ऑलिव रिडले समुद्री कछुए (Lepidochelys olivacea) जो दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुओं में गिने जाते हैं और 'बहुत संवेदनशील' प्रजातियों में आते हैं, इस साल मार्च में ओडिशा के रुशिकुल्या समुद्र तट पर सात लाख से अधिक कछुओं के एक साथ अंडे देने की घटना के चलते चर्चा में आ गए। इसे अब तक का सबसे बड़ा 'अरिबाडा' (Arribada) यानी सामूहिक अंडे देने प्रक्रिया कहा गया।
अरिबाडा एक स्पेनी शब्द है, जिसका मतलब 'आगमन' है। यह वह समय होता है जब हजारों मादा कछुए एक साथ तट पर आकर अंडे देते हैं। यह दृश्य देखने में जितना अच्छा लगता है, उतना ही यह वैज्ञानिकों और संरक्षणकर्ताओं के लिए चिंताजनक भी बन गया है, क्योंकि यह सवाल उठाता है कि क्या प्रकृति में फेर बदल किया जा सकता है।
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दुनिया भर में घट रही है संख्या
भले ही कुछ क्षेत्रों में कछुओं की संख्या बढ़ी हो लेकिन IUCN रेड लिस्ट के अनुसार, 1960 से अब तक ऑलिव रिडले कछुओं की वैश्विक संख्या में 30–50% तक गिरावट आई है। इनकी मुख्य प्रजनन स्थली मेक्सिको और मध्य अमेरिका की प्रशांत तट रेखाएं हैं लेकिन भारत का ओडिशा राज्य भी एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है।
ओडिशा के 480 किलोमीटर लंबे तट पर तीन प्रमुख अंडे देने वाले समुद्र तट हैं- गहिरमाथा, देवी और रुशिकुल्या। हर साल लाखों मादा कछुए यहां लौटते हैं, ठीक उसी जगह जहां वे जन्मे थे।
कैसे लौटते हैं कछुए?
वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये कछुए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल कर उस जगह पर लौटते हैं, जहां उनका जन्म हुआ था। इसे 'फिलोपेट्री' कहा जाता है, जिसमें यादें, पर्यावरण से जुड़े संकेत और चुंबकीय दिशा शामिल है। इस प्रवृत्ति से पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही स्थान पर लौटने की आदत बनती है।
अन्य समुद्री कछुओं पर हुए स्टडी से पता चला है कि वे ऐसे तटीय इलाकों को चुनते हैं जहां ठंडे पानी की धाराएं (cold-core eddies) पोषक तत्व सतह तक लाती हैं। इसके अलावा नमक की मात्रा, जमीन की ढलान, शिकारियों की मौजूदगी और बारिश भी उनके लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि जैसे-जैसे कछुओं की संख्या बढ़ती है और जगह सीमित होती जाती है, अंडे देने के दौरान पहले से मौजूद घोंसले टूट जाते हैं। मादा कछुए दूसरे कछुओं की गंध से घोंसले की जगह पहचानती हैं, जिससे वे गलती से पहले से रखे अंडों को नष्ट कर सकती हैं। टूटे अंडों की गंध शिकारियों को आकर्षित करती है और इससे नुकसान बढ़ता है।
समुद्री कछुओं में अंडों का तापमान उनके बच्चों के लिंग को तय करता है। गरम रेत में अधिक मादा जन्म लेती हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मादाओं की संख्या भी बढ़ रही है। इससे अरिबाडा में भाग लेने वाली मादा कछुओं की संख्या और बढ़ेगी लेकिन इससे संतुलन बिगड़ सकता है।
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मछुआरे और गांव वालों की भूमिका अहम
ओडिशा में स्थानीय मछुआरे और गांव वाले इसके संरक्षण कार्य में अहम भूमिका निभाते हैं। वे अंडों की रक्षा करते हैं, शिकार रोकते हैं और वैज्ञानिकों की मदद करते हैं लेकिन सभी मानवीय संपर्क लाभकारी नहीं होते।
विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि कछुओं को देखने आने वाले पर्यटकों की भीड़, चमकती रोशनी, सेल्फी लेना और यहां तक कि अंडे देने की प्रक्रिया को परेशान करना- यह सब कछुओं की प्राकृतिक आदतों में बाधा डालता है। इससे वे अगली बार उस तट पर लौटने से बच सकते हैं।