बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) से जुड़े केस में चुनाव आयोग, दस्तावेजों की लिस्ट में बदलाव करने के लिए तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को हुई सुनवाई में चुनाव आयोग को सुझाव दिया था कि आधार, वोटर और राशन कार्ड को भी दस्तावेज माना जाए। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव पर असहमति जताई है। चुनाव आयोग का कहना है कि फिर बिहार में मतदाता लिस्ट संशोधन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
चुनाव आयोग का तर्क है कि आधार कार्ड सिर्फ पहचान प्रमाण पत्र है। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने फर्जी राशन कार्ड बनवाए हैं, जिससे मुफ्त की योजनाओं का लाभ लिया जा सके। ऐसे में अगर वोटर कार्ड पर भी भरोसा जताया जाए तो वह भी संदेहास्पद होंगे। चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि अगर वोटर लिस्ट में नाम नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी नागरिकता छीन ली जाएगी।
चुनाव आयोग के तर्क क्या हैं?
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे के आधार पर कहा है कि किसी के मूलभूत अधिकारों को छीना नहीं गया है। सुप्रीम कोर्ट में कुल 11 राजनीतिक पार्टियों ने एसआईआर के खिलाफ अर्जी दी है। उनका कहना है कि यह बिहार से लाखों लोगों को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि बिहार में सरकार बैक डोर से एनआरसी लागू करने की साजिश कर रही है।
SIR से नागरिकता का लेना-देना नहीं
विपक्षी पार्टियों की मांग है कि सरकार अपने इस फैसले को वापस ले ले। चुनाव आयोग का कहना है कि नागरिकता अधिनियम की धारा 9 का बिहार के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन से कोई लेना-देना नहीं है। कोई नागरिक अगर वोटर लिस्ट में नामांकित नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसकी नागरिकता छीन ली जाएगी।
राशन कार्ड पर क्या है आयोग का रुख?
चुनाव आयोग का तर्क है कि अगर पहले दर्ज वोटर लिस्ट को ही आधार बनाकर नई वोटर लिस्ट तैयार की जाए तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। चुनाव आयोग ने कहा है कि राज्यभर में फर्जी राशन कार्डों की भरमार है। 11 दस्तावेजों का होना इसी वजह से जरूरी है।
आधार क्यों मान्य नहीं?
चुनाव आयोग ने कहा, 'आधार कार्ड सिर्फ किसी एक व्यक्ति का पहचान पत्र हो सकता है। कोई भी शख्स या इस कार्ड के जरिए यह बता सकता है कि वह कौन है।'