बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए तारीखों का ऐलान होना बाकी है लेकिन संभावना है कि सितंबर-अक्तूबर में चुनाव हो सकते हैं। सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन शह-मात के इस सियासी खेल में वोटों के लिए गुणा-भाग करने में जी जान से जुटे हुए हैं। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, जो मतदान के आखिरी दिन तक चलेगा। दोनों गठबंधनों में विधानसभा की 243 सीटों के लिए बंटवारे को लेकर प्रेशल पॉलिटिक्स भी जारी है।
वहीं, इन गठबंधनों से इतर बिहार में तीसरा फ्रंट भी जमीन पर काम कर रहा है। मगर, ये थर्ड फ्रंट भी राज्य में दो धड़ों में बंटा हुआ है। एक तरफ प्रशांत किशोर की जन सुराज है तो दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी, असदुद्दीन औवैसी की एआईएमआईएम, समाजवादी जनता दल लोकतांत्रिक और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) है। विधानसभा का पहली बार चुनाव लड़ने जा रहा प्रशांत किशोर बिहार में बड़े बदलावों की बात कर रहे हैं और गांव-गलियों में जाकर जनता से संवाद कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में जुटे हुए हैं।
मगर, बिहार में थर्ड फ्रंट हर चुनाव में बनते-बिगड़ते हैं लेकिन ये किसी भी चुनाव में अपनी प्रभावशाली भूमिका नहीं छोड़ पाते। ऐसे में आइए जानते हैं कि बिहार में पिछले दो विधानसभा चुनावों में तीसरे मोर्चे का क्या हश्र रहा है...
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जन सुराज की एंट्री
इस बार जन सुराज को छोड़कर किसी थर्ड फ्रंट की चर्चा नहीं है, लेकिन यूपी की पूर्व सीएम मायावती की बीएसपी चुनावों की तैयारियां कर रही है। पिछले चुनवा में थर्ड फ्रंट का हिस्सा रही एआईएमआईएम ने भी फिलहाल किसी तरह के तीसरे मोर्चे की बात नहीं की है। इस लिहाज से माना जा रहा है कि जिस तरह से 2020 और 2015 के विधानसभा चुनावों में तीसरे मोर्चे ने चुनाव लड़ा था वो इस बार नहीं देखने को मिलेगा।
2020 के चुनाव में थर्ड फ्रंट
मगर, पिछले 2020 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई में बने थर्ड फ्रंट ने प्रचंड जीत का दावा किया था। कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की अगुवाई में सभी पार्टियां मैदान में उतरी थीं। राज्यभर में कुशवाहा ने 104 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, इसके अलावा बीएसपी ने 80 और एआईएमआईएम ने 19 सीटों पर, लेकिन चुनाव में सभी पार्टी ने मिलकर थोड़ी बहुत अपनी छाप छोड़ने में सफल रही थीं। इसमें सबसे बेहरत प्रदर्शन ओवैसी की एआईएमआईएम ने किया था। चुनाव में एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीतीं, जबकि बीएसपी, एलजेपी और अन्य एक-एक सीट जीतने में कामयाब हुई थीं।
मगर, 2020 के चुनाव में थर्ड फ्रंट ऐसी स्थिती में नहीं था कि वह मिलकर एनडीए या महागठबंधन को प्रभावित कर सके।
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इसके अलावा 2020 के चुनाव में बीजेपी के दिग्गज नेता रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री यशवंत सिन्हा की अगुवाई में भी एक चौथा मोर्चा बना था। इस मोर्चे में छोटी-छोटी पार्टियों को मिलाकर कुल 20 दल शामिल थे। इसमें पुष्पम प्रिया चौधरी की द प्लुरल्स पार्टी भी शामिल थी। वहीं, इसके अलावा जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव की अगुवाई में प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन बना था। इसमें चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया और बहुजन मुक्ति पार्टी शामिल थीं। चुनाव में इन दोनों गठबंधनों की भी जमानत जब्त हो गई थी।
2015 के चुनाव में थर्ड फ्रंट
साल 2015 के चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के मजबूत कंधों का मुकाबला करने के लिए छह दलों को मिलाकर थर्ड फ्रंट तैयार किया गया था, जिसको सोशलिस्ट सेक्युलर मोर्चा नाम दिया गया था। इसमें समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जन अधिकार पार्टी, समरस समाज पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक शामिल थीं। सपा और एनसीपी ने विधानसभा की ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ा था।
वाम मोर्चा
इसके अलावा 2015 के चुनाव में थर्ड फ्रंट के अलावा वामपंथी पार्टियों ने भी गठबंधन बनाकर एनडीए और महागठबंधन के खिलाफ एक साथ चुनाव लड़ा। इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन , ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी शामिल थीं। सीपीआई 98 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि सीपीआई-एमएल, सीपीआई (एम), एसयूसीआई, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी क्रमशः 98, 43, 10, 9 और 3 सीटों पर चुनाव लड़ीं।
मगर, पूरी जी जान लगाकर भी वाम गठबंधन 3 सीटें ही जातने में कामयाब रहा। वहीं, इस चुनाव में महागठबंधन को चुनाव में 243 सीटों में से 178 पर जीत मिली। एनडीए की चुनाव में बुरी हार हुई और उसे 58 सीटों पर जीत मिली थी। बाद में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर बिहार में सरकार बनाई और नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री।
2015 के चुनाव बाद पलटीमार राजनीति
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और आरजेडी से हाथ मिला लिया। आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस के मजबूत गठबंधन ने मिलकर इस चुनाव में 178 सीटें जीती थीं। तीनों ने मिकर सरकार बनाई लेकिन साल 2017 में अचानक से नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़कर दोबारा बीजेपी से हाथ मिला लिया। बाद में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई।
इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में समीकरण ऐसे बने कि एनडीए के छत्रछाया में बीजेपी-जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में हमेशा जेडीयू से पीछे रहने वाली बीजेपी ने 74 सीटें जीत लीं, वहीं जेडीयू को महज 43 सीटें ही मिलीं। जेडीयू की सीटें कम होने के पीछे सबसे बड़े कारण एलजेपी बनी। इसको देखते हुए माना जा रहा है कि 2025 के चुनाव में नीतीश कुमार की वो धमक नहीं रहेगी जो पहले रहा करती थी।
सत्तारूढ़ एनडीए की ताकत
मगर एनडीए में सीटों के लिहाज से इस बार बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में है, जबकि सीएम नीतीश कुमार की जेडीयू दूसरे नंबर पर। बीजेपी ने 2020 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। मगर, माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में दोनों दल बराबर की सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा एनडीए में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास), केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा सत्तारूढ़ गठगंधन को मजबूती दिए हुए है।
विपक्षी इंडिया गठबंधन की ताकत
इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी ताकत राष्ट्रीय जनता दल है। पार्टी ने विधानसभा चुनावों में साल 2000 के बाद 2015 और 2020 दोनों ही चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया था। इस लिहाज से इस बार भी आरजेडी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जताई जा रही है। इसके अलावा गठंबधन में कांग्रेस, सीपीआई- एमएल, सीपीआई, सीपीआई-एम और विसासशील इंसान पार्टी है, जो इंडिया गठबंधन की ताकत हैं।