भारत अपनी बायोडायवर्सिटी और इकोलॉजिकल विरासत के लिए जाना जाता है पर अब ऐसा समय आ गया है कि देश एक बढ़ते पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। बढ़ते प्लास्टिक का उपयोग दुनिया में पर्यावरणविदों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन रही है। भारत इसके सेंटर में है। सेंटर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार यहां हर साल अनुमानित 4.13 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। कुछ समय पहले नेचर में छपी एक स्टडी से पता चलता है कि भारत प्लास्टिक पॉल्यूशन में दुनिया का सबसे बड़ा कंट्रीब्यूटर बन गया है। यह दुनिया के कुल प्लास्टिक वेस्ट का लगभग 20% है।
हर साल यहां 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होता है जिसके साथ भारत का कंट्रीब्यूशन पूरे इलाकों से भी ज्यादा है। देश में लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक वेस्ट का गलत मैनेजमेंट होता है। नाइजीरिया (3.5 mt), इंडोनेशिया (3.4 mt) और चीन (2.8 mt) जैसे दूसरे बड़े पॉल्युटर्स से काफी ज्यादा है।
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प्लास्टिक वेस्ट की बढ़ती प्रॉब्लम
तेजी से शहरीकरण, पॉपुलेशन ग्रोथ और इकनॉमिक डेवलपमेंट की वजह से भारत में प्लास्टिक वेस्ट खतरनाक रेट से बढ़ा है। शहरी इलाकों में सिंगल-यूज प्लास्टिक और पैकेजिंग मटीरियल की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है। भारत में प्रत्येक व्यक्ति प्लास्टिक की खपत बढ़कर लगभग 11 kg प्रति वर्ष हो गई है। जो बढ़ते इंडस्ट्रलाइजेशन और कंज्यूमरिज्म के साथ यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है। इससे भी खतरनाक हर साल 5.8 मिलियन टन से ज्यादा इस कचरे को जला दिया जाता है। इसके कारण हवा में डाइऑक्सिन जैसे नुकसानदायक पॉल्यूटेंट जारी होता है।
संकट के मुख्य कारण
- खराब वेस्ट मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर: भारत का कचरा मैनेजमेंट सिस्टम इतनी बढ़ती मात्रा में इस संभालने के लिए अभी तक विकसित नहीं हो पाया है। शहरों में पैदा होने वाले कचरे का अनुमानित 77% बिना ट्रीट किए खुले लैंडफिल में फेंक दिया जाता है
- खुले में जलाना और लैंडफिलिंग: हर साल 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा खुले में जलाया जाता है। कुल प्लास्टिक कचरे का अनुमानित 30% बिना कंट्रोल वाले लैंडफिल में फेंक दिया जाता है, जहां यह मिट्टी और पानी की जगहों में केमिकल छोड़ते हैं।
- सिंगल-यूज़ प्लास्टिक: सिंगल-यूज़ प्लास्टिक, जिसमें बैग, स्ट्रॉ, कटलरी और पैकेजिंग मटीरियल शामिल हैं। भारत के कुल प्लास्टिक कचरे में 43% अभी भी सिंगल-यूज़ प्लास्टिक है। 2022 में सरकार ने कुछ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगाया था पर उसे लागू करना मुश्किल रहा है।
- इनफॉर्मल वेस्ट सेक्टर: भारत का करीब 60 % प्लास्टिक कचरा अनरेगुलेटड सेक्टर ही हैंडल करता है लेकिन बिना किसी सपोर्ट के इस सेक्टर में हैंडल होने वाले ज्यादातर कचरे का हिसाब नहीं रखा जाता है।
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प्लास्टिक प्रदूषण के गंभीर नतीजे
- प्लास्टिक कचरा ड्रेनेज सिस्टम को जाम कर देता है, जिससे बड़े शहरों में बाढ़ आ जाती है। भारत के समुद्र तटों पर लगभग 80% समुद्री कचरा प्लास्टिक है।
- माइक्रोप्लास्टिक अब आसानी से पानी में मौजूद मिलते हैं जो मिट्टी में जा रही है। इससे खाने की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।
- प्लास्टिक को खुले में जलाने से एयर पॉल्यूशन बढ़ता है। इससे डाइऑक्सिन, फ्यूरान और PCB जैसे नुकसानदायक केमिकल निकलते हैं। दिल्ली जैसे शहरों में, जहां एयर क्वालिटी पहले से ही एक बड़ी पब्लिक हेल्थ प्रॉब्लम है।
- फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) के अनुसार, 2030 तक बिना इकट्ठा किए गए प्लास्टिक कचरे से भारत को 133 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मटीरियल वैल्यू का नुकसान हो सकता है। इतने बड़े स्तर के कचरे को रिसायकल करना भारत के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है।
नियम काम क्यों नहीं कर रहे?
भारत ने प्लास्टिक वेस्ट को कंट्रोल करने के लिए कई नियम बनाए हैं पर उनका असर दिखाई नहीं पड़ रहा है। कई नियम-
- प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2016
- 2018, 2021 और 2024 के अमेंडमेंट नियम
- एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) फ्रेमवर्क
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इन नियमों को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इनका मकसद मल्टी लेटर प्लास्टिक को धीरे-धीरे खत्म करना है और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना था। राज्यों में इसे लागू करने का तरीका एक जैसा नहीं रहा है और जरूरी बदलावों को सपोर्ट करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी सीमित है।
ग्लोबल नॉर्थ VS ग्लोबल साउथ
विकसित और विकासशील देशों के बीच अंतर भी भारत के प्लास्टिक संकट में एक बड़ी भूमिका निभाता है। ज्यादा इनकम वाले देश प्रति व्यक्ति ज्यादा कचरा पैदा करते हैं लेकिन उनके पास अच्छे वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम हैं। इसके उलट भारत जैसे देश के पास सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर है जो कचरे को खुले में फेंकने या जलाने पर निर्भर रहते हैं।
दुनिया जैसे-जैसे तेजी से बढ़ते प्लास्टिक प्रोडक्शन से जूझ रही है, यह संकट कचरे को व्यवस्थित करने के तरीके पर फिर से सोचने का एक खास मौका देता है। सही प्लानिंग के साथ कचरा एक कीमती रिसोर्स बन सकता है, जिससे भारत और उसके बाहर पर्यावरण और आर्थिक दोनों तरह के फायदे होंगे।
