हरियाणा पुलिस विभाग में नए साल पर कई बदलाव हो सकते हैं। मौजूदा कार्यवाहक डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीजीपी) ओपी सिंह 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। हरियाणा सरकार ने नए डीजीपी की नियुक्ति के लिए पांच नामों का पैनल यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) को भेज दिया है। इस लिस्ट में विवादों में रहे पूर्व डीजीपी शत्रुजीत कपूर का नाम भी शामिल है। ओपी सिंह के रिटायरमेंट के बाद अगले डीजीपी के लिए किसके नाम पर मुहर लगेगी इस बात पर सब की नजर है।

 

कार्यवाहक डीजीपी ओपी सिंह के साथ-साथ डीजी रैंक के दो अन्य अधिकारी भी 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। इनमें होम गार्ड्स एवं सिविल डिफेंस के कमांडेंट जनरल 1989 बैच के आईपीएस मोहम्मद अकील और जेल महानिदेशक 1991 बैच के आलोक राय शामिल हैं। आलोक राय का कार्यकाल पहले भी एक बार बढ़ाया जा चुका है। 30 सितंबर 2025 को रिटायर होने के बाद आलोक राय का कार्यकाल तीन महीने के लिए बढ़ाया गया था। 

 

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अगले हफ्ते होगी UPSC की बैठक

नए डीजीपी के चयन के लिए हरियाणा सरकार ने पांच नामों का पैनल यूपीएससी को भेज दिया है। अगल हफ्ते यूपीएससी की एक अहम बैठक होगी। इस बैठक में नए डीजीपी के नाम पर चर्चा होगी। यूपीएससी ने इस अहम बैठक से पहले दिवंगत आईपीएस वाई पूरण कुमार सुसाइड मामले की जानकारी भी मांगी है। इसके साथ ही पूर्व डीजीपी शत्रुजीत कपूर का सर्विस सैलरी रिकॉर्ड और 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी एसके जैन का पूरा सर्विस रिकॉर्ड मांगा है। 

इन पांच नामों पर होगी चर्चा

हरियाणा सरकार ने कुल पांच नाम पैनल में भेजे हैं। इनमें पूर्व डीजीपी शत्रुजीत कपूर (1990 बैच), एसके जैन (1991 बैच), अजय सिंघल (1992 बैच), आलोक मित्तल (1993 बैच) और अर्शिदर चावला (1993 बैच) का नाम शामिल है। यूपीएससी की बैठक में इन पांच नामों पर चर्चा होगी। इन पांच नामों में से तीन नामों की सूची यूपीएससी राज्य सरकार को भेज देगी। इसके बाद राज्य सरकार के पास अधिकार होगा कि वह इन तीन नामों में से किसी एक नाम पर मुहर लगाए और राज्य का नया डीजीपी बनाए। इन पांचों में से आलोक मित्तल का नाम रेस में सबसे आगे बताया जा रहा है। 

कैसे होती है नियुक्ति?

डीजीपी की नियुक्ति को लेकर 'प्रकाश सिंह' मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को राजनीतिक दबाव और हस्तक्षेप से मुक्त करने, उन्हें जवाबदेह बनाने और उनका कार्यकाल तय करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके बाद से डीजीपी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत बताई गई प्रक्रिया के तहत ही की जाती है। राज्य सरकार 30 साल की सेवा पूरा कर चुके सबसे सीनियर अधिकारियों की एक लिस्ट यूपीएससी को भेजती है, जिनमें से उनके सर्विस रिकॉर्ड,सीनियर, सत्य निष्ठा और अनुभव को ध्यान में रखते हुए तीन अधिकारियों का नाम यूपीएससी राज्य सरकार वापस भेजती है।

 

इसके बाद राज्य सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वह उन्हीं तीन अधिकारियों में से किसी को प्रदेश का डीजीपी नियुक्त कर सकती है। इन अधिकारियों का सर्विस टर्म भी नियुक्ति के बाद कम से कम दो सालों का होता था और राज्य सरकार भी लिस्ट में उन्हीं अधिकारियों का नाम भेज सकती थी जिनकी रिटायर्मेंट में कम से कम 6 महीने का समय बचा हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट अपने दिशा-निर्देशों में यह भी कहा था कि डीजीपी की नियुक्ति की यह प्रक्रिया तभी तक अपनाई जाएगी जब तक राज्य इस संदर्भ में नया नियम नहीं बना लेते हैं।

 

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क्या ओपी सिंह को मिल सकता है मौका?

कार्यवाहक डीजीपी व्यवस्था की सुप्रीम कोर्ट पहले ही निंदा कर चुका है। लोगों के मन में सवाल है कि क्या ओपी सिंह को सेवा विस्तार देकर डीजीपी के पद पर नियुक्त किया जा सकता है या नहीं। अभी तक किसी भी कार्यवाहक डीजीपी को सेवा विस्तार नहीं मिला है यानी किसी भी कार्यवाहक डीजीपी को उनके रिटायरमेंट की डेट के बाद उनकी सर्विस को बढ़ाया नहीं गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसी साल कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार देने की मांग केंद्र सरकार से की थी। इस संबंध में एक फाइल भी भेजी गई थी लेकिन सरकार ने सेवा विस्तार का आदेश जारी नहीं किया और प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार नहीं मिला। ऐसे में ओपी सिंह को भी सेवा विस्तार मिलने की उम्मीदें कम ही हैं और राज्य सरकार ने उनका नाम पैनल में भी नहीं भेजा है।