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कहीं टिकट वापसी तो कहीं रैली से खुद गायब हुए नेता, बिहार चुनाव में क्या हो रहा?

बिहार विधानसभा चुनाव में अजीब घटनाएं देखने को मिल रही हैं। कहीं पर नेता टिकट न मिलने की वजह से कफन ओढ़कर बैठ रहे हैं तो कहीं नामांकन रैली से ही गायब हो जा रहे हैं।

ajay jha and salauddin

अजय झा और डॉ. सलाउद्दीन

संजय सिंह, पटना: चुनाव के दौरान अजीब-ओ-गरीब किस्से और कहानी सुनने को मिलते हैं। कहीं बागियों को मनाने समझाने का दौर चल रहा है तो कहीं महागठबंधन के दो दलों के बीच तलवारें खींची हुई है। भागलपुर में नामांकन के दौरान गजब घटना हुई। महागठबंधन में सीट शेयरिंग के दौरान यह सीट कांग्रेस के पाले में गई थी। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अजीत शर्मा पिछले चुनाव में भी विजयी हुए थे। इस बार भी वे पूरी ताकत से चुनाव मैदान में डटे हैं।

 

डिप्टी मेयर डॉ. सलाउद्दीन भी आरजेडी टिकट से इस सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। समझौते के कारण पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। पार्टी के फैसले से नाराज होकर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बनाया। मुस्लिम डिग्री कॉलेज से बड़े तामझाम से उन्होंने नामांकन जुलूस निकाला। लेकिन रास्ते में उनकी मुलाकात झारखंड में आरजेडी कोटे से मंत्री बने संजय यादव से हो गई। दोनों के बीच थोड़ी देर बातचीत हुई फिर नामांकन करने जा रहे उम्मीदवार अपनी गाड़ी से उतरकर मंत्री की गाड़ी में बैठ गए। निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थक उनके आने का इंतजार करते रहे पर वे लौटकर नहीं आए। परिणाम स्वरूप उनका नामांकन का पर्चा नही भरा जा सका। इसके बाद उनके समर्थक निराश होकर लौट गए।

 

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कफन बांधने से भी नहीं हुआ काम 

अररिया के बीजेपी नेता अजय झा इन दिनों चर्चा में हैं। वे बीजेपी के टिकट पर नरपतगंज से चुनाव लड़ना चाहते थे। चुनाव के पहले उनकी सक्रियता देखने लायक थी। बीजेपी के हर कार्यक्रम में वे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। उन्हें उम्मीद थी कि प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल टिकट दिलवाने में सफल होंगे, लेकिन पार्टी की ओर से उम्मीदवारों की सूची जारी हुई तो, उस सूची में झा जी का नाम नहीं था। विरोध स्वरूप कफन ओढ़कर धरने पर पत्नी के साथ बैठ गए।

 

फिर लोगों ने समझाया बुझाया तो निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए राजी हुए। बागी उम्मीदवार बनकर उन्होंने नामांकन भी कर दिया। उन्हें उम्मीद थी कि बागी बनने के बाद पार्टी के बड़े नेता उनके मान मनौव्वल के लिए आएंगे, लेकिन किस्मत ने फिर यहां उनका साथ नहीं दिया। स्क्रूटनी में उनका नाम ही रद्द हो गया। कफन ओढ़कर विरोध जताने वाला फार्मूला उनका काम नहीं आया। अब वे चुपचाप घर बैठ गए।

सुपौल में कांग्रेस ने दिया दो सिंबल

विभिन्न दलों में सिंबल पाने के लिए घमासान मचा हुआ है, लेकिन कांग्रेस के उदारवादी नेताओं ने सुपौल में चुनाव लड़ने के लिए दो-दो नेताओं को पार्टी का सिंबल दे दिया। वैसे भी कई स्थानों पर कांग्रेस और आरजेडी के बीच फ्रैंडली मुकाबला है। पार्टी ने 17 अक्टूबर को राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम को पार्टी का सिंबल दिया था। फिर रविवार को पार्टी के नेताओं ने मिन्नत रहमानी को सिंबल दे दिया।

 

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वैसे भी सुपौल विधानसभा क्षेत्र से लगातार आठ बार से विधानसभा का चुनाव विजेंद्र यादव जीत रहे हैं। उनकी गिनती बिहार के सबसे बुजुर्ग विधायकों में होती है। पार्टी नेताओं के मान मनौव्वल के बाद अनुपम ने नेताओं के कहने पर पार्टी का सिंबल वापस कर दिया। अनुपम की उदारता की चर्चा पूरे इलाके में हो रही है। लोग कह रहे हैं कि टिकट को लेकर एक ओर जहां मारामारी चल रही है वहीं दूसरे ओर सिंबल लेकर वापस करना बड़ी बात है।

 

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