बदलते समय के साथ बहुत सारे किसान वैकल्पिक और कमाऊ खेती की ओर मुड़ रहे हैं। ऐसे में फसल के तौर पर उनका चुनाव किया जा रहा है जिनमें कम मेहनत करके ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। ऐसी ही एक खेती अश्वगंधा की है। अश्वगंधा वही है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने के लिए भी अश्वगंधा का खूब इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इसकी मांग हमेशा अच्छी होती है। भारत के कई राज्यों में इसकी खेती व्यापक स्तर पर की जाती है।
यह एक ऐसी फसल है जिसकी पत्तियों से लेकर फल, छाल, बीज और जड़ तक का इस्तेमाल होता है, ऐसे में इससे कमाई भी अच्छी-खासी होती है। इसकी खेती के लिए प्रति एकड़ खर्च लगभग 30 से 31 हजार रुपये होता है और फसल बेचकर लगभग 75 हजार रुपये की कमाई हो जाती है। इस तरह से मुनाफा लगभग 30 से 35 हजार रुपये प्रति एकड़ होता है।
6 महीने में तैयार हो जाएगी फसल
सबसे पहले बीज से नर्सरी तैयारी होती है। नर्सरी में डाले गए बीज से 35 से 40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं। अच्छी जुताई के बाद तैयार इस खेत में पौधों को लगा दिया जाता है। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 2 से 3 लाख पौधे लगभग लगाए जा सकते हैं। समय-समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई करने और खाद देते रहने पर यह फसल लगभग 6 महीने में तैयार हो जाती है।
फसल तैयार होने के बाद इसे जड़ से उखाड़ लिया जाता है। जड़ों को काटकर सुखा लिया जाता है और इसके फलों को तोड़कर, उसे सुखाकर बीज निकाल लिया जाता है। ये जड़ें ही दबा बनाने वाली कंपनियों को बेच दी जाती हैं। दरअसल, डाबर, वैद्यनाथ और पतंजलि जैसी कंपनियां आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने के लिए अश्वगंधा का भरपूर इस्तेमाल करती हैं।
अगर अश्वगंधा की फसल की तुलना धान और गेहू से करें तो अश्वगंधा 50 फीसदी ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी खेती जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, पंजाब, यूपी, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में की जाती है। अच्छी बात यह है कि इसकी खेती खारे पानी में भी की जा सकती है। अब कई राज्यों में सरकार भी इसकी खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और मुफ्त में इसके पौधे भी बांटने लगी है।