राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने दोषपूर्ण और खतरनाक बस डिज़ाइनों के कारण यात्री बसों में बार-बार होने वाली आग की घटनाओं को लेकर हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा द्वारा दायर शिकायत का गंभीर संज्ञान लिया है। शिकायत में बताया गया कि कई बसों में ड्राइवर केबिन को पूरी तरह से यात्री क्षेत्र से अलग कर दिया जाता है, जिसके कारण आग लगने पर समय रहते पता नहीं चल पाता और लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ती हैं। यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।
एनएचआरसी ने मामले की 26 नवम्बर 2025 को हुई सुनवाई के दौरान आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता वाली पीठ ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) तथा केंद्रीय सड़क परिवहन संस्थान (CIRT), पुणे को तत्काल एक्शन टेकेन रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किए।
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CIRT के नतीजे
सुशील वर्मा द्वारा जैसलमेर में हुई दुर्घटना की शिकायत के बाद दुर्घटनाग्रस्त बस के निरीक्षण के बाद CIRT ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला कि-
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14 अक्टूबर 2025 को जैसलमेर में हुई आग दुर्घटना में शामिल स्लीपर कोच CMVR तथा AIS:119 के अनिवार्य मानकों के अनुरूप निर्मित नहीं था।
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बस में ग़ैरकानूनी तौर पर ड्राइवर पार्टिशन डोर तथा स्लीपर बर्थ स्लाइडर्स लगाए गए थे।
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बस में फायर डिटेक्शन एवं सप्रेशन सिस्टम (FDSS) नहीं था, जबकि यह 2019 से अनिवार्य है।
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आपातकालीन निकास मानकों के अनुरूप नहीं थे।
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बस बॉडी निर्माण में अवैध चेसिस एक्सटेंशन किया गया था, जो सुरक्षा के लिए जोखिमपूर्ण है।
CIRT ने देशव्यापी सुधारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की—
• सभी स्लीपर कोचों को रिकॉल कर खतरनाक संरचनाएं हटाई जाएं।
• एक महीने के भीतर FDSS की अनिवार्य स्थापना सुनिश्चित की जाए।
• अवैध चेसिस एक्सटेंशन और असुरक्षित संशोधनों को हटाया जाए।
• पंजीकरण के समय बस बॉडी बिल्डर की मान्यता का कठोर सत्यापन किया जाए।
NHRC ने CIRT की रिपोर्ट के अध्ययन के बाद गंभीर कमियां दर्ज कीं-
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वाहन फिटनेस की मंज़ूरी और प्रमाणन के लिए जिम्मेदार परिवहन अधिकारियों की निगरानी में गंभीर कमी।
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बस बॉडी बिल्डरों द्वारा सुरक्षा मानकों का पालन न करना।
आयोग ने कहा कि CMVR और AIS मानकों का उल्लंघन करने वाले बस निर्माता और मंज़ूरी प्रदान करने वाले अधिकारी ‘आपराधिक लापरवाही’ के दोषी हैं, और यदि सुरक्षा मानकों का पालन किया गया होता तो ये हादसे टाले जा सकते थे।
आयोग ने जारी किए निर्देश
मानवाधिकार आयोग ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) को निर्देश जारी करते हुए कहा कि सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को AIS:052 और AIS:119 मानकों के कड़ाई से पालन हेतु सलाह/एडवाइजरी जारी की जाए। साथ ही यह भी कहा कि ऐसा राष्ट्रव्यापी तंत्र विकसित किया जाए जिससे कोई भी बस बॉडी बिल्डर अनिवार्य सुरक्षा मानकों से बच न सके।
सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी करते हुए आयोग ने कहा कि CIRT की सभी सिफारिशों को पूरे राज्य में लागू किया जाए, जिसमें असुरक्षित बसों का रिकॉल और सुधार शामिल है। यह भी कहा कि सुरक्षा मानकों का उल्लंघन कर स्वीकृति देने वाले अधिकारियों और निर्माताओं पर जवाबदेही तय की जाए। इसके अलावा कहा कि रोकी जा सकने वाली बस आग दुर्घटनाओं से प्रभावित पीड़ितों एवं उनके परिवारों को मुआवज़ा और आवश्यक सहायता सुनिश्चित की जाए। साथ ही दो सप्ताह के भीतर एनएचआरसी को एक्शन टेकन रिपोर्ट भी भेजने को कहा।
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क्या थी शिकायत?
21 अक्टूबर 2025 को दायर अपनी शिकायत में सुशील वर्मा ने बस डिज़ाइन में कमी के कारण मेवात क्षेत्र के पास केएमपी पर, राजस्थान के जैसलमेर और आंध्र प्रदेश के गुंटूर में हुई बस दुर्घटनाओं की ओर आयोग का ध्यान आकर्षित कराया था। उन्होंने अपनी लिखित शिकायत में बताया था कि खराब बस डिज़ाइन, अग्नि सुरक्षा प्रणाली की कमी और कमजोर निगरानी के कारण प्रतिदिन देश भर में लाखों लोग जोखिम भरे वाहनों से यात्रा करते हैं!
क्या बोला आयोग?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने कहा, 'सार्वजनिक परिवहन बसों में आग की हालिया घटनाएं अनिवार्य सुरक्षा मानकों के अनुपालन में गंभीर और पूरी तरह टाली जा सकने वाली विफलताओं को उजागर करती हैं। आयोग ने खतरनाक बस डिज़ाइनों, ड्राइवर केबिन को यात्री कक्ष से अवैध रूप से अलग करने, तथा फायर डिटेक्शन सिस्टम की अनुपस्थिति से संबंधित प्राप्त शिकायत का गंभीरता से संज्ञान लिया है।’
उन्होंने कहा, ‘ये कमियां न केवल बस निर्माताओं की, बल्कि स्वीकृति, निरीक्षण और फिटनेस प्रमाणन के लिए जिम्मेदार परिवहन अधिकारियों की भी प्रणालीगत लापरवाही को दर्शाती हैं। CMVR और AIS सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किसी भी रूप में साधारण नहीं माना जा सकता। यह आपराधिक लापरवाही है, जो प्रतिदिन हजारों निर्दोष यात्रियों के जीवन को जोखिम में डालती है।’
इसी कारण आयोग ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिए हैं कि वे सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें, असुरक्षित स्लीपर कोचों को तत्काल रिकॉल करें, अनिवार्य सुरक्षा प्रणालियों की स्थापना सुनिश्चित करें, तथा सभी संबंधित अधिकारियों और संस्थाओं पर जवाबदेही तय करें।
उन्होंने कहा, ‘मानव जीवन अनमोल है, और सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा पर कोई समझौता स्वीकार्य नहीं है। आयोग अनुपालन की निरंतर निगरानी करेगा ताकि ऐसी रोकी जा सकने वाली त्रासदियाँ भविष्य में दोबारा न हों।'
क्या बोले सुशील वर्मा?
'दोषपूर्ण बस डिज़ाइन और आग की घटनाओं के संबंध में मेरी शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा की गई त्वरित और निर्णायक कार्रवाई का मैं स्वागत करता हूं। कई बसों में ड्राइवर केबिन को पूरी तरह से यात्री क्षेत्र से अलग कर देना और बसों में आवश्यक अग्नि सुरक्षा प्रणालियों का अभाव है। इन खामियों ने पहले भी मासूम लोगों की जान ली है, जबकि ये सभी हादसे पूरी तरह रोके जा सकते थे।
सार्वजनिक परिवहन उपयोगकर्ताओं का सुरक्षा का अधिकार सर्वोपरि है। लंबे समय से खतरनाक बस डिज़ाइन, पर्याप्त आपातकालीन निकासों की कमी, FDSS का अभाव और निरीक्षण व्यवस्था की कमजोरी के कारण यात्रियों की जान खतरे में रही है। एनएचआरसी द्वारा AIS:052 और AIS:119 मानकों के अनुपालन, दोषपूर्ण बसों की रिकॉल, तथा दोषी परिवहन विभाग के अधिकारियों और बस निर्माताओं पर जवाबदेही तय करने के निर्देश अत्यंत सराहनीय और आवश्यक हैं।
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मैं सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और सड़क परिवहन मंत्रालय से आग्रह करता हूं कि वे आयोग के निर्देशों का पूर्ण, तत्पर और प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित करें। किसी भी परिवार को ऐसी रोकी जा सकने वाली लापरवाही के कारण अपने प्रियजन को खोने का दर्द फिर कभी न सहना पड़े। यही हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।'
