भारत तेजी से शहरीकरण के दौर से गुजर रहा है। अनुमान है कि 2030 तक भारत की शहरी आबादी कुल जनसंख्या का 40% से अधिक हो जाएगी। इस बढ़ती शहरी आबादी की भोजन संबंधी जरूरतों को पूरा करना एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है, खासकर जब ताज़ी, सुरक्षित और कीटनाशक-मुक्त सब्जियों की मांग दिन प्रति दिन बढ़ रही है। पारंपरिक कृषि मॉडल शहरों में इस मांग को पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि भूमि की उपलब्धता और प्रदूषण जैसे मुद्दे इसके आड़े आते हैं। ऐसे में 'वर्टिकल फार्मिंग' एक वैकल्पिक समाधान के रूप में उभर रही है। इस तकनीक के जरिए खेती क्षैतिज (Horizontal) ज़मीन के बजाय ऊर्ध्वाधर (Vertical) दिशा में इमारतों, कंटेनरों या टावरों के भीतर किया जाता है, जिससे कम स्थान में अधिक उत्पादन संभव हो पाता है।
वर्टिकल फार्मिंग एक नियंत्रित वातावरण (Controlled Atmosphere) वाली कृषि तकनीक है जिसमें मिट्टी के बजाय हाइड्रोपोनिक्स (nutrient-rich पानी) या एयरोपोनिक्स (हवा में न्यूट्रिएंट रिच फुहार) का प्रयोग किया जाता है। यहां पौधों को LED लाइट्स की मदद से सूरज की रोशनी के बिना उगाया जाता है। पूरी प्रणाली सेंसर, तापमान नियंत्रण, नमी, CO₂ मॉनिटरिंग और ऑटोमेटेड सिंचाई पर आधारित होती है। यह प्रणाली 90% तक कम पानी का उपयोग करती है और लगभग शून्य कीटनाशकों के साथ काम करती है। शहरी उपभोक्ताओं को इससे ताजे, हेल्दी और रसायन-मुक्त उत्पाद मिलते हैं।
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लागत ज्यादा
अब बात करें लागत की। वर्टिकल फार्मिंग की शहरी इकाई के निर्माण और संचालन की लागत पारंपरिक खेती से अधिक होती है, लेकिन इसके साथ लाभ और नियंत्रण भी अधिक होते हैं। एक सामान्य वर्टिकल फार्मिंग यूनिट में प्रति वर्ग मीटर लागत ₹3,500 से ₹6,000 तक आती है (फ्लैट रूफ हाइड्रोपोनिक सेटअप के लिए)। इसमें स्ट्रक्चर बनाने के लिए, ग्रो बेड्स, LED ग्रो लाइट्स, पंप, पानी की रीसाइक्लिंग व्यवस्था और बेसिक सेंसर शामिल होते हैं। उन्नत सेटअप (IT आधारित और क्लाइमेट कंट्रोल युक्त) में लागत ₹10,000–₹12,000 प्रति वर्ग मीटर तक जा सकती है। दूसरी ओर, पारंपरिक क्षैतिज खेती की लागत आम तौर पर ₹600–₹1,000 प्रति वर्ग मीटर (₹60,000–₹1 लाख प्रति एकड़) के बीच होती है। इसमें भी लागत मिट्टी की उर्वरता, सिंचाई व्यवस्था, बीज और श्रम पर निर्भर करती है। हालांकि वर्टिकल फार्मिंग की लागत अधिक है, लेकिन इसके रिटर्न अधिक सटीक, तेज़ और सस्टेनेबल होते हैं, खासकर शहरी वातावरण में।
सब्जियों की क्या कीमत?
ताज़ी सब्जियों की बात करें तो वर्टिकल फार्मिंग में एक किलो टमाटर उगाने की औसत लागत ₹18 से ₹22 के बीच आती है। इसमें बिजली, LED ग्रो लाइट्स, पानी की रीसायक्लिंग, न्यूट्रिएंट सॉल्यूशन और श्रम का खर्च शामिल है। वहीं पारंपरिक खेती में एक किलो टमाटर की उत्पादन लागत ₹5 से ₹7 के बीच होती है, क्योंकि उसमें प्राकृतिक धूप और मिट्टी का उपयोग होता है और लागत मुख्यतः श्रम, खाद और सिंचाई पर निर्भर करती है।
लेकिन वर्टिकल फार्मिंग से उगाया गया टमाटर कीटनाशक-मुक्त और शहर के पास ही तैयार होता है, इसलिए उसका बाजार मूल्य ₹35 से ₹50 प्रति किलो तक हो सकता है, जबकि पारंपरिक टमाटर का मूल्य ₹15 से ₹25 प्रति किलो के बीच रहता है।
पालक और अन्य पत्तेदार सब्जियों की बात करें तो वर्टिकल फार्मिंग में एक किलो पालक उगाने की लागत ₹20 से ₹25 आती है, जबकि वही पालक पारंपरिक खेतों में ₹5 से ₹10 प्रति किलो की लागत से तैयार होती है। लेकिन वर्टिकल पालक को pesticide-free, साफ और डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर मार्केट में ₹30 से ₹60 प्रति किलो के बीच आसानी से बेचा जा सकता है।
तुलसी जैसी औषधीय पौधों की खेती वर्टिकल फार्मिंग में ₹40 से ₹50 प्रति किलो की लागत से होती है, जबकि पारंपरिक पद्धति में इसकी लागत ₹15 से ₹20 होती है। चूंकि तुलसी का औषधीय और आयुर्वेदिक महत्व है, वर्टिकल फार्म में उगाई गई तुलसी की कीमत ₹100 से ₹150 प्रति किलो तक पहुंच सकती है, खासकर ऑनलाइन या फार्मेसी चैनलों में।
जहां तक बात है लेट्यूस, सलाद पत्तियों और विदेशी सब्जियों की, ये भारत में पारंपरिक तौर पर बड़े पैमाने पर नहीं उगाई जातीं। वर्टिकल फार्मिंग के ज़रिए इनकी उत्पादन लागत ₹60 से ₹80 प्रति किलो आती है, लेकिन इनकी बिक्री ₹120 से ₹200 प्रति किलो तक की जाती है, क्योंकि इनका उपभोग मुख्य रूप से रेस्तरां, होटलों और हेल्थ-कॉन्शियस ग्राहकों में होता है।
अनाज की कीमत क्या?
अब अगर हम अनाज जैसे गेहूं, चावल और मक्का की बात करें, तो वर्टिकल फार्मिंग इनके लिए आर्थिक रूप से बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। वर्टिकल सेटअप में गेहूं उगाने की लागत ₹100 से ₹120 प्रति किलो तक आती है, जबकि वही गेहूं पारंपरिक खेती में ₹12 से ₹18 प्रति किलो में तैयार होता है। गेहूं का बाजार मूल्य ₹20 से ₹25 प्रति किलो है, ऐसे में वर्टिकल फार्मिंग पूरी तरह से घाटे का सौदा बन जाती है। चावल या धान के लिए वर्टिकल फार्मिंग की लागत ₹90 से ₹110 प्रति किलो के बीच होती है, जबकि पारंपरिक खेती में यह लागत ₹15 से ₹25 के बीच आती है। चावल का बाजार मूल्य ₹25 से ₹40 होता है, इसलिए वर्टिकल तकनीक से चावल या गेहूं जैसे फसलों का उत्पादन व्यावसायिक रूप से अव्यवहारिक है।
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इकोसिस्टम मौजूद
भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद और पुणे वर्टिकल फार्मिंग के लिए उपयुक्त केंद्र बन सकते हैं। मुंबई में छतों और पुरानी मिलों का दोबारा उपयोग किया जा सकता है, जबकि बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे तकनीकी शहरों में स्टार्टअप इकोसिस्टम पहले से मौजूद है। दिल्ली जैसे महानगरों में प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा की स्थिति वर्टिकल फार्मिंग को और अधिक प्रासंगिक बनाती है। ‘UrbanKisaan’, ‘Nature’s Miracle’, ‘Krishijagran’ और ‘Trishula Farms’ जैसी कई कंपनियां पहले से इन शहरों में हाइड्रोपोनिक खेती चला रही हैं।
अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखें तो एक वर्टिकल फार्म की स्थापना की प्रारंभिक लागत अधिक होने के बावजूद यह प्रति वर्ष 25–40% तक रिटर्न देने में सक्षम है। हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, सलाद पत्तियां, तुलसी आदि फसलें 30–40 दिनों के भीतर कटाई योग्य होती हैं। एक सामान्य 100 वर्ग मीटर वर्टिकल फार्म से प्रति माह ₹40,000 से ₹80,000 तक की बिक्री हो सकती है, यदि सही तरीके से मार्केटिंग की जाए। वहीं पारंपरिक खेती में मौसम, कीट, मिट्टी और सिंचाई की समस्याओं के चलते उत्पादन और मुनाफे में अनिश्चितता अधिक रहती है। वर्टिकल फार्मिंग में पूरे वर्ष कई फसल चक्र संभव हैं, जो उत्पादन में स्थायित्व देता है।
सरकार भी दे रही बढ़ावा
भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें भी वर्टिकल फार्मिंग को प्रोत्साहित कर रही हैं। ‘National Mission on Sustainable Agriculture (NMSA)’ और ‘Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY)’ जैसी योजनाएं किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में हाइड्रोपोनिक फार्मिंग पर 50–75% तक की सब्सिडी दी जा रही है। इसके अलावा, ‘Startup India’ और ‘Atal Innovation Mission’ के तहत भी एग्री-टेक स्टार्टअप्स को अनुदान और प्रशिक्षण मिल रहा है।
हालांकि इस तकनीक के रास्ते में कुछ चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है – ऊंची प्रारंभिक लागत और तकनीकी प्रशिक्षण की कमी। छोटे उद्यमियों और किसानों के लिए ₹3,000–6,000 प्रति वर्ग मीटर की लागत वहन करना आसान नहीं होता। इसके अलावा, बिजली की निर्भरता, LED उपकरणों की लागत, क्लाइमेट कंट्रोल के लिए HVAC सिस्टम और पानी की निरंतर आपूर्ति जैसी सुविधाएं जरूरी हैं। वहीं दूसरी ओर, शहरों में बिल्डिंग से जुड़े कानून, छतों के उपयोग पर कानूनी स्पष्टता और जल निकासी जैसी व्यवस्थाएं भी सीमित हैं।
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इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को शहरी वर्टिकल फार्मिंग को 'ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर' की मान्यता देनी चाहिए, ताकि हाउसिंग सोसाइटीज़, मॉल्स, स्कूल और अस्पताल जैसी संस्थाएं इसे अपनाने को तैयार हों। लघु और मध्यम उद्यमों के लिए लीज़ या EMI मॉडल पर यूनिट उपलब्ध कराना चाहिए, और स्किल इंडिया के तहत हाइड्रोपोनिक्स एवं एग्रो टेक्नोलॉजी पर प्रशिक्षण शुरू करना होगा।
