देशभर में कई सड़कों पर ट्रैफिक सिग्नल पर कई बच्चे फूल, किताबें और कई छोटी चीजें बेचते हैं। छोटी उम्र में ही मजबूरी में इन बच्चों को यह काम करना पड़ता है। ऐसी बच्चे स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते। अब महाराष्ट्र के नवी मुंबई में ऐसे बच्चों के लिए एक नई क्रांति शुरू की गई है। नवी मुंबई के नेरुल के सेक्टर 4 के इलाके में शहर का पहला सिग्नल स्कूल शुरू किया गया है। इस स्कूल में ट्रैफिक सिग्नल पर सामान बेचने वाले बच्चे मेनस्ट्रीम एजुकेशन से जुड़ पाएंगे।
यह स्कूल नवी मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन और समर्थ भारत व्यासपीठ की पहल है। इससे पहले भी महाराष्ट्र के ठाणे में इस तरह की पहल की गई थी जो सफल रही थी। ठाणे में एक ट्रैफिक सिग्नल फ्लाईओवर के नीचे एक शिपिंग कंटेनर से एक रंगीन क्लासरूम बनाया गया, जिसमें सिग्नल पर काम करने वाले बच्चे पढ़ते हैं। सोशल मीडिया पर इस नई पहल की खूब चर्चा हो रही है और लोग इस तरह की पहल देश के सभी शहरों में शुरू करने की मांग कर रहे हैं।
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सड़क पर पढ़ेंगे बच्चे
समर्थ भारत व्यासपीठ की पहल पर ट्रैफिक सिग्नल पर स्कूल चलया जा रहा है। इसके CEO बी सावंत ने कहा, 'इस स्कूल में सिर्फ ABC और 123 नहीं पढ़ाया जाएगा। इससे इन बच्चों को सपने देखने का एक मौका भी मिलेगा ताकि वे अपनी सड़क की मुश्किल जिंदगी से बाहर आ सकें।' यह स्कूल आधिकारिक तौर पर इसी साल जून में शुरू किया गया था। इस स्कूल में 45 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें 25 लड़कियां और 20 लड़के हैं। इनमें से 25 प्री प्राइमरी, 10 पहली क्लास में, 7 बच्चे 5वीं क्लास में और 8 बच्चे 6वीं क्लास में पढ़ रहे हैं।
स्कूल भेजने को राजी नहीं थे माता-पिता
समर्थ भारत व्यासपीठ की को इस स्कूल को शुरू करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी। शुरूआत में बच्चों के माता-पिता बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए राजी नहीं थे। व्यासपीठ ने माता-पिता की काउंसलिंग करवाई और उन्हें समझाया। इस स्कूल से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'इन बच्चों के माता-पिता ने बच्चों की पढ़ाई के बारे में कभी सोचा ही नहीं था। ऐसे माता-पिता को मनाना बहुत मुश्किल काम था।'
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स्कूल में कैसे होती है पढ़ाई?
स्कूल में बच्चों के लिए हर व्यवस्था की गई है। बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने के लिए एक स्कूल बस लगाई गई है। स्कूल अधिकारियों का कहना है कि स्कूल बस के कारण लगभग 80 प्रतिशत बच्चे रोज स्कूल आते हैं। स्कूल में पढ़ने वाले अधिकतर स्टूडेंट्स गरीब परिवारों से आते हैं जिनके घरों में बेसिक सुविधाएं भी नहीं है। कई बच्चे बिना नहाए स्कूल आते हैं। इसलिए स्कूल में ऐसी सुविधा का इंतजाम किया गया है कि स्कूल के केयरटेकर बच्चों को साफ-सुथरा और क्लास के लिए तैयार होने में मदद करते हैं।
तैयार होने के बाद बच्चे क्लास शुरू होने से पहले स्कूल में ही नाश्ता करते हैं। स्कूल में किताबी पढ़ाई के अलावा पर्सनैलिटी डेवलपमेंट, सोशल स्किल्स को भी शामिल किया गया है। इस स्कूल की एक टीचर ने कहा, 'हम चाहते हैं कि बच्चे सिर्फ पढ़ाई न करें बल्कि उनके अंदर दुनिया का सामना करने का आत्मविश्वास भी आए।' स्कूल में बच्चों की पढ़ाई से लेकर हेल्थ तक हर छोटी चीज का ध्यान रखा जाता है।
साइकोलॉजिस्ट सेशन्स
स्कूल की एक टीचर ने बताया कि बच्चों के लिए हर हफ्ते फ्ते साइकोलॉजिस्ट का सेशन करवाया जाता है। समर्थ भारत व्यासपीठ के CEO बी सावंत ने कहा, 'यहां पढ़ने वाले ढेरों स्टूडेंट्स ने अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ ट्रॉमा देखा है। उनकी काउंसलिंग करना मैथ्स और लैंग्वेज पढ़ाने जितना ही जरूरी है।'
यह स्कूल अब इन बच्चों के लिए पढ़ाई करने की एक जगह ही नहीं बल्कि एक सुरक्षित जगह बन चुकी है। यह स्कूल इन बच्चों को बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने में मदद कर रहा है। इस स्कूल में पढ़ने वाली एक बच्ची ने कहा कि मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है, मैं यहां नई चीजें सीखती हूं और जब कुछ समझ नहीं आता तो टीचर्स मेरी मदद करती है, मैं भी बड़ी होकर टीचर बनना चाहती हूं।