बांग्लादेश इन दिनों तमाम संकटों से जूझ रहा है। आर्थिक समस्याओं के बीच अडानी पावर ने कहा है कि बांग्लादेश सरकार कम से कम 2100 करोड़ रुपये तुरंत चुकाए ताकि बिजली की सप्लाई जारी रखी जा सके। सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए 7 नवंबर की डेडलाइन रखी गई है। अडानी पावर झारखंड के गोड्डा में लगे अपने प्लांट से बांग्लादेश को बिजली की सप्लाई करती है। कंपनी के सूत्रों के मुताबिक, उसे तत्काल पैसों की जरूरत है ताकि वह गोड्डा में स्थित प्लांट के लिए ऑस्ट्रेलिया से कोयला मंगा सके। यह प्लांट अल्ट्रा-सुपर क्रिटिकल है और इसके लिए जरूरी कोयला भारत में नहीं मिलता है इसलिए अडानी पावर को इसके लिए कोयले का आयात ऑस्ट्रेलिया या इंडोनेशिया से करना पड़ता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अडानी पावर ने बांग्लादेश सरकार से कहा है कि वह 200 से 250 मिलियन डॉलर तुरंत चुकाए। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, बांग्लादेश ने पिछले ही महीने 96 मिलियन डॉलर चुकाए हैं और उसने 170 मिलियन डॉलर का कर्ज लेने की तैयारी भी कर ली है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी पावर के लगभग 900 मिलियन डॉलर बांग्लादेश पर बकाया हैं। इसमें से 840 मिलियन डॉलर तो सिर्फ बिजली सप्लाई के हैं। अब बिजली की सप्लाई जारी रख पाने के लिए अडानी पावर को भी पैसों की जरूरत है इसलिए उसने बांग्लादेश सरकार से कहा है कि वह तुरंत पैसे दे।
मुश्किल में है बांग्लादेश
बताते चलें कि अडानी ग्रुप के पास ऑस्ट्रेलिया के कार्मिकाएल प्रोजेक्ट में खुद की कोयला खदाने हैं और वहां से कोयला भारत भी आता है लेकिन इतना कोयला गोड्डा वाले प्लांट के लिए काफी नहीं है। नवंबर 2017 में बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (BPDB) ने अडानी पावर झारखंड लिमिटेड से एक समझौता किया था। इसके तहत ही अडानी की कंपनी गोड्डा में लगे 800 मेगावाट के दो सुपरक्रिटिकल पावर प्रोजेक्ट से 1496 मेगावाट बिजली की सप्लाई करती है। जल्द ही 800 मेगावाट क्षमता का एक और प्लांट चालू हो जाएगा।
गौरतलब है कि साल 2022 से ही बांग्लादेश के पास डॉलर की कमी हो गई है। इसी साल अगस्त महीने में बांग्लादेश में तख्तापलट होने के चलते बांग्लादेश की हालत और खराब हो गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांग्लादेश की मौजूदा अंतरिम सरकार पैसे चुकाने के लिए बहुत हाथ-पैर मार रही है लेकिन वह इसमें ज्यादा सफल नहीं हो रही है। बता दें कि सितंबर 2024 में बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा कोष 20 बिलियन डॉलर से भी कम हो गया था।