दुनिया की अर्थव्यवस्था में एक नया शब्द तेजी से उभर रहा है – सिल्वर इकोनॉमी। इसका आशय 60 वर्ष और उससे ऊपर की आयु वाले नागरिकों की ज़रूरतों, सेवाओं और उत्पादों से जुड़ी अर्थव्यवस्था से है। जैसे-जैसे समाज बूढ़ा होता जा रहा है, वैसे-वैसे इसका आर्थिक महत्व भी बढ़ता जा रहा है। भारत जैसे देशों में जहां अब तक 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' यानी युवा आबादी को विकास की ताकत माना जाता था, वहीं अब 'सिल्वर डिविडेंड' भी एक नई वास्तविकता बनकर सामने आ रहा है। बुजुर्ग वर्ग की बढ़ती संख्या और उनकी आवश्यकताओं ने उद्योग, वित्तीय सेवाओं और स्वास्थ्य क्षेत्र में नए अवसर खोल दिए हैं।
संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या रिपोर्ट (World Population Prospects 2022) के अनुसार, 2050 तक दुनिया की लगभग 16% आबादी 65 वर्ष से अधिक होगी। 2020 में यह संख्या केवल 9% थी। जापान, जर्मनी और इटली जैसे देशों में पहले से ही 20% से अधिक आबादी वृद्ध हो चुकी है। इन देशों में बुजुर्गों के लिए हेल्थकेयर, असिस्टेड लिविंग, पेंशन प्रोडक्ट्स, बुजुर्गों की यात्रा सेवाएं और टेक्नोलॉजी-आधारित सुविधाओं का विशाल उद्योग खड़ा हो चुका है। जापान में 'एजिंग बिज़नेस' का बाजार 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का है।
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अमेरिका और यूरोप में भी सीनियर सिटीज़न को ध्यान में रखकर हेल्थ इंश्योरेंस, रिटायरमेंट फंड्स, टेलीहेल्थ सेवाएं और कम्युनिटी-लिविंग टाउनशिप तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में 'लॉन्जिविटी इकॉनमी' (Longevity Economy) एक नए विकास इंजन के रूप में देखी जा रही है।
भारत में बदलती डेमोग्राफी
भारत में भी तस्वीर तेजी से बदल रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार 60+ आयु वर्ग की आबादी 10.4 करोड़ थी, जो 2025 तक लगभग 17 करोड़ और 2050 तक 34 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। यानी 2050 तक भारत की हर पांचवी आबादी बुजुर्ग होगी।
नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक भारत में बुजुर्गों का अनुपात लगभग 12% हो जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में यह वृद्धि और तेज़ होगी क्योंकि अधिकांश युवाओं का शहरी पलायन बुजुर्गों को गांवों में अकेला छोड़ रहा है। यह बदलती तस्वीर सरकार और समाज के सामने नई चुनौतियां और नए अवसर दोनों लेकर आ रही है।
हेल्थ सेक्टर है सबसे बड़ा बाजार
सिल्वर इकोनॉमी का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा स्वास्थ्य सेवाएं हैं। बुजुर्गों को हृदय रोग, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, अल्जाइमर और कैंसर जैसी बीमारियों से अधिक जूझना पड़ता है। इसके चलते जेरियाट्रिक हेल्थकेयर, नर्सिंग होम, डे-केयर सेंटर और होम हेल्थकेयर सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है।
टेलीमेडिसिन और डिजिटल हेल्थ स्टार्टअप्स भी इसमें योगदान दे रहे हैं। 2022 में भारत का हेल्थटेक सेक्टर लगभग 5 बिलियन डॉलर का था और अनुमान के मुताबिक इसमें सालाना 40% की दर से वृद्धि हो रही है। बुजुर्गों के लिए खास वियरेबल डिवाइस (जैसे स्मार्ट वॉच, हेल्थ मॉनिटरिंग गैजेट्स) भी लोकप्रिय हो रहे हैं। इसके अलावा हेल्थ केयर सेंटर जैसे स्टार्टअप्स के क्षेत्र में भी भारी संभावनाएं हैं।
फाइनेंशियल सर्विस
भारत में अधिकांश बुजुर्ग आर्थिक रूप से अब भी असुरक्षित हैं। आंकड़ों के मुताबिक, केवल 20% बुजुर्ग आबादी ही पेंशन या रिटायरमेंट बेनिफिट्स प्राप्त करती है। यही वजह है कि बुजुर्गों के लिए वित्तीय सेवाओं का बाजार तेजी से विकसित हो रहा है।
बैंकों और फिनटेक कंपनियों ने सीनियर-फ्रेंडली योजनाएं शुरू की हैं, जैसे – वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS), अटल पेंशन योजना, बीमा कंपनियों द्वारा बनाए गए विशेष हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स और रिवर्स मॉर्गेज जैसी स्कीम्स। इसके अलावा बुजुर्गों को ध्यान में रखकर विशेष म्यूचुअल फंड्स और रिटायरमेंट योजनाएं भी विकसित की जा रही हैं।
डिजिटल सेवाएं
भारत की सिल्वर इकोनॉमी में डिजिटल सेवाएं तेजी से अहम भूमिका निभा रही हैं और बुजुर्गों के जीवन को सरल और सुरक्षित बना रही हैं। आज AI और IT आधारित उपकरण बुजुर्गों की स्वास्थ्य निगरानी, दवाइयों की समय पर याद दिलाने और आपातकालीन अलर्ट भेजने में मदद कर रहे हैं। इससे न केवल उनकी स्वास्थ्य सुरक्षा मजबूत हो रही है बल्कि परिवार के सदस्यों को भी मानसिक सुकून मिल रहा है।
टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के बुजुर्गों के लिए लाभकारी साबित हो रहे हैं, क्योंकि इनके जरिए वे विशेषज्ञ डॉक्टरों तक आसानी से पहुंच पा रहे हैं। इसी तरह, डिजिटल बैंकिंग सेवाएं भी तेजी से बुजुर्गों के अनुकूल बनाई जा रही हैं, जिनमें सरल इंटरफेस और विशेष यूजर-फ्रेंडली ऐप शामिल हैं।
इसके अलावा, ऑनलाइन कम्युनिटी प्लेटफॉर्म उन बुजुर्गों के लिए उभर रहे हैं जो अकेलेपन और सामाजिक अलगाव से जूझ रहे हैं। ये प्लेटफॉर्म उन्हें सामाजिक जुड़ाव, मानसिक सहारा और सक्रिय जीवनशैली अपनाने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
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रियल एस्टेट और कम्युनिटी लिविंग
भारत में अब 'सीनियर-फ्रेंडली' हाउसिंग प्रोजेक्ट्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स 'रिटायरमेंट होम्स' या 'सीनियर लिविंग कम्युनिटी' विकसित कर रहे हैं, जिनमें हेल्थकेयर, सुरक्षा और मनोरंजन की सुविधाएं शामिल होती हैं। ASSOCHAM की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2025 तक सीनियर लिविंग हाउसिंग का बाजार 12 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा।
रोजगार और सेकंड करियर
सेवानिवृत्ति के बाद भी काम करने की इच्छा रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। भारत में कई कंपनियां बुजुर्गों को परामर्शदाता (Consultant), शिक्षक और प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त कर रही हैं।
NASSCOM की रिपोर्ट बताती है कि 'गिग इकॉनमी' में भी बुजुर्गों की भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है। यह न केवल उनकी आय को बढ़ाता है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जुड़ाव में भी मदद करता है।
संभावित बाजार आकार
नीति आयोग ने 2021 में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत की सिल्वर इकोनॉमी अगले कुछ वर्षों में 100 बिलियन डॉलर से अधिक का बाजार बन सकती है। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा कई ट्रिलियन डॉलर का है।
विश्व बैंक के अनुसार, अगर बुजुर्गों की जरूरतों को व्यवस्थित ढंग से एड्रेस किया जाए, तो 2050 तक यह क्षेत्र भारत की जीडीपी में 1.5% तक का योगदान कर सकता है।
क्या हैं चुनौतियां?
हालांकि बुजुर्गों से जुड़े सेवाओं और बाजार में आर्थिक अवसर काफी बड़े हैं, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां भी मौजूद हैं। सबसे बड़ी समस्या आर्थिक सुरक्षा की कमी है, क्योंकि अधिकांश बुजुर्गों के पास कोई स्थायी आय स्रोत नहीं होता और वे पेंशन या बचत पर ही निर्भर रहते हैं।
इसके अलावा, ग्रामीण-शहरी असमानता भी एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएं और डिजिटल सुविधाएं मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों के बुजुर्ग इनसे वंचित रह जाते हैं।
एक और बड़ी चुनौती डिजिटल गैप है। तकनीकी साक्षरता की कमी के कारण बुजुर्ग स्मार्टफोन, ऐप्स और ऑनलाइन सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाते, जिससे वे नई सुविधाओं से पीछे रह जाते हैं। इसके साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
अकेलापन, अवसाद और सामाजिक अलगाव कई बुजुर्गों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे उनका जीवन कठिन हो जाता है। इन चुनौतियों का समाधान किए बिना बुजुर्गों के लिए विकसित की जा रही सेवाओं और अवसरों का पूरा लाभ उठाना मुश्किल होगा।
सरकार की नीतियां
भारत सरकार ने बुजुर्गों के जीवन को सुरक्षित, सम्मानजनक और सुविधाजनक बनाने के लिए कई योजनाएं और नीतियां लागू की हैं। नेशनल सीनियर सिटीजन पॉलिसी 2011 के अंतर्गत बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी जरूरतों की व्यवस्था पर जोर दिया गया है।
इसका उद्देश्य वृद्धावस्था में जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। वहीं, अटल पेंशन योजना खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए बनाई गई है, जिससे उन्हें वृद्धावस्था में न्यूनतम पेंशन मिल सके और उनकी आर्थिक सुरक्षा बनी रहे।
इसके अलावा, सरकार ने प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY) शुरू की है, जो 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को सुरक्षित निवेश और नियमित आय का विकल्प प्रदान करती है। इस योजना से वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय स्थिरता मिलती है।
साथ ही, सरकार ने बुजुर्गों की देखभाल और सहायता के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन और डे-केयर सेंटर स्थापित किए हैं, जिससे उन्हें तुरंत मदद, परामर्श और सामाजिक सहयोग मिल सके। इन नीतियों और योजनाओं के माध्यम से सरकार का प्रयास है कि वरिष्ठ नागरिक समाज में सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन व्यतीत कर सकें।
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स्टार्टअप्स की भूमिका
भारत में स्टार्टअप्स तेजी से बुजुर्गों को केंद्र में रखकर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और उनकी जरूरतों के अनुसार नए समाधान विकसित कर रहे हैं। हेल्थटेक कंपनियां घर पर डॉक्टर और नर्स की सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं, साथ ही टेलीमेडिसिन के जरिए वरिष्ठ नागरिकों को बिना अस्पताल जाए परामर्श और इलाज की सुविधा मिल रही है। वहीं, फिनटेक स्टार्टअप्स बुजुर्गों के लिए सरल और सुरक्षित डिजिटल बैंकिंग विकल्प विकसित कर रहे हैं, जिससे वे आसानी से वित्तीय लेन-देन कर सकें।
इसके अलावा, इंश्योरटेक स्टार्टअप्स बुजुर्गों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कस्टमाइज्ड हेल्थ इंश्योरेंस योजनाएं पेश कर रहे हैं, ताकि उन्हें उचित स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सके। साथ ही, सीनियर केयर स्टार्टअप्स जीवनशैली, फिटनेस और कम्युनिटी एंगेजमेंट पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे बुजुर्ग न केवल स्वस्थ रह सकें बल्कि सामाजिक रूप से भी सक्रिय बने रहें। इस तरह ये स्टार्टअप्स बुजुर्गों की जीवनशैली को बेहतर और सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत में सिल्वर इकोनॉमी केवल एक सामाजिक आवश्यकता ही नहीं, बल्कि एक बड़ा आर्थिक अवसर भी है। यह क्षेत्र स्वास्थ्य, वित्त, रियल एस्टेट और डिजिटल सेवाओं में नई संभावनाएं पैदा कर सकता है। लेकिन इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र और समाज को मिलकर एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें बुजुर्गों को गरिमा, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जीने का अवसर मिले।
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अगर भारत समय रहते इस दिशा में निवेश करता है, तो सिल्वर इकोनॉमी अगले दो दशकों में न केवल करोड़ों बुजुर्गों की जिंदगी बदल सकती है बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि में भी अहम योगदान दे सकती है।
