भारत के दक्षिणी राज्य केरल में इस साल मॉनसून तय समय से आठ दिन पहले यानी शनिवार को ही पहुंच गया। यह पिछले 16 सालों में मॉनसून का सबसे जल्दी आगमन है। इस समय से पहले हुई बारिश ने देश के कई हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ दिया है, खासकर दिल्ली और महाराष्ट्र में, जहां मई महीने में अब तक की सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की गई है।

 

बता दें कि भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए मॉनसून जीवनरेखा के समान है। देश को अपनी कृषि भूमि को सींचने, भूमिगत जल को फिर से भरने और जलाशयों को भरने के लिए जितनी बारिश की आवश्यकता होती है, उसका लगभग 70% हिस्सा इन्हीं जून से सितंबर तक होने वाली मानसूनी बारिश से पूरा होता है। ऐसे में कई बार टेक्नोलॉजी भी मौसम की भविष्यवाणी, जिसे ‘वैदर फोरकास्ट’ भी कहा जाता है इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं मौसम की भविष्यवाणी में कौन-सी तकनीकें सबसे सटीक मानी जाती हैं?

 

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सैटेलाइट टेक्नोलॉजी

मौसम का अनुमान लगाने के लिए सैटेलाइट सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। यह उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए वातावरण की तस्वीरें और आंकड़े भेजते हैं। इससे यह पता चलता है कि बादल कहां हैं, किस दिशा में जा रहे हैं, समुद्री सतह का तापमान क्या है आदि।

रडार सिस्टम

खास तरह के रडार बारिश, तूफान, बर्फबारी और हवा की गति जैसी चीजों की जानकारी देते हैं। डॉप्लर रडार टेक्नॉलोजी सबसे अधिक उपयोग की जाती है। इससे बारिश की शुरुआत और तीव्रता का भी पूर्वानुमान लगाना संभव होता है।

न्यूमेरिकल वेदर प्रेडिक्शन (NWP)

यह कैलकुलेशन पर आधारित टेक्नोलॉजी है, जिसमें सुपरकंप्यूटर का इस्तेमाल करके मौसम की कैलकुलेशन की जाती हैं। इसमें वातावरण के अलग-अलग हिस्सों की जानकारी ली जाती है और मैथमेटिकल मॉडल के जरिए आगे का पूर्वानुमान किया जाता है।

ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (AWS)

यह स्टेशन जमीन पर लगे होते हैं और हर कुछ समय बाद हवा की गति, दिशा, तापमान, आर्द्रता (नमी), वर्षा आदि की जानकारी एकत्र कर भेजते हैं।

मौसम मापने के पैमाने क्या होते हैं?

  • तापमान: थर्मामीटर से मापा जाता है।
  • एयर प्रेशर: बैरोमीटर से मापा जाता है। इससे तूफान और मौसमी बदलाव का पता चलता है।
  • हवा की गति और दिशा: एनिमोमीटर और वेदर वैन से मापा जाता है।
  • बारिश: रेन गेज से मापा जाता है।
  • नमी: हाइग्रोमीटर से मापा जाता है।
  • बादल और विसिबिल्टी: सैटेलाइट इमेज और व्यक्तिगत जांच के जरिए मापा जाता है।

इन सभी मापदंडों को जोड़कर एक मॉडल बनाया जाता है जिससे भविष्य में मौसम कैसा रहेगा इसका अंदाजा लगाया जाता है।

मौसम पूर्वानुमान में AI का योगदान

अब इन पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर मौसम विभाग AI (Artificial Intelligence) और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर रहा है। हर दिन लाखों-करोड़ों डेटा सेट्स आते हैं- इन्हें इंसानों के लिए समझना मुश्किल होता है। AI उन्हें जल्दी और सटीक ढंग से विश्लेषित करता है। AI पिछले कुछ सालों के मौसम के पैटर्न का एनालिसिस करता है और उससे मिलते-जुलते मौसम की संभावनाएं बताता है। इसके साथ जब कोई खतरनाक तूफान या भारी बारिश आने वाली हो, तो AI तुरंत संबंधित क्षेत्र को अलर्ट करने में मदद करता है। इसके साथ AI की मदद से अब हर गांव या छोटे इलाके के लिए अलग मौसम की जानकारी दी जा सकती है।

 

लंबे समय के लिए जब मौसम के बदलाव और जलवायु परिवर्तन की बात आती है, तो AI इन आंकड़ों के विश्लेषण में मदद करता है और बताता है कि भविष्य में तापमान कैसे बढ़ सकता है या सूखा, बाढ़ कितनी बार आ सकती है।

 

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भारत में AI आधारित मॉडल

भारत में भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने भी अब AI आधारित मॉडल अपनाना शुरू कर दिया है। इसके तहत आईआईटी और वैज्ञानिक संस्थानों की मदद से अत्याधुनिक मॉडल तैयार किए जा रहे हैं। फसल संबंधित मौसम की जानकारी किसानों को मोबाइल पर दी जा रही है। साथ ही बाढ़ और चक्रवात से पहले चेतावनी देने की प्रणाली को और मजबूत बनाया गया है।

 

ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि मौसम की जानकारी में सैटेलाइट सटीक है या AI? तो आपको बता दें कि सैटेलाइट, अंतरिक्ष से पृथ्वी के वातावरण की तस्वीरें और आंकड़े भेजते हैं। इससे यह पता चलता है कि बादल कहां हैं, हवा किस दिशा में बह रही है, बारिश या तूफान की संभावना कितनी है। यह तकनीक सीधे आकाश से जानकारी देती है, जो मौसम की स्थिति को समझने में बहुत मददगार होती है।

 

वहीं, AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन आंकड़ों को तेजी से विश्लेषित करता है। AI पिछले मौसम के रुझानों को देखकर यह अंदाज़ा लगाता है कि भविष्य में क्या हो सकता है। इससे छोटी जगहों के लिए भी मौसम की जानकारी मिलती है और समय रहते चेतावनी दी जा सकती है।

 

इसलिए, कई विशेषज्ञ ये बताते हैं कि सिर्फ सैटेलाइट या केवल AI से नहीं, बल्कि दोनों के मेल से मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव होती है। सैटेलाइट जानकारी देता है और AI उसे समझकर सही निष्कर्ष निकालने में मदद करता है। दोनों मिलकर मौसम की चेतावनी को अधिक भरोसेमंद बनाते हैं।