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मदन लाल खुराना को क्यों छोड़नी पड़ी थी दिल्ली के CM की कुर्सी?

दिल्ली में बीजेपी ने अभी तक सिर्फ एक बार पांच साल के लिए सरकार बनाई है। इस पांच साल में सबसे पहले सीएम बने मदन लाल खुराना को एक केस की वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।

Madan Lal Khurana with atal bihari vajpayee

अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मदन लाल खुराना (फाइल फोटो), Image Credit: Madan Lal Khurana Facebook Page

साल 1993 में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने मदन लाल खुराना के बारे में मशहूर हो गया था कि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस खूब करते थे। कोई ऐलान करना हो, किसी पर आरोप लगाना हो या फिर कोई राजनीतिक संदेश देना हो, खुद मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना मीडिया के सामने आते और अपनी बात रखते। हर रोज प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले मदन लाल खुराना के खिलाफ ही एक दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। इसका नतीजा इतना खतरनाक हुआ कि मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। वादा हुआ कि आप इन आरोपों से बेदाग निकले तो फिर से कुर्सी मिलेगी। हालांकि, राजनीति में सबकुछ वादों के भरोसे नहीं हो पाता। अक्सर वादे टूट जाते हैं, परिस्थितियां बदल जाती हैं या फिर वादे करने वाले ही बदल जाते हैं।

 

जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यन स्वामी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं। वह आरोप लगाते हैं कि हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन ने साल 1991 में लालकृष्ण आडवाणी को 2 करोड़ रुपये दिए। स्वामी ने यह आरोप भी लगा कि सुरेंद्र जैन के संबंध उस नेटवर्क से हैं जो अलगाववादी संगठन JKLF की फंडिंग करता है। इसी बयान ने खलबली मचा दी थी। समय के साथ-साथ सीबीआई के पास पड़ी एक डायरी में लिखे गए नाम सामने आने लगे। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नरसिम्हा राव की सरकार ने इसे और हवा देने का मन बनाया। सीबीआई ने चार्जशीट तैयार शुरू करनी शुरू की तो खलबली मच गई। उस समय बीजेपी के अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवणी ने अपना पद छोड़ दिया और कहा कि वह तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक इन आरोपों से बरी नहीं हो जाते। आडवाणी के न लड़ने के कारण ही 1996 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ और गांधी नगर से चुनाव लड़े।

न चाहते हुए भी छोड़नी पड़ी कुर्सी

 

आडवाणी के पास तो पार्टी का पद था उन्होंने इसे इस झटके में छोड़ दिया। कथित तौर पर इस डायरी में दिल्ली के सीएम मदन लाल खुराना का नाम था कि उन्होंने 1988 में 3 लाख रुपये लिए थे। मदनलाल खुराना के पुराने दोस्त और कांग्रेस के नेता भजनलाल प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के करीबी हुआ करते थे। भजनलाल की ओर से मदनलाल खुराना को आश्वासन मिल गया था कि उनके खिलाफ कुछ नहीं होगा इसलिए वह अपना पद नहीं छोड़ना चाह रहे थे। दूसरी तरफ, आडवाणी के साथ-साथ RSS का भी दबाव था कि खुराना पद छोड़कर उदाहरण पेश करें।

Madan Lal Khurana
बीजेपी नेताओं के साथ मदन लाल खुराना (फाइल फोटो)

 

 

समय काट रहे मदन लाल खुराना फरवरी के महीने में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे। यह बैठक संसद भवन में हो रही थी। इसी बीच सीबीआई ने बयान दिया कि जल्द ही जैन हवाला केस में मदनलाल खुराना के खिलाफ चार्जशीट पेश की जाएगी। ऐसे में बीजेपी ने खुराना पर और दबाव बनाया। मजबूर होकर मदनलाल खुराना ने दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और उन्हीं के धुर विरोधी कहे जाने वाले साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। 'दिल्ली का एक ही लाल, मदन लाल, मदन लाल' का नारा अब हवाला के शोर में खो चुका था।

कभी वापसी नहीं हो पाई

 

जैसा कि तमाम कथित घोटालों में होता है, वही इस केस में भी हुआ। ज्यादातर लोग बरी होने लगे। मदनलाल खुराना की भी बारी आई और वह बरी हो गए। बरी होते ही उन्होंने वादा याद दिलाना शुरू किया और दिल्ली में अपनी ताजपोशी के लिए दबाव बनाने लगे। हालांकि, आडवाणी मान नहीं रहे थे। इसी बीच 1998 में फिर लोकसभा चुनाव आ गए। कहा जाता है कि उस वक्त साहिब सिंह वर्मा से पद छोड़ने को कहा गया तो पहले तो वह तैयार नहीं हुए। जैसे-तैसे उन्हें मनाया गया तो उन्होंने शर्त रख दी कि मदनलाल खुराना की वापसी नहीं होनी चाहिए। इसी के चलते सुषमा स्वराज का नंबर आ गया और बिना दिल्ली की विधायक बने ही सुषमा स्वराज चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की सीएम बन गईं। 

 

जब मदनलाल खुराना अपनी वापसी चाह रहे थे, उस वक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस का दौर एक बार फिर शुरू हुआ। मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा एक-दूसरे के खिलाफ ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगे थे। आखिर में मदनलाल खुराना को लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और वह जगदीश टाइटलर को हराकर सांसद बन गए। इतना ही नहीं, अटल बिहार वाजपेयी ने उन्हें अपनी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री भी बनाया।

क्या था जैन हवाला डायरी केस?

 

इस हवाला केस में चार आरोपियों एस के जैन, जे के जैन, बी आर जैन और एन के जैन के नाम मुख्य थे। आरोपों के मुताबिक, यह घोटाला लगभग 65 करोड़ रुपये का था। दरअसल, उन दिनों कश्मीर में अशांति फैली हुई थी तो पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियों की नजर उन लोगों पर रहती थी जो अलगाववादियों और कट्टरपंथियों की मदद करते हों। इसी छानबीन में अशफाक हुसैन लोन को मार्च 1991 में तो शहाबुद्दीन अप्रैल 1991 में पकड़ा गया। इन लोगों ने बताया कि ये दोनों हवाला के जरिए पैसा इकट्ठा करते थे और उसे JKLF तक पहुंचाते थे। 

पुलिस का कहना था कि इन दोनों के बयानों के आधार पर कारोबारी सुरेंद्र कुमार जैन के घर छापेमारी की गई तो वहां से 58 लाख रुपये, 2 लाख रुपये के बराबर की विदेशी मुद्रा, दो डायरी, एक नोटबुक और 15 लाख रुपये की कीमत के इंदिरा विकास पत्र मिले। इन्हीं डायरियों को जैन हवाला डायरी का नाम दिया गया। मामला सीबीआई को सौंप दिया दिया गया।

किन नेताओं के आए थे नाम?

 

सीबीआई के मुताबिक 3 मई 1991 को उसे जे के जैन के घर से कुछ फाइलें और एक डायरी मिली थी जिसमें मदनलाल खुराना का नाम था और यह लिखा था कि उन्होंने 3 लाख रुपये लिए। इन्हीं फाइलों के आधार पर सीबीआई ने दावा किया था कि कई अन्य आरोपियों ने भी 1988 से 1990 के बीच हवाला कारोबारियों से लेनदेन किया था। आडवाणी और मदनलाल खुराना के अलावा इस केस में यशवंत सिन्हा, जैन बंधुओं, मोतीलाल वोरा, पी शिव शंकर, अजीत कुमार पंजा, वी सी शुक्ला, अर्जुन सिंह, माधरवार सिंधिया, एन डी तिवारी और आर के धवन जैसे नेताओं का भी नाम सामने आया था।

 

हालांकि, मामला दबा दिया गया। रोचक बात यह थी कि दो महीने बाद ही इस केस की जांच करने वाले डीआईजी ओपी शर्मा के घर एक छापेमारी हुई। नाटकीय ढंग से सीबीआई ने उन्हें एसके जैन नाम के एक आदमी से रिश्वत लेते हुए रंगे हाध पकड़ने का दावा किया और उन्हें स्पेंड कर दिया गया। इसके बाद सीबीआई ने इस मामले को दबाने की कोशिश की और छापे में बरामद डायरियां सीबीआई के स्टोर में जमा करवा दी गईं। 1993 में जब सुब्रमण्यन स्वामी ने आडवाणी पर आरोप लगाए तो जनसत्ता अखबार ने इसकी खोजबीन की। ओपी शर्मा से संपर्क करके वे नाम निकाले गए। 24 अगस्त 1993 को जनसत्ता में छपी इस खबर ने सनसनी मचा दी।

बरी हो गए ज्यादातर आरोपी

 

1997 आते-आते ज्यादातर आरोपी इस केस से बरी हो चुके थे। कोर्ट ने माना कि सीबीआई इन लोगों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पेश कर पाई है। वहीं, इस मामले की जांच करने वाले डीआईजी ओपी शर्मा 10 लाख रुपये की रिश्वत लेने के मामले में साल 2013 में दोषी पाए गए। समय के साथ मामला खत्म हो गया। नेताओं की सफेदपोशी बरकरार रही और हवाला केस के आरोपी जैन बंधु भी बरी हो गए। इस सबके बीच मदनलाल खुराना के हाथ से जो दिल्ली फिसली वह फिर कभी उनकी नहीं हो पाई। खुराना ही नहीं, तब से लेकर अब तक बीजेपी दोबारा कभी दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीत नहीं पाई।

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