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Budget 2025: क्या है Direct और Indirect Tax में अंतर? जानें

बजट फरवरी में पेश होने वाला है, उसके पहले खबरगांव आपको कुछ उन शब्दों से रू-ब-रू करा रहा है जो कि अक्सर कन्फ्यूजन पैदा करते हैं। इस शब्दों को समझकर बजट को समझने में आपको आसानी होगी।

Representational Image : Photo Credit: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

केंद्र सरकार हर साल फरवरी में बजट पेश करती है। इस साल का बजट भी फरवरी में पेश होने की संभावना है। बजट का लोगों को बेसब्री से इंतजार होता है। पर जब बजट आता है तो अक्सर ऐसा होता है कि इकॉनमी से जुड़े तमाम शब्द लोगों को समझ नहीं आते।


ऐसे में खबरगांव ऐसे ही कुछ शब्दों से आपको न सिर्फ रू-ब-रू करा रहा है बल्कि उसका अर्थ भी समझा रहा है, जो कि आपको बजट को समझने में मदद करेगा।

 

आज हम जिन शब्दों पर बात करने वाले हैं वह है- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर जिसे अंग्रेज़ी भाषा में क्रमशः डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स कहते हैं।

क्या है प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)

सरकार अपने खर्च और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए कर यानी कि टैक्स कलेक्ट करती है. यह टैक्स मूल रूप से दो तरह के होते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।

 

प्रत्यक्ष कर या डायरेक्ट टैक्स का मतलब है कि जो सीधा सीधा किसी व्यक्ति या संस्था, कॉर्पोरेट इत्यादि से  से सरकार द्वारा वसूला जाता है।

इसमें कोई व्यक्ति, या संगठन टैक्स सीधे सरकार को देता है. यह टैक्स किसी और पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए आयकर (Income Tax), अचल संपत्ति कर (Immovable Asset Tax), व्यक्तिगत संपत्ति कर (Individual Asset Tax) और परिसंपत्तियों पर (Asset Tax) कर।

 

भारत में प्रोग्रेसिव टैक्स सिस्टम (Progressive Tax System) यानी कि प्रगतिशील टैक्स प्रणाली है जिसका अर्थ है कि ज्यादा कमाने वालों पर ज्यादा टैक्स और कम कमाने वालों पर कम टैक्स। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आय की असमानता को कम किया जा सके।

इसीलिए इनकम टैक्स जो कि प्रत्यक्ष कर की श्रेणी में आता है उसके लिए सरकार अलग अलग टैक्स स्लैब बनाती है।

क्या होता है अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)

इसी तरह के अप्रत्यक्ष कर वह होता है जो कि जिस पर यह टैक्स लगाया जाता है वह इस टैक्स को दूसरे पर ट्रांसफर करके यानी कि दूसरे से ले के सरकार को देता है। या दूसरे शब्दों में कहें तो यह कर सीधे जनता से नहीं लिया जाता परंतु जिसका बोझ अप्रत्यक्ष रूप से उसी पर पड़ता है।

 

या कहें कि गुड्स एंड सर्विसेज पर लगने वाला टैक्स (Goods and Services Tax) जैसे- जीएसटी (GST), कस्टम ड्यूटी (Custom Duty), एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) इत्यादि। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आप एक होटल में खाना खाने के लिए जाते हैं और जब बिल आपके सामने आता है तो उसमें कुल बिलिंग के साथ एक अन्य मद भी जुड़ा रहता है जो कि होता है जीएसटी और सीजीएसटी।

 

अब इसे इस प्रकार से समझें कि सरकार जीएसटी और सीजीएसटी उस होटल पर लगा रही है लेकिन होटल उसे अपनी सेवाओं के बदले कस्टमर पर ट्रांसफर कर देता है और उसे कस्टमर से लेकर सरकार के पास जमा कर देता है। बता दें कि ऐसा करना गैर-कानूनी नहीं हैं।

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