जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर से 'दरबार मूव' परंपरा फिर से शुरू होने जा रही है। मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए दरबार मूव की परंपरा को दोबारा से शुरू करने का आदेश दे दिया है। 153 साल पहले शुरू हुई इस परंपरा को 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले केंद्र शासित राज्य के प्रशासन ने बंद कर दिया था। मौसम में होने वाले परिवर्तन के कारण शुरू हुई इस परंपरा को जम्मू-कश्मीर की लोकतांत्रिक सरकारों ने भी अपनाया लेकिन इस पर बहुत ज्यादा खर्च भी होता था। इस परंपरा के तहत साल में दो बार राज्य की राजधानी को शिफ्ट किया जाता था।
जम्मू-कश्मीर सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, 'आज मैंने खुद आधिकारिक फाइल पर सिग्नेचर किए हैं और मुझे उम्मीद है कि जल्द ही आदेश भी जारी हो जाएगा। हमने लोगों से वादा किया था कि हम दरबार मूव बहाल करेंगे और अब मंत्रिमंडल ने इसे बहाल करने का फैसला लिया है।' यह फैसला इसी महीने से लागू हो जाएगा और नवंबर में जम्मू-कश्मीर का प्रशासन जम्मू से चलाया जाएगा।
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क्या है दरबार मूव?
दरबार मूव यानी दरबार को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाने की परंपरा की शुरुआत डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह ने की थी। उन्होंने मौसम के प्रभाव से बचने के लिए शाही दरबार को श्रीनगर और जम्मू में मौसम के हिसाब से शिफ्ट किया जाता था। इस व्यवस्था में राज्य के सारे सरकारी ऑफिस गर्मियों के महीनों में श्रीनगर से चलाए जाते थे और सर्दियों में ठंड बढ़ जाने के कारण सारे ऑफिस जम्मू से चलाए जाते थे। इस परंपरा में 10,000 कर्मचारियों, सरकारी दस्तावेज, कंप्यूटर और फर्नीचर को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता था। हर साल दो बार यह सारा सामान शिफ्ट किया जाता था।

दरबार मूव के फायदे नुकसान?
सर्दी के मौसम में श्रीनगर में असहनीय ठंड पड़ती है तो गर्मी में जम्मू में गर्मी होती है। इसे देखते हुए गुलाब सिंह ने गर्मी के दिनों में श्रीनगर और ठंडी के दिनों में जम्मू को राजधानी बनाना शुरू कर दिया। राजधानी शिफ्ट करने की इस प्रक्रिया के जटिल और खर्चीला होने की वजह से इसका विरोध भी होता रहा है। इस परंपरा के कारण राज्य सरकार को 200 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च करना पड़ता था।
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इसी खर्च को देखते हुए साल 2021 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इसे बंद कर दिया था लेकिन जम्मू-कश्मीर की पार्टियों ने इस फैसले का विरोध किया था। जम्मू और श्रीनगर दोनों शहरों के लोगों ने इस परंपरा को रोकने का विरोध किया था। इस परंपरा के खत्म होने से जम्मू और श्रीनगर के व्यापारियों को मिलने वाला व्यापार खत्म हो रहा था। लोगों का तर्क है कि इस परंपरा से दोनों क्षेत्रों में रोजगार और बिजनेस के समान अवसर मिलते हैं।
2019 से पहले तक हर साल दो बार राजधानी शिफ्ट की जाती थी। ऐसे में एक हफ्ते तक कड़ी सुरक्षा के बीच ट्रकों में सामान लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था। सुरक्षा के लिए जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर पुलिस और पैरामिल्ट्री फोर्सेज का कब्जा रहता था। सामान शिफ्ट करने के अलावा सरकारी कर्मचारियों को भी एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था। इसके लिए उन्हें खर्च दिया जाता था और रहने की व्यवस्था करने पर भी खर्चा बढ़ जाता था।
1980 के दशक में इस खर्च पर लोगों ने चिंता जाहिर की और कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुए। हालांकि, इस परंपरा को जन समर्थन भी हासिल था। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस परंपरा पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस परंपरा को जारी रखने का कोई वैध कारण नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि इससे बचने वाले पैसे को केंद्र शासित राज्य के विकास के लिए लगाया जा सकता है।
ऐसे चलती थी परंपरा
दरबार मूव में साल में दो बार राज्य की राजधानी शिफ्ट की जाती थी। सर्दियों में जम्मू और गर्मियों में श्रीनगर को राजधानी बनाया जाता था। जम्मू में अप्रैल के लास्ट शुक्रवार को ऑफिस बंद कर दिए जाते थे। इसके बाद एक हफ्ते तक सरकार और कर्मचारियों को श्रीनगर शिफ्ट किया जाता था। एक हफ्ते बाद आने वाले सोमवार को राज्य का कामकाज श्रीनगर से शुरू किया जाता था।
कश्मीर में अक्टूबर के लास्ट शुक्रवार और शनिवार को ऑफिस का कामकाज बंद कर दिया जाता था और सारा सामान जम्मू शिफ्ट कर दिया जाता था। इसमें भी एक हफ्ते बाद आने वाले सोमवार को कामकाज शुरू किया जाता था। नवंबर से अप्रैल तक जम्मू में ऑफिस चलाए जाते थे। अब इस साल से इसी परंपरा को दोबारा से शुरू किया जाएगा।
इस साल 25 अक्टूबर तक श्रीनगर में ऑफिस का काम बंद कर दिया जाएगा और 3 नवंबर से जम्मू ऑफिस से कामकाज शुरू किया जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी के बाद उपराज्यपाल ने भी इस फाइल पर सिग्नेचर कर दिए हैं यानी अब इस परंपरा को दोबारा शुरू करने में कोई रुकावट नहीं रही।
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2021 से 2025 तक कैसे हुआ काम?
2021 में 149 साल पुरानी परंपरा को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रशासन ने खत्म कर दिया था। केंद्र शासित राज्य के प्रशासन ने सरकारी रिकॉर्ड्स को डिजिटल फॉर्मेट में बदलने का फैसला किया था। ऐसे में जम्मू-कश्मीर से श्रीनगर कुछ ही रिकॉर्ड्स को ले जाया जाता था। कुछ ही सरकारी दफतर एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट किए जाते थे बाकी ऑनलाइन एक दूसरे से कनेक्टेड रहते थे।
जब यह परंपरा शुरू हुई थी उस समय पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी भारत का हिस्सा था और एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सड़क मार्ग, रेलवे और हवाई यात्रा की सुविधा नहीं थी। ऐसे में गर्मियों में कश्मीर में राजधानी बनाकर लद्दाख में प्रशासन की बेहतर पकड़ सुनिश्चित की जाती थी। हालांकि, अब लद्दाख भी जम्मू कश्मीर का हिस्सा नहीं रहा। इस परंपरा से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को आपस में मिलकर काम करने का मौका मिलता था और तीनों एक दूसरे से कनेक्टेड रहते थे।