संजय सिंह, पटना: बहुजन समाज पार्टी (BSP) उत्तर प्रदेश के समीकरण वाले फार्मूले को बिहार की धरती पर अपनाने की तैयारी में है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति एनडीए और महागठबंधन के बीच बंटी हुई है। इन दोनों महागठबंधनों के बीच बहुजन की राजनीति से इंकार नहीं किया जा सकता है। यूपी और बिहार के सीमा वाले इलाकों में बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव कुछ हद तक है। मायावती बिहार में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाकर उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी और संगठन को मजबूत करना चाहती है। यदि सचमुच बहुजन समाज पार्टी 243 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो एनडीए और महागठबंधन दोनों को नफा और नुकसान होगा।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी का फोकस सिर्फ टिकट बांटने पर नहीं है। इस बहाने पार्टी बूथ स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करना चाहती है। दलित और अतिपिछड़ी जातियों के माध्यम से अपने समीकरणों को साधने के लिए गांव में पैठ बनाने की जुगाड में भी है। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू सभी सामाजिक न्याय की बात करती है लेकिन आज की तारीख में भी बहुजन को जो राजनीतिक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है।
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बहुजन वोटों पर सबकी नजर
चुनाव जीतने के लिए बहुजन वोट की जरूरत सभी दलों को है। कांग्रेस की भी पैनी नजर बहुजन वोटों पर है। कांग्रेस ने इसके लिए अपने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को हटाकर विधायक राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इस बदलाव के बहाने कांग्रेस बहुजनों को अपनी ओर खींचना चाहती है। पूर्व में यह वोट बैंक कांग्रेस के साथ था। हाल के वर्षों में इस वोट बैंक में सेंधमारी हो रही है।
एनडीए से जन सुराज तक, सब चल रहे दांव
कुछ वोट आरजेडी के पास है तो कुछ वोट जेडीयू के पास। जन सुराज भी तीसरा कोण बनाने का प्रयास कर रही है। एनडीए केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी और चिराग पासवान के दम पर इस वोट को अपने पक्ष में करने में लगी है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती कह चुकी है कि इस विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र रूप से वह अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा करेंगी।
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बहुजन समाज पार्टी का प्लान क्या है?
बहुजन समाज पार्टी सर्वाधिक टिकटें दलित, अतिपिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के प्रत्याशियों को देगी। चुनावी राजनीति में बहुजन समाज पार्टी कभी बिहार में राजनीतिक रूप से सफल नहीं रही, लेकिन पार्टी नेताओं का मानना है कि इन वर्गों में चुनाव के बहाने राजनीतिक जागृति लाकर संख्या बल और संगठन को मजबूत किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में इसी समीकरण को साधकर मायावती सत्ता में आईं थीं। बहुजन समाज पार्टी नेताओं का मानना है कि बहुजनों का समीकरण यदि एक साथ खड़ा हुआ तो यहां की राजनीति में बदलाव आ सकता है।
मायावती के सामने चुनौतियां क्या हैं?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि नया राजनीतिक समीकरण तैयार करने में बहुजन समाज पार्टी के समक्ष बहुत चुनौतियां भी है। आरजेडी का आधार वोट बैंक अल्पसंख्यक और पिछड़ा है। इस गोलबंदी को तोड़ना आसान नहीं है। वहीं जेडीयू ने अपनी मजबूत पकड़ अतिपिछड़ों पर बनाई है। यह पकड़ भी मजबूत है।
बिहार की दलित राजनीति में मायावती से ज्यादा प्रभाव रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की है। केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी भी अपने को इस वर्ग का मजबूत नेता मानते हैं। यहां की बहुजन राजनीति भी इन्हीं नेताओं के इर्द गिर्द घूमती है। ऐसी स्थिति में बहुजन समाज पार्टी को अपनी पैठ बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।