दिल्ली की एक अदालत में उस वक्त सभी लोग लोगों के मुंह खुले के खुले रह गए जब चेक बाउंस के एक मामले में दोषी ठहराए गए शख्स और उसके वकील ने महिला जज को खुली धमकी दी और गाली-गलौज की।

 

आरोपी ने अपने पक्ष में फैसला न सुनाने पर जज की तरफ कोई वस्तु फेंकने की भी कोशिश की। इसके बाद उसने अपने वकील को कहा कि जो कुछ भी हो फैसला उसी के फेवर में होना चाहिए और इसके लिए उसने हर कोशिश करने को कहा। कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरोपी ने जज से कहा, ‘तू है क्या चीज.............कि तू बाहर मिल देखते हैं कैसे जिंदा घर जाती है…’

 

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चेक डिसऑनर का था मामला

ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट (एनआई एक्ट) शिवांगी मंगला ने आरोपी को निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट ऐक्ट की धारा 138 (चेक डिसऑनर) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया था और उसे अगली सुनवाई की तारीख पर सीआरपीसी की धारा 437 ए के तहत जमानत बांड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

 

हालांकि, सजा के बाद, आरोपी और उसके वकील ने महिला जज को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और उन पर अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव बनाया। जज शिवांगी मंगला ने अपने आदेश में रिकॉर्ड किया।

 

इस्तीफा देने के लिए डाला दबाव

उनके मुताबिक आरोपी और वकील ने फिर से उन्हें परेशान किया और उनसे आरोपी को बरी करने की मांग की। उन्होंने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने और जबरन उनका इस्तीफा लेने की धमकी भी दी।

 

जज ने कहा कि धमकी और उत्पीड़न के लिए आरोपी के खिलाफ राष्ट्रीय महिला आयोग के समक्ष उचित कार्रवाई शुरू की जाएगी।

 

कोर्ट ने निर्देश दिया कि "फिर भी अधोहस्ताक्षरकर्ता सभी मुश्किलों के खिलाफ खड़ी हैं और हमेशा न्याय के पक्ष में आवश्यक कदम उठाती रहेंगी। अधोहस्ताक्षरकर्ता इस तरह की धमकी और उत्पीड़न के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली के समक्ष आरोपी के खिलाफ उचित कदम उठाएंगी।"

 

वकील को कारण बताओ नोटिस

जज ने दोषी के वकील अतुल कुमार को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया कि उनके साथ दुर्व्यवहार करने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

 

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‘आरोपी के वकील अतुल कुमार को अदालती नोटिस जारी किया जाए कि वे लिखित में कारण बताएं कि आज उनके द्वारा किए गए आचरण व इस तरह के दुर्व्यवहार के लिए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने के लिए उन्हें माननीय हाई कोर्ट में क्यों न भेजा जाए।’

 

एडवोकेट को अगली सुनवाई पर जवाब पेश करने का निर्देश दिया गया है।