औराई विधानसभा: क्या BJP फिर मारेगी बाजी या RJD रोकेगी जीत का पहिया
मुजफ्फरपुर जिले की औराई सीट पर इस बार देखना होगा कि एनडीए अपनी साख बचा पाती या कि जेडीयू उसे परास्त कर पाएगी।

मुज़फ़्फ़रपुर जिले की औराई विधानसभा सीट उत्तर बिहार की राजनीति में एक खास पहचान रखती है। यह इलाका मुख्य रूप से ग्रामीण और कृषि आधारित है, जहां खेती-किसानी लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन है। बागमती और लखनदेई नदी के पानी की वजह से बाढ़ आती रहती है का पानी लगा रहता है जो कि यहां के लोगों की जिंदगी पर गहरा असर डालती है। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र उपजाऊ मिट्टी और धान-गेहूं की खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन प्राकृतिक आपदाएं विकास की राह में बड़ी रुकावट बनती रही हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से औराई मिथिला और भोजपुरी अंचल की मिली-जुली झलक पेश करता है। यहां मैथिली और भोजपुरी दोनों भाषाएं बोली जाती हैं, लोकगीतों और पारंपरिक मेलों का बड़ा महत्व है। जातीय समीकरण भी राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं—यादव, मुसलमान, भूमिहार, ब्राह्मण और अनुसूचित जाति समुदाय इस सीट के निर्णायक मतदाता माने जाते हैं।
औराई रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे साहित्यकार की धरती रही है जिन्होंने गेहूं और गुलाब जैसे साहित्य की रचना की। औराई की पहचान भी रामवृक्ष बेनीपुरी को लेकर है। वह 1957 से 1962 तक औराई के विधायक रहे । वह सोशलिस्ट पार्टी से विधायक थे। हालांकि, उनकी पहचान विधायक से कहीं ज्यादा साहित्यकार की थी। राजनीतिक इतिहास पर नज़र डालें तो यहां परंपरागत रूप से बीजेपी और आरजेडी के बीच कांटे की टक्कर रही है। 2010 और 2020 में बीजेपी ने जीत दर्ज की, जबकि 2015 में आरजेडी ने कब्ज़ा जमाया। फिलहाल विधायक राम सुरत कुमार (बीजेपी) हैं। विकास की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति, तथा रोज़गार की तलाश में युवाओं का पलायन यहां के प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं। आने वाले चुनाव में औराई एक बार फिर बिहार की राजनीति का अहम केंद्र बनने वाला है।
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क्या है समस्या?
इस सीट को बिहार का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित इलाका माना जाता है। यह क्षेत्र लंबे समय से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है। बाढ़ इस इलाके की प्रमुख समस्या है। खासकर कटरा प्रखंड की सभी 16 पंचायतें, जो औराई विधानसभा में आती हैं, लगभग छह महीने तक बाढ़ के पानी से घिरी रहती हैं। इसके चलते खेती-किसानी बुरी तरह प्रभावित होती है और स्थानीय लोगों को आजीविका के संकट से जूझना पड़ता है।
बाढ़ के कारण यहां आवागमन भी बड़ी चुनौती है। आज भी कई गांवों के लोग चाचरी पुलों के सहारे आना-जाना करने को मजबूर हैं। बागमती परियोजना के तहत जिन 36 गांवों के लोगों को विस्थापित किया गया था, उनका पुनर्वास अब तक ठीक से नहीं हो पाया। न तो पर्याप्त मुआवजा मिला है और न ही उन्हें ऊंचे सुरक्षित स्थानों पर बसाया गया है।
इसके अलावा, किसानों को नीलगाय और जंगली सुअरों की तबाही से भी नुकसान उठाना पड़ता है। सिंचाई व्यवस्था बेहद कमजोर है—सरकारी नलकूप वर्षों से बंद पड़े हैं, जिससे किसानों को फसल बचाने के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। नतीजतन, औराई क्षेत्र के लोग हर साल बाढ़ और सुखाड़ की दोहरी मार झेलने को विवश हैं।
सामाजिक समीकरण
औराई विधानसभा की आबादी मुख्य रूप से ग्रामीण है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां अनुसूचित जाति की अच्छी-खासी आबादी है, जबकि यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण और मुसलमान मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अनुमान है कि यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 15 प्रतिशत है। यादव और कुशवाहा मतदाता परंपरागत रूप से आरजेडी और जेडीयू के समर्थन में रहते हैं, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।
मौजूदा समीकरण
यहां का राजनीतिक समीकरण जातीय संतुलन और पार्टी गठबंधनों पर आधारित है। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार राम सुरत राय ने बड़ी जीत हासिल की थी और फिलहाल वे ही यहां के विधायक हैं। इस जीत के साथ ही औराई विधानसभा में एनडीए की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
हालांकि, औराई का चुनावी इतिहास बताता है कि यह सीट एकतरफ़ा नहीं रही है। 2015 में यहां आरजेडी ने जीत दर्ज की थी, जबकि 2010 और 2020 में बीजेपी ने कब्ज़ा जमाया था। इसका अर्थ है कि मतदाता परिस्थितियों और उम्मीदवारों के आधार पर बार-बार अपना रुख बदलते रहे हैं। यादव और मुसलमान मतदाता परंपरागत रूप से आरजेडी के समर्थन में रहते हैं, जबकि सवर्ण और ओबीसी समुदाय का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ जुड़ा माना जाता है। अनुसूचित जाति की संख्या भी यहां निर्णायक है, जो दलों के लिए अहम वोट बैंक साबित होती है।
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2020 में क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में औराई सीट (मुज़फ़्फ़रपुर जिला) पर मुकाबला बेहद दिलचस्प रहा। इस चुनाव में मुख्य संघर्ष बीजेपी और वामदल (भाकपा माले) के बीच देखने को मिला। बीजेपी ने अपने उम्मीदवार राम सुरत कुमार को मैदान में उतारा, जबकि भाकपा माले की ओर से मोहम्मद अफ़ताब आलम प्रत्याशी थे।
परिणाम में बीजेपी ने यहाँ स्पष्ट जीत दर्ज की। राम सुरत कुमार (बीजेपी) को लगभग 90,479 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी मोहम्मद अफ़ताब आलम (भाकपा माले) को करीब 42,613 वोट हासिल हुए। इस तरह बीजेपी ने लगभग 47,800 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। अन्य दलों, जैसे आरजेडी और कांग्रेस, का प्रभाव इस चुनाव में बेहद सीमित रहा और मुकाबला सीधे तौर पर बीजेपी बनाम भाकपा माले के बीच सिमट गया।
इस नतीजे ने यह साफ कर दिया कि 2020 में औराई विधानसभा पर बीजेपी की पकड़ मजबूत रही। स्थानीय मुद्दों के बावजूद, मोदी-नीतीश गठबंधन और संगठनात्मक ढांचे ने बीजेपी को बढ़त दिलाई। वहीं विपक्षी दलों के बिखरे रहने से मतों का बंटवारा हुआ, जिसका सीधा लाभ सत्तारूढ़ एनडीए को मिला।
विधायक का परिचय
राम सूरत राय का राजनीतिक सफर स्थानीय स्तर से शुरू हुआ और धीरे-धीरे वे संगठन में मजबूत होते गए। उन्होंने 1993 में बी.कॉम की डिग्री बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ्फरपुर से हासिल की। राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही वे संगठन और स्थानीय मुद्दों से जुड़े रहे, जिसके कारण उन्हें जनता का समर्थन मिलता रहा।
आर्थिक स्थिति की बात करें तो उनके पास कुल संपत्ति लगभग 2.43 करोड़ रुपये और देनदारी लगभग 47 लाख रुपये है। इससे पहले 2009 में उनकी कुल संपत्ति लगभग 94 लाख रुपये दर्ज थी और उस समय उनकी देनदारी करीब 36 लाख रुपये थी। इन आंकड़ों से साफ है कि वर्षों में उनकी संपत्ति में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
हालांकि, उनके राजनीतिक करियर पर विवाद भी कम नहीं रहे। चुनावी शपथपत्र के अनुसार, उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन मामलों में दंगा करने (धारा 147, 148), सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी के दौरान चोट पहुंचाना (धारा 332, 353), साधारण मारपीट (धारा 323), गलत तरीके से बंधक बनाना (धारा 342), शांति भंग करने वाली गाली-गलौज (धारा 504) और फर्जी पहचान का इस्तेमाल (धारा 171) जैसी गंभीर धाराएं शामिल रही हैं।
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विधानसभा का इतिहास
यहाँ 1967 से लेकर अब तक औराई विधानसभा सीट पर अलग अलग पार्टियों के नेताओं ने जीत हासिल की:
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1967 – सीपीएम सिंह (कांग्रेस)
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1969 – पांडव राय (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
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1972 – रामबाबू सिंह (कांग्रेस)
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1977 – गणेश प्रसाद यादव (जनता पार्टी)
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1980 – गणेश प्रसाद यादव (जनता पार्टी)
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1985 – गणेश प्रसाद यादव (जनता पार्टी)
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1990 – गणेश प्रसाद यादव (जनता दल)
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1995 – गणेश प्रसाद यादव (जनता दल)
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2000 – गणेश प्रसाद यादव (जेडीयू)
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फरवरी 2005 – अर्जुन राय (जेडीयू)
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अक्टूबर 2005 – अर्जुन राय (जेडीयू)
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2010 – रामसूरत राय (बीजेपी)
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2015 – सुरेंद्र कुमार यादव (आरजेडी)
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2020 – रामसूरत राय (बीजेपी)
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