कैसा हो कि आप एक ऐसे घर में रह रहे हों, जो लगातार उड़ रहा हो और बार-बार किसी चीज के चक्कर काट रहा हो?
आसान भाषा में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी ISS यही है। पृथ्वी से सैकड़ों किलोमीटर दूर मौजूद ISS कोई स्थायी ढांचा नहीं है, बल्कि यह लगातार घूमते रहता है। पृथ्वी के चक्कर काटता रहता है। एक खिड़की है, जहां से अंतरिक्ष यात्री बाहर का नजारा देखते हैं। कमरे हैं। जिम है। बाथरूम है। सोने के लिए बिस्तर की बजाय स्लीपिंग बैग्स हैं।
इसी ISS में 286 दिन बिताने के बाद सुनीता विलियम्स वापस पृथ्वी पर लौट आईं हैं। उनके साथ बुच विल्मोर भी गए थे और वे भी लौट आए हैं।
पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर ISS
इंटरनेशन स्पेस स्टेशन कई टुकड़ों से मिलकर बना है। यह अंतरिक्ष यात्रियों का घर है। एक ऐसा घर जो साइंस लैब की तरह काम करता है। यह पृथ्वी की सतह से लगभग 400 किलोमीटर दूर है।
नासा के मुताबिक, ISS का पहला टुकड़ा 1998 में लॉन्च किया था। इसे एक रूसी रॉकेट से लॉन्च किया गया था। इसमें पहला क्रू 2 नवंबर 2000 को गया था। तब से ही अंतरिक्ष यात्री यहां रह रहे हैं। समय के साथ-साथ इसमें और टुकड़े जोड़े गए और आखिरकार 2011 में यह पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ।

45 मिनट का दिन, 45 मिनट की रात
ISS लगातार पृथ्वी के चक्कर काटता रहता है। ISS 28 हजार किलोमीटर प्रति किलोमीटर की रफ्तार से पृथ्वी के चक्कर काटता है। इसका मतलब हुआ कि हर सेकंड में 8 किलोमीटर। इसे ऐसे समझिए कि दिल्ली से न्यूयॉर्क की दूरी 11,753 किलोमीटर है। अगर ISS से दिल्ली से न्यूयॉर्क जाए तो 25 मिनट में पहुंच जाएंगे।
इतनी तेजी से चक्कर लगाने के कारण ही ISS पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्री 24 घंटे में 16 बार सूरज को उगते हुए और 16 बार डूबते हुए देखते हैं। यहां 45 मिनट का दिन और 45 मिनट की रात होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ISS 45 मिनट सूरज की रोशनी की तरफ होता है और 45 मिनट पृथ्वी की छाया में।
अंतरिक्ष यात्रियों के लिए रात-दिन कैसे?
अब जब ISS पर 45 मिनट का दिन और 45 मिनट की रात होती है तो सवाल उठता है कि यहां रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का दिन-रात का समय क्या होता है?
इसका जवाब है कि ISS पर समय को UTC (कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम) से सेट किया जाता है। ISS पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों का एक दिन 24 घंटे का ही होता है। इसमें 16 घंटे वे काम करते हैं और 8 घंटे की नींद लेते हैं।
ISS के अंदर पृथ्वी जैसा माहौल बनाने के लिए LED लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। दिन के वक्त LED लाइट्स की रोशनी को तेज कर दिया जाता है और रात में सोते समय धीमा कर दिया जाता है।

अंदर से कैसा है ISS?
नासा के मुताबिक, ISS में 5 बेडरूम, 2 बाथरूम, 1 जिम और 1 बड़ी सी खिड़की है। आमतौर पर इसमें 6-7 लोग रहते हैं लेकिन 11 भी रह सकते हैं।
बाहर से तो ISS चमकता हुआ गैस सिलेंडर दिखता है लेकिन अंदर से यह टाइट ट्यूब जैसा है। छत-फर्श सब एक समान हैं, क्योंकि अंदर ग्रेविटी ही नहीं है। इसके अंदर एक-एक इंच का इस्तेमाल किया गया है। दीवारों पर मशीनें लगी हैं। वायरिंग हैं। सोने के लिए स्लीपिंग बैग्स लगे हैं।
ISS में 16 मॉड्यूल्स हैं, जो अलग-अलग सेक्शन के जरिए आपस में जुड़े हैं। 16 मॉड्यूल्स में कुछ में लैब हैं। कुछ लिविंग स्पेस है। कुछ स्टोरेज के लिए है। इसके अलावा एयरलॉक्स भी है, जो स्पेसवॉक के लिए इस्तेमाल होता है। ISS के अंदर कुल 4 लैब्स बनी हैं, जिनमें अमेरिका, जापान, रूस और यूरोप के अंतरिक्ष यात्री रिसर्च और एक्सपेरिमेंट करते हैं।
ISS का वजन 10 लाख पाउंड यानी लगभग 45,300 किलोग्राम है। यानी, ISS का वजन लगभग 11 एशियाई हाथी के बराबर है। एक एशियाई हाथी का औसतन वजन 4 हजार किलो होता है।

खाना-पीना और सोने का इंतजाम?
ISS में किचन जैसा सेटअप नहीं है। यहां एक छोटा सा एरिया है, जहां खाने-पीने का इंतजाम होता है। सारा खाना पैकेट में होता है और वह भी सूखा हुआ। यह वैक्यूम पैक फूड होता है, इसलिए लंबे समय तक खराब नहीं होता। बस पानी डालकर गर्म करते हैं और खाते हैं। खाने-पीने के सामान की सप्लाई रॉकेट से होती है। यहां छोटा सा एक ओवन जैसा सिस्टम है जो खाने को गर्म करता है।
पानी बैग्स में स्ट्रॉ के साथ होता है। ISS में पानी रिसाइकिल किया जाता है। पसीना, यूरीन और नमी को साफ करके दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।
यहां छोटी-छोटी मैग्नेटिक टेबल होती हैं, जहां खाने के पैकेट रखे जाते हैं। चम्मच-कांटे सबकुछ मैग्नेट के होते हैं, ताकि यह उड़े नहीं। खाने के बाद गंदे चम्मच और बर्तनों को वेट वाइप्स से साफ किया जाता है। खाना खाने के बाद पैकेट्स को स्टोर किया जाता है और फिर सप्लाई शिप से वापस पृथ्वी पर भेजा जाता है।
ISS में ग्रेविटी नहीं है, इसलिए अंतरिक्ष यात्री हवा में उड़ते रहते हैं। इनके सोने के लिए यहां स्लीपिंग बैग्स होते हैं। यह स्लीपिंग बैग्स दीवारों पर लगे होते हैं। यह मजबूत फैब्रिक से बने होते हैं। सिर के पास एक हुड होता है जो तकिये का काम करता है।
अंतरिक्ष यात्री तैरते हुए स्लीपिंग बैग्स में अंदर घुसते हैं। अंदर घुसने के बाद अपने शरीर को अंदर की स्ट्रेप्स से बांध लेते हैं, ताकि सोते समय हवा में हाथ-पैर हिले-डुले न। सिर को हुड पर फिक्स कर लिया जाता है। सोते समय अंतरिक्ष यात्री आई मास्क लगाते हैं, क्योंकि हर 45 मिनट में दिन-रात होती रहती है।
ISS में टॉयलेट का सिस्टम भी वैक्यूम बेस्ड होता है। अगर जरा सी भी गलती हुई तो सबकुछ तैरने लगता है। इसलिए यहां रहते समय सावधानी बरतना जरूरी है।
मगर ISS की जरूरत क्यों?
अंतरिक्ष की गहराइयों को जानना है तो वहां रहना भी जरूरी है और ऐसे में ISS काम आता है। ISS में कई लैब्स हैं, जहां अंतरिक्ष यात्री रिसर्च और एक्सपेरिमेंट करते हैं। यह ऐसी रिसर्च और एक्सपेरिमेंट होते हैं, जिन्हें पृथ्वी पर नहीं किया जा सकता।
इस बात का अध्ययन किया जाता है कि अंतरिक्ष में रहने वालों के साथ क्या होता है? उनके शरीर पर क्या असर पड़ता है? इसके अलावा, और भी कई एक्सपेरिमेंट होते हैं।
कुल मिलाकर ISS एक उड़ता हुआ साइंस लैब है, जहां हर दिन कुछ न कुछ नया हो रहा है। वहां रहना आसान नहीं है लेकिन अनुभव भी काफी अच्छा होता होगा।