे जलवायु परिवर्तन को तो मानते ही हैं, लेकिन वह इससे भी ज्यादा दोष स्थानीय फैक्टर्स को मानते हैं। कश्मीर में लोकल फैक्टर्स इतने ज्यादा हावी हैं कि किश्तवाड़, रामबन, डोडा, हंदवाड़ा जिलों में हालत खराब है। उन्होंने कहा, 'घाटी में अवैध माइनिंग, डैम, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, हाईवेज़, रेलवे प्रोजेक्ट पहाड़ों को तोड़कर बनाए जा रहे हैं। राज्य का प्रशासन ऐसा विकास कर रहा है कि यह बहुत दिन तक नहीं चल सकता।'

'100-150 सालों में तबाही हो सकती है'

 

उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में या अन्य पहाड़ी राज्यों में इस तरह का विकास अगले 40-50 सालों तक तो चल सकता है, हम कुछ समय तक इसका फायदा उठा सकते हैं। लेकिन आने वाले 100-150 सालों में यह तबाही लाएगा। पहाड़ों को अवैध तरीकों से तोड़कर पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जो होने वाली बर्फबारी, बारिश और नदियों के बहाव पर गहरा असर डाल रहा है।' 

 

घाटी में बोरवेल, हैंडपाइप के स्रोत सूख गए हैं। इसकी वजह बताते हुए राजा मुजफ्फर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में नदियों का जलस्तर गिरा है। नदियों के किनारे 500 मीटर के क्षेत्र में जमीन के अंदर पानी की नसें (स्रोत) होती हैं। इन स्रोतों से बोरवेल, हैंडपाइप से भी पानी निकालकर लोगों को पाइप द्वारा उनके घरों में भेजा जाता है  

 

20 हजार लोगों की प्यास बुझाने वाली नदी सूखी

 

उन्होंने बताया कि रोमुशी नदी झेलम जैसी बड़ी नदी की एक एक छोटी सी सहायक नदी है, लेकिन अब रोमुशी में जल प्रवाह तो दूर यह नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। इससे पहले रोमुशी नदी कश्मीर के 15 से 20 हजार लोगों की रोजाना प्यास बुझाती थी और इसके पानी से रोजमर्रा की अन्य जरूरतें पूरी होती थीं। मगर अब रोमुशी से पानी की सप्लाई बंद है। 

 

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राजा मुजफ्फर ने आगे बताया कि इसी तरह से राज्य की अन्य नदियों में अवैध खनन हो रहा है। प्रशानन से दो दिन के लिए खनन की अनुमति मिलती है, लेकिन धुनकुबेर और पावरफुल लोग दो-दो महीनें तक नदियों और पहाड़ों से अवैध खनन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन में यहां नियमों की लगातार अंदेखी हो रही है।

 

फरवरी में जून-जुलाई जैसी गर्मी

 

उन्होंने कहा कि इन सबकी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) में शिकायत की गई है। प्रधिकरण की टीम ने घाटी में आकर अवैध खनन वाली जगहों का दौरा भी किया है और अवैध धंधे करने वालों से कागज मांगे हैं। राजा ने कहा कि इन्हीं सबकी वजह से फरवरी में जून-जुलाई जैसी गर्मी का अहसास हो रहा है। यह सब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहा है। उन्होंने  कहा कि घाटी में ऐसी स्थिती पहले कभी देखने को नहीं मिली।