जाने माने हिंदी के साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले विनोद कुमार शुक्ला का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वह 89 साल के थे। शाम के 4 बजकर 58 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। इसी साल उन्हें 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया था जो कि साहित्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। छत्तीसगढ़ के वह पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें उनकी रचना दीवार में एक खिड़की रहती थी के लिए 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था।
शुक्ल को इसी महीने 2 दिसंबर को तबीयत खराब होने की वजह से रायपुर के एम्स में भर्ती कराया गया था। उनके बेटे शाश्वत शुक्ल के मुताबिक उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी। इसके बाद उनकी तबीयत में थोड़ा सुधार हुआ था तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी, जिसके बाद घर पर ही उनका इलाज चल रहा था। हालांकि, मंगलवार को उनकी तबीयत अचानक फिर से बिगड़ गई जिसके बाद उन्हें फिर से रायपुर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
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बेटे को भूलकर आ जाते थे
उनके बेटे शाश्वत गोपाल ने मीडिया को बताया था कि वह विचारों में इतना खोए रहते थे कि उन्हें बाजार में भूलकर आ जाते थे। उन्होंने बताया, 'कई बार ऐसा होता था कि वे बाजार से सामान लाने के लिए मुझे मुझे स्कूटर से लेकर जाते थे और बाद में सामान तो घर पहुंच जाता था लेकिन मैं बाजार में ही छूट जाता था यानी वह मुझे बाजार में भूलकर घर चले आते थे.’
रॉयल्टी का उठा था मामला
साल 2022 में उनकी रचनाओं के रॉयल्टी का भी मुद्दा उठा था। उनका आरोप था कि उनके पुराने प्रकाशकों ने उन्हें काफी धोखा दिया। उन्होंने पब्लिशर्स पर बिक्री के आंकड़े छिपाने और शुक्ल को उनकी रॉयल्टी ने देने का आरोप लगाया था।
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मिला था पेन-नबोकोव पुरस्कार
विनोद कुमार शुक्ल को पेन-नबोकोव अवॉर्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर भी मिला था। यह पुरस्कार किसी लेखक को उनके मौलिक और उत्कृष्ट लेखन के लिए दिया जाता है। इससे पहले यह पुरस्कार न्गुगी वा थिओन्गो, ऐनी कार्सन, एम. नोरबे से फिलिप, सैंड्रा सिस्नेरोस, एडना ओ’ब्रायन और एडोनिस जैसे लेखकों को दिया जा चुका है।
