मुंबई क्राइम ब्रांच में 29 जुलाई 2025 को प्रमोशन का एक लेटर पहुंचा। यह आम बात नहीं थी चुंकि जिसे प्रमोशन दिया जा रहा था वह शख्स 2 दिन बाद यानी आज ही रिटायर होने वाले थे। रिटायरमेंट के ठीक 48 घंटे पहले ही उन्हें असिस्टेंट कमिश्नर (ACP) बना दिया गया। ऐसा प्रमोशन पाने वाले अधिकारी कोई और नहीं बल्कि मुंबई क्राइम ब्रांच के मशहूर सीनियर इंस्पेक्टर दया नायक हैं। जिन्हें देशभर में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाना जाता है।

 

दया नायक ने अपने 30 साल के पुलिस करियर में 85 से ज्यादा अपराधियों का एनकाउंटर किया है। उनकी रौबदार पर्सनैलिटी और बहादुरी के किस्से बताते हुए बॉलीवुड से लेकर रीजनल सिनेमा में कई फिल्में बनी हैं। रिटायरमेंट से 2 दिन पहले प्रमोशन पाकर अब वह फिर चर्चा में हैं। आइए जानते हैं कि कर्नाटक के छोटे से गांव में पैदा हुए दया नायक कैसे हीरो बने और कैसे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को खराब किया।

 

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कुर्सियां साफ करने से अंडरवर्ल्ड की सफाई तक दया नायक...

दया नायक की कहानी की शुरुआत बहुत साधारण तरीके से हुई। वह कर्नाटक के एक छोटे से गांव येनेहोल में पैदा हुए थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई उनके दादा के ही बनाए कन्नड़ स्कूल से हुई। फिर परिवार की मदद के लिए पिता ने उनसे नौकरी करने को कहा। इसके बाद दया नायक1979 में कर्नाटक के एक गांव से मुंबई में अपना भाग्य आजमाने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने रेस्तरां में मेज-कुर्सियां साफ की और बढ़ई का काम किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए ईवनिंग स्कूल जॉइन कर लिया था।

 

इसके बाद उन्होंने अंधेरी के सीईएस कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उनमें पुलिस अधिकारी बनने की चाह पैदा हुई। दरअसल, इसी दौरान पार्ट टाइम जॉब पर उनकी मुलाकात नारकोटिक्स विभाग के कुछ पुलिस अधिकारियों से हुई थी और उनसे ही वह काफी प्रभावित हुए। 

 

आखिरकार 1995 में पुलिस अकादमी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें जुहू पुलिस स्टेशन में पुलिस सब-इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया। जिस दौर में दया नायक पुलिस में शामिल हुए वह मुंबई पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण था। उस वक्त मुंबई पर अंडरवर्ल्ड का दबदबा था। दया नायक जल्द ही पुलिस के उस दल में शामिल हो गए जिस पर मुंबई के अपराधियों का सफाया करने की जिम्मेदारी थी।

 

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31 दिसंबर 1996 वह दिन था जब दया नायक ने अपना पहला एंकाउंटर किया। इस एनकाउंटर ने उनकी जिंदगी बदली दी। इसके बाद उन्हें मुंबई पुलिस के उस स्पेशल स्क्वॉड में जगह मिल गई जिन पर मुंबई के गैंगस्टर के सफाई की जिम्मेदारी थी। 1997 में एक एनकाउंटर के दौरान उन्हें 2 गोलियां लगीं और उन्हें 27 दिन अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इसके बाद दया मीडिया की नजरों में आने लगे थे। पुलिस में शामिल होने के 4 साल बाद ही दया नायक ने 83 अपराधियों को मारने का दावा किया था।

 

2000 आते-आते वह स्टार बने चुके थे। उनकी फेम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2000 में जब दया नायक ने अपने गांव में एक स्कूल बनवाया तो उसका उद्घाटन करने खुद अमिताभ बच्चन गए थे। 

दया नायक और विवाद

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर पहचान पाने के बाद दया नायक विवादों में भी घिरने लगे। 2003 में केतन तिरोड़कर नाम के एक पत्रकार ने दया नायक पर आरोप लगाए कि उनके मुंबई के अंडरवर्ल्ड से संबंध हैं। तिरोड़कर ने बताया कि 2002 में उनकी मुलाकात नायक से हुई और दोनों दोस्त बन गए। इसके बाद उन्होंने मिलकर वसूली का धंधा भी किया। हालांकि, 2003 में दया नायक को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई जबकि तिरोड़कर को 2004 में छोटा शकील से संबंध होने के चलते हिरासत में ले लिया गया था।

 

2 साल बाद ही 21 जनवरी 2006 में दया नायक के घर पर छापा मारा गया। उन पर आय से अधिक संपत्ति होने का आरोप था। उनके खिलाफ गैर जमानती वॉरंट जारी कर दिया गया। ऐंटी करप्शन ब्यूरो ने उन्हें 27 बार तलब किया था। दया नायक के समर्थकों के अनुसार, उन्हें उनके कुछ सहयोगियों ने ही उन्हें फंसाया था, जिनके अंडरवर्ल्ड अपराधियों के साथ घनिष्ठ संबंध थे, जिनसे नायक ने लड़ाई लड़ी थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2010 में कोर्ट ने उन पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया गया।

 

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एनकाउंटर पर उठे सवाल

दया नायक के बारे में कहा जाता है कि अपराधी उनसे डरते थे, मानवाधिकार कार्यकर्ता उनसे नफरत करते थे और उनके सहकर्मी उनसे जलते थे। उनसे एनकाउंटर के बढ़ते कल्चर को लेकर सवाल पूछे जाने लगे। एनकाउंटर को लेकर उनकी बताई कहानी अक्सर एक जैसी होती थी। 

 

इस पर दया नायक ने कहा था कि वह लोगों को मारने के लिए ट्रिगर दबाकर खुश नहीं हैं। उन्हें गैंगस्टर्स के खून खराबे को रोकने के लिए एंकाउंटर करने पड़ते हैं। दया नायक का कहना था कि वह फर्जी मुठभेड़ों का सहारा नहीं लेते। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था, 'मैं एक ब्राह्मण हूं, शराब नहीं पीता और शाकाहारी हूं। मुझमें कोई सामाजिक बुराई नहीं है, फिर मैं बिना किसी कारण के लोगों की हत्या क्यों करूं?'

 

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दया नायक उनके काम के तरीकों पर उठने वाले सवालों के बावजूद खुद पर फक्र करते थे। उनका कहना था कि कोई भी अपराधी उनकी निशानेबाजी की बराबरी नहीं कर सकता।

बॉलीवुड ने घर-घर पहुंचाई दया नायक की कहानी

2004 से 2012 तक बॉलीवुड से लेकर तेलुगू सिनेमा में दया नायक पर कई फिल्में बनीं। दया नायक के फेम पर फिल्म समीक्षक इंदू मीरानी कहती हैं, 'उनकी कहानी में ग्लैमर, रोमांच और एक ऐसे शख्स के सभी तत्व मौजूद थे जो विपरीत परिस्थितियों से लड़ता है और सफल होता है।

 

बॉलीवुड हमेशा एक स्टोरी की तलाश में रहता है और दया नायक ने ऐसी ही कहानी दी। फिल्म सितारों से उनकी दोस्ती थी। नाना पाटेकर ने 'अब तक 56' के फिल्म बनाने के दौरान उनके साथ कई दिन बिताए थे। माना जाता है यह फिल्म दया नायक पर ही बनी थी।