आसमानी बिजली, जिसे वैज्ञानिक भाषा में 'लाइटनिंग' कहते हैं, एक अनोखी प्राकृतिक घटना है। जब आकाश में बादलों के बीच या बादलों और जमीन के बीच ज्यादा इलेक्ट्रिकल चार्ज पैदा होता है, तब अचानक बहुत तेज बिजली गिरती है। भले ही यह देखने अच्छी लगती है लेकिन यह ऊर्जा कुछ ही सेकंड में हजारों से लाखों वोल्ट तक पहुंच जाती है। यह ऊर्जा इतनी शक्तिशाली होती है कि कुछ ही पलों में कई घरों को रोशन कर सकती है। हालांकि, सवाल है क्या हम इस ऊर्जा को पकड़ कर उसका उपयोग कर सकते हैं?
आसमानी बिजली कैसे बनती है?
विज्ञान में बताया गया है कि जब बादल ऊंचाई पर हवा में ऊपर-नीचे चलते हैं, तो घर्षण से उनमें इलेक्ट्रिकल चार्ज पैदा होता है। ऊपरी भाग में पॉजिटिव चार्ज और निचले हिस्से में नेगेटिव चार्ज जमा हो जाता है। जमीन पर भी पॉजिटिव चार्ज बनने लगता है। जब इन दोनों के बीच का अंतर बहुत ज्यादा हो जाता है, तो यह इलेक्ट्रिकल चार्ज बिजली की तेज चमक और गरज के साथ धरती पर गिरता है। यही होती है आसमानी बिजली।
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क्या इसे इकट्ठा किया जा सकता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, आसमानी बिजली को इकट्ठा करना बहुत मुश्किल काम है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती है- इसका असमय गिरना और तेज गति। एक बिजली की चमक कुछ माइक्रोसेकंड में गिरती है और उसमें औसतन 300 मिलियन वोल्ट्स तक की ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा को इतनी तेजी से पकड़ने, नियंत्रित करने और सुरक्षित रूप से स्टोर करने के लिए बहुत ही एडवांस तकनीकी उपकरणों की जरूरत होती है। वैज्ञानिक बताते हैं कि एक बिजली के बोल्ट में इतनी ऊर्जा होती है कि वह एक दिन में करीब 850,000 घरों को बिजली दे सकती है।

कहां-कहां हैं ऐसे प्रयोग?
अमेरिका – फ्लोरिडा में ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर लाइटनिंग रिसर्च एंड टेस्टिंग’ नाम की संस्था बिजली के प्रभाव और उससे इकट्ठा करने पर लंबे समय से रिसर्च कर रही है। वहां वैज्ञानिक रॉकेट के जरिए बादलों तक धातु के तार पहुंचाकर बिजली को जमीन पर खींच लाते हैं और फिर खास उपकरणों से उसका प्रभाव और इकट्ठा करने की संभावना पर काम करते हैं।
जापान और चीन – इन देशों ने कुछ ऊंचे पर्वतीय इलाकों में आसमानी बिजली इकट्ठा की प्रयोगशालाएं बनाई हैं जहां वर्षा और गरज के मौसम में बिजली को विशेष टावरों के माध्यम से इकट्ठा करने के परीक्षण किए जाते हैं।
यदि भारत में किया जाए तो कहां संभव है?
भारत में मानसून के दौरान बिजली गिरना आम बात है। कुछ प्रमुख क्षेत्र जहां यह अधिक होता है:
- झारखंड और ओडिशा – यहां प्रति वर्ष सबसे ज्यादा आसमानी बिजली गिरती है। यह क्षेत्र बिजली इकट्ठा करने की दृष्टि से अच्छे साबित हो सकते हैं।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार – इन क्षेत्रों में भी गर्मी के मौसम में या मानसून में तूफान के दौरान बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं।
- छत्तीसगढ़ और विदर्भ क्षेत्र (महाराष्ट्र) – यहां जंगल और पहाड़ी इलाकों में बार-बार बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।
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बिजली इकट्ठा करने में चुनौतियां
बहुत ज्यादा वोल्टेज – इतनी ज्यादा वोल्टेज को सुरक्षित रूप से नियंत्रित करना आसान नहीं होता। इससे उपकरण जल सकते हैं या बड़ा विस्फोट हो सकता है।
कुछ मिलीसेकंड का समय- बिजली बहुत कम समय में गिरती है, जिससे इसे इकट्ठा करने का समय भी बहुत कम होता है।
वर्तमान तकनीक – वर्तमान में कोई भी बैटरी या एनर्जी स्टोरेज सिस्टम इतनी तेज ऊर्जा को तुरंत स्टोर करने में सक्षम नहीं है। सुपरकैपेसिटर और अल्ट्रा-फास्ट बैटरी जैसे स्टडी हो रहे हैं लेकिन अभी ये सिर्फ टेस्ट तक ही सिमित हैं।
क्या भविष्य में यह संभव है?
हालांकि वर्तमान में यह व्यावसायिक रूप से संभव नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक प्रयास लगातार जारी हैं। जैसे-जैसे बैटरी तकनीक और इस ऊर्जा को बनाने के साधन विकसित होंगे, भविष्य में यह कल्पना संभव है कि किसी दिन आसमान से गिरने वाली बिजली को भी एक स्थायी ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग में ला सकेंगे।