दिल्ली में कूड़े के पहाड़ अक्सर चर्चा में रहते हैं। ऐसा ही एक पहाड़ यानी भलस्वा लैंडफिल साइट जिस विधानसभा क्षेत्र में आता है उसी का नाम है बादली विधानसभा। पारंपरिक रूप से यादव बाहुल्य सीट रही इस सीट पर इस बार भी मुख्य मुकाबला यादवों के बीच ही है। दो बार के विधायक अजेश यादव और दो बार के पूर्व विधायक देवेंद्र यादव के अलावा इस सीट पर बीजेपी ने भी दम झोंक रखा है। इसी वजह से सीट ऐसी विधानसभा सीटों में गिनी जा रही है जहां मुकाबला त्रिकोणीय होने की पूरी उम्मीद की जा रही है। देवेंद्र यादव ने चुनाव से पहले से भी पूरी दिल्ली के साथ-साथ बादली में भी खूब मेहनत की है और बादली की समस्याओं को भी उजागर करने की कोशिश की है।
इस विधानसभा सीट के अंतर्गत एमसीडी के चार वार्ड- भलस्वा, जहांगीर पुरी, सरूप नगर और समयपुर बादली हैं। 2022 के एमसीडी चुनाव में भलस्वा वार्ड में AAP के अजीत सिंह यादव, जहांगीरपुरी में AAP की टिम्सी शर्मा और सरूप नगर में AAP के जोगिंदर यादव को जीत मिली थी। समयपुर बादली सीट पर बीजेपी की गायत्री यादव चुनाव जीती थीं। बीजेपी ने इन्हीं गायत्री यादव के पति दीपक चौधरी को विधानसभा चुनाव में उतारा है। अपनी जमीन वापस पाने की कोशिश में लगी कांग्रेस के देवेंद्र यादव के लिए यह लड़ाई साख की है। वहीं, बीजेपी किसी भी हाल में बाहरी दिल्ली की सीटों पर भी खुद को साबित करने में लगी है। AAP के सामने चुनौती यह है कि वह 10 साल के अपने कार्यकाल को जस्टिफाई कर पाए और उस आधार पर वोट मांग पाए।
बादली की समस्याएं क्या हैं?
यह इलाका भलस्वा में स्थित कूड़े के पहाड़ से सटा हुआ है। बदहाल सड़कें, गंदगी, स्ट्रीट लाइट की कमी की वजह से अंधेरे की समस्या यहां के लिए मुख्य मुद्दा है। मुख्य सड़कों के अलावा अंदर की सड़कें तो और चिंताजनक हैं। लगातार मेट्रो का निर्माण कार्य होते रहने और सीवर व्यवस्था बदहाल होने के चलते स्थानीय लोगों को कई सालों से समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, बाहरी दिल्ली की अन्य सीटों की तरह ही यहां भी रेहड़ी-पटरी वालों के अतिक्रमण के चलते सड़कें चलने लायक नहीं बचती हैं।
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2020 में क्या हुआ था?
2020 के चुनाव में भी कांग्रेस के नेता देवेंद्र यादव इस सीट से उतरे। AAP ने अपने विधायक अजेश यादव को फिर टिकट दिया। वहीं, बीजेपी ने 2013 में चुनाव हारने वाले विजय कुमार भगत पर भरोसा जताया। चुनाव नतीजों में AAP की बंपर लहर दिखी। अजेश यादव के वोटों में कमी जरूर आई लेकिन वह 49.65 वोट पाकर अपने प्रतिद्वंद्वी से काफी आगे रहे। दूसरे नंबर पर रहे विजय कुमार भगत 40 हजार वोटों तक ही पहुंच पाए। वहीं, इस सीट से दो बार विधायक रहे देवेंद्र यादव 27 हजार वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे।
विधानसभा का इतिहास
1993 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर शुरुआत तीन चुनाव में बीजेपी का कब्जा रहा है। बीजेपी के जय भगवान अग्रवाल 1993, 1998 और 2003 में चुनाव जीतते रहे। 2008 में कांग्रेस के देवेंद्र यादव ने इस सीट से चुनाव जीता और 2013 में भी अपना परचम लहराने में कामयाब रहे। 2015 और 2020 में AAP के अजेश यादव ने इस सीट से चुनाव जीता। देवेंद्र यादव दो चुनाव हार चुके हैं। वहीं, बीजेपी ने दोनों बार अलद-अलग लोगों को चुनाव लड़वाया है। इस बार भी बीजेपी ने उम्मीदवार बदला है।
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समीकरण
यादव बाहुल्य कही जाने वाली इस सीट पर गांव के मतदाता भी काफी संख्या में हैं। यही वजह है कि हर चुनाव में राजनीतिक दल यहां पर इसी जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताते आए हैं। इस बार भी तीनों प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार यादव जाति से ही हैं।