आगरा… नाम सुनते ही ताजमहल याद आता है न? अगर हां तो ठहर जाइए जनाब।। यहां एक और नायाब चीज़ है- दीप्ति शर्मा।। नाम तो सुना ही होगा और बड़े गर्व से सुना होगा क्योंकि ताजमहल के शहर से निकली इस भारत की बेटी ने वह कर दिखाया है जो 52 सालों के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। माने जब हाथ में बल्ला आया तो फिफ्टी ठोक दी ठोक दी और जब गेंद पंजा मार दिया और ऐसा पंजा मारा कि साउथ अफ्रीका की टीम चारो खाने चित्त हो गई। नतीजा- भारत बन गया विश्व चैंपियन।

 

अब ज़रा सोचिए कि दीप्ति शर्मा क्या ही गज़ब की खिलाड़ी हैं- फाइनल में 50 रन और 5 विकेट। पूरे टूर्नामेंट में 22 विकेट, माने टॉप विकेट टेकर। रन भी 215 बनाए हैं। नतीजा- मैन ऑफ द सीरीज़। वैसे आज हम जिस चैंपियन दीप्ति शर्मा की इतनी तारीफ कर रहे है, उनका जीवन इतना आसान रहा नहीं है। उन्होंने बहुत संघर्षों से खुद को एक क्रिकेटर बनाया और आज देश के लिए खेल रही हैं।

भाई का बलिदान

 

आगरा में एक इलाका है- शाहगंज, यहां की अवधपुरी कॉलोनी में  दीप्ति पली-बढ़ीं हैं। उनकी कॉलोनी के एंट्री गेट पर ‘अर्जुन अवॉर्डी क्रिकेटर दीप्ति शर्मा मार्ग’ का बोर्ड लगा है। जिससे उनकी मेहनत और कामयाबी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मगर क्या आप जानते हैं कि दीप्ति के क्रिकेटर बनने की कहानी किसी बड़े कोचिंग कैंप से शुरू नहीं हुई, बल्कि एक दिन मैदान के बाहर एक साधारण से थ्रो से शुरू हुई। दरअसल हुआ क्या कि दीप्ति के भाई सुमित शर्मा उत्तर प्रदेश के लिए स्टेट लेवल पर क्रिकेट खेलते ही थे। ज़ाहिर है दीप्ति को भी बचपन से क्रिकेट में दिलचस्पी होगी। ऐसे में वह अपने भाई को क्रिकेट खेलते देखने जाया करती थीं जबकि उनकी मां मना करती थीं। कभी-कभी तो दरवाज़ा बंद कर देती थीं, फिर भी दीप्ति किसी तरह छिपकर बाहर निकल जाती थीं और अपने भाई के मैच देखती थीं।

 

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शाम को लौटने पर वह अपने भाई को मैच की पूरी जानकारी देती थीं, जैसे कि कौन सा कैच छूटा और कहां मैच जीता जा सकता था। भाई ने देखा कि दीप्ति को दिलचस्पी है क्रिकेट में तो उन्होंने मां-बाप से बात की और उन्हें ग्राउंड पर ले गए। यह तब की बात है जब दीप्ति की उम्र महज़ सात या आठ साल रही होगी। एक दिन दीप्ति एकलव्य स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स की सीढ़ियों पर बैठी थीं, जहां उनके भाई प्रैक्टिस करते थे। तभी एक गेंद उनकी तरफ़ आई- दीप्ति ने बस ऐसे ही उस गेंद को उठाया और बिना कुछ सोचे सीधे स्टंप्स पर थ्रो मार दिया, जो कि डायरेक्ट हिट लगा। यह थ्रो लगभग 40 मीटर दूर से मारा गया था। वहां मौजूद पूर्व भारतीय बल्लेबाज़ हेमलता काला ने जब इतना सटीक और तेज़ थ्रो देखा तो हैरान रह गईं। उन्हें लगा कि इतनी कम उम्र का बच्चा इतनी तेज़ और सटीक थ्रो कैसे मार सकता है। हेमलता काला ने तुरंत दीप्ति के भाई सुमित से कहा कि इस बच्चे में काफ़ी टैलेंट है। उन्होंने सुमित से कहा कि वह आज लिखकर देती हैं कि दीप्ति एक दिन अपने देश के लिए खेलेगी।

 

 

मां-बाप ने खूब दिया साथ

 

भले ही दीप्ति में बहुत टैलेंट था और काला ने उसे पहचाना था, मगर दीप्ति का क्रिकेटर बनना इतना आसान नहीं था क्योंकि दीप्ति एक ऐसे समय में क्रिकेट शुरू कर रही थीं, जब समाज में महिलाओं के लिए खेल को लेकर कई तरह की बातें होती थीं। उनके पड़ोसी और रिश्तेदार उनके माता-पिता से कहते थे कि लड़कियों को ऐसे बाहर नहीं भेजना चाहिए। लोग कहते थे कि उन्हें डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहिए और पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि क्रिकेट पुरुषों का खेल है लेकिन दीप्ति के पिता भगवान शर्मा ने इन बातों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया। दीप्ति की मां सुषमा शर्मा ने उन्हें हमेशा सपोर्ट किया।

 

यहीं पर आपको बता देते हैं कि वर्ल्ड कप फाइनल से पहले दीप्ति की मां ने गज़ब की बात कही थी, उन्होंने कहा था- ‘मैंने अंदर से उसे मज़बूत किया है। जिस वक्त बॉल उसके हाथ में होगी तब खेल देखना आप उसका।’

 

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दीप्ति के करियर में मां-बाप का तो बढ़िया सपोर्ट रहा ही लेकिन भाई सुमित ने अपने करियर का बलिदान दिया। दरअसल, सुमित एक वक्त क्रिकेट छोड़ दिया था और एमबीए की तैयारी में लग गए थे। एमबीए पूरा करने के बाद वह कैंपस प्लेसमेंट के ज़रिए नौकरी भी करने लगे। जब 2012-2013 के आसपास वह ब्रेक पर घर आए तो उन्होंने देखा कि दीप्ति का वज़न बढ़ रहा है और वह पहले की तरह परमानेंट प्रैक्टिस नहीं कर पा रही हैं। सुमित को एहसास हुआ कि दीप्ति को यूपी टीम से भारतीय टीम तक पहुंचने के लिए अब ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत है तो उन्होंने अपना करियर छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। उन्होंने अपने पिता से कहा, ‘वह अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं और अब वह दीप्ति को दिन-रात प्रैक्टिस कराएंगे।’ उन्होंने अपने पिता को चेतावनी भी दी कि अब लोग सवाल करेंगे कि बेटे ने इतना महंगा कोर्स किया और अब घर बैठा है, लेकिन उनके पिता ने कभी सवाल नहीं किया और उनका पूरा समर्थन किया।’

 

सुमित ने अपने माता-पिता और बड़े भाइयों से सिर्फ़ दो साल मांगे। अगर इस दौरान उनका सपना पूरा नहीं हुआ तो वह अपनी नौकरी पर वापस चले जाएंगे लेकिन दीप्ति को भारत के लिए खिलाने का उनका वादा पूरा हुआ। सुमित का कहना है- जब दीप्ति आज खेलती हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि वह भी उनके साथ भारत के लिए खेल रहे हैं। इस बलिदान और निरंतर मेहनत के चलते दीप्ति ने अपनी जर्नी जारी रखी और 17 साल की उम्र में नवंबर 2014 में उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया।

हनुमान जी की भक्त DSP दीप्ति शर्मा

 

आपको मालूम ही है कि वुमेन टी-20 वर्ल्ड कप 2025 में दीप्ति शर्मा ने कितना ज़बरदस्त प्रदर्शन किया है, खासकर फाइनल में बल्ले और गेंद दोनों से। यही कारण है कि उन्हें एक ऑल-वेदर ऑल-राउंडर माना जाता है। दीप्ति ने शुरू में अपने करियर की शुरुआत तेज़ गेंदबाज़ के रूप में की थी लेकिन उनके भाई सुमित ने उन्हें ऑफ़-स्पिनर बनने की सलाह दी। सुमित को लगता था कि तेज़ गेंदबाज़ हर जगह मिल जाते हैं लेकिन स्पिनर्स कम होते हैं। साथ ही वह दीप्ति को टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी कराना चाहते थे और तेज़ गेंदबाज़ी से चोट का ख़तरा रहता था, जिससे उनकी बैटिंग प्रभावित हो सकती थी। इसलिए उन्होंने फ़ास्ट बॉलिंग से स्पिन में बदलाव किया। उन्होंने घर पर ही स्पिन की प्रैक्टिस शुरू की और यह देखने की कोशिश की कि गेंद में कितना टर्न हो सकता है। भाई की यह सलाह उनके काम आई क्योंकि ऑल-राउंडर बनने से उन्हें टीम इंडिया में आने का सबसे अच्छा रास्ता मिला।
 
दीप्ति बाएं हाथ की बल्लेबाज़ हैं और दाएं हाथ से ऑफ़-ब्रेक बॉलिंग करती हैं। वह भारतीय टीम के लिए 10 साल से ज़्यादा खेल चुकी हैं। वह शुरुआत में एक डिफेंसिव और बहुत टेक्निकल बल्लेबाज़ थीं। उन्होंने शुरू में फ्रंट फुट डिफेंस से क्रिकेट सीखा। अपने करियर के पहले हाफ़ में,  खासकर वनडे में वह ज़्यादातर टॉप 4 में बैटिंग करती थीं। इस दौरान उनका स्ट्राइक रेट 63 के आसपास रहता था, जो कि काफ़ी धीमा माना जाता था। इसी वजह से  दूसरे हाफ़ में उन्हें अक्सर नीचे के क्रम जैसे नंबर 6 पर खिलाया जाने लगा लेकिन दीप्ति ने समय के साथ अपने खेल में मानसिक बदलाव किया। 

पावर हिटर हैं दीप्ति शर्मा

 

टी20 और 50 ओवर के खेल में अब रक्षात्मक क्रिकेट नहीं चलता, बल्कि रन-अ-बॉल खेलना पड़ता है। उन्होंने पावर हिटिंग पर काम किया। उनका पावर गेम पहले सीमित था। WPL 2023 के पहले सीज़न में उनका डॉट बॉल प्रतिशत 49% था और उन्होंने कोई छक्का भी नहीं मारा था लेकिन 2024 WPL सीज़न में उन्होंने अपने पावर गेम को सुधारा। उनका डॉट बॉल प्रतिशत घटकर 32.4% हो गया और उन्होंने 8 छक्के लगाए। उन्होंने स्ट्राइक रोटेशन पर भी काम किया, जिससे उनके रन बाउंड्री से नहीं, बल्कि विकेट्स के बीच दौड़कर भी बनने लगे, जो उनकी एक बड़ी सुधार थी। WPL 2024 में वह यूपी वॉरियर्स के लिए सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी भी रहीं। दीप्ति सुरेश रैना को बहुत फॉलो करती हैं और मानती हैं कि उनका बैटिंग स्टाइल उनसे मिलता-जुलता है।

 

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दीप्ति ने भारत से बाहर भी कई लीग्स खेली हैं, जैसे कि किया सुपर लीग, WBBL और द हंड्रेड। उन्होंने 2019 में वेस्टर्न स्टॉर्म को खिताब जिताने में मदद की थी। वह मानती हैं कि विदेशी लीग में प्लेयर्स ज़्यादा नहीं सोचते, उन्हें आज़ादी रहती है कि वे कैसे भी खेल सकते हैं, और वे प्रेशर को भी ज़्यादा एन्जॉय करते हैं। यह सीख उन्होंने अपने गेम में भी डेवलप की है। विदेशी लीग खेलकर बेहतर बनीं दीप्ति को WPL में यूपी वॉरियर्स ने 2.6 करोड़ रुपये में ख़रीदा था। वह इस टीम की कप्तानी भी करती हैं। दीप्ति मानती हैं कि कप्तानी एक अलग चुनौती होती है क्योंकि आपको अपना प्रदर्शन तो करना ही होता है। साथ ही टीम के बाकी खिलाड़ियों से भी प्रदर्शन निकलवाना होता है। वह चाहती हैं कि टीम के खिलाड़ी ग्राउंड पर उनके बताए प्लान को लागू करें, जिससे उनका काम आसान हो जाता है।

 

एक इंटरव्यू में दीप्ति बताती हैं कि अपनी निज़ी ज़िंदगी में वह बहुत धार्मिक हैं और हनुमान जी की भक्त हैं। उन्होंने अपने बाएं हाथ पर हनुमान जी का टैटू भी बनवाया है। उनका मानना है कि हनुमान जी हमेशा उनके साथ रहते हैं, चाहे वह ग्राउंड पर हों या रूम पर और कोई भी मुश्किल स्थिति हो वही पार लगाते हैं। टैटू बाएं हाथ पर बनवाने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि वह लेफ्टी बैटर हैं, इसलिए उनका दायां हाथ बॉलिंग के लिए ज़्यादा यूज़ होता है, इसलिए उन्होंने बाएं हाथ पर टैटू बनवाना पसंद किया।

 

बात अगर दीप्ति शर्मा की अचीवमेंट्स की करें तो- दीप्ति शर्मा को उनके बेहतरीन खेल के लिए अर्जुन अवॉर्ड मिल चुका है। जनवरी 2025 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस के पद पर नियुक्त किया था। दीप्ति हमेशा से पुलिस अफ़सर बनना चाहती थीं और अब वह क्रिकेट के साथ-साथ इस सपने को भी जी रही हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि दीप्ति ने अपनी मेहनत से मुकाम हासिल किया है, मौजूदा वक्त में वह सबके लिए प्रेरणा हैं।