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कटिहार: 7 में से तीन सीटें जीतने वाली BJP की कौन बढ़ा सकता मुश्किल?

कटिहार जिले की सात विधानसभा सीटों में से 3 पर बीजेपी का कब्जा है। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीज होता है। कुछ सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं। वहां बीजेपी के सामने गैर-मुस्लिम मतों को एकजुट करने की चुनौती है।

Katihar district.

कटिहार जिले का समीकरण। (Photo Credit: Khabargaon)

बिहार के कटिहार जिले का सियासी मिजाज मिला-जुला है। शुरुआती कुछ चुनाव में कांग्रेस का दबदबा रहा। सामाजिक न्याय की आवाज उठी तो समाजवादी दलों को भी जनता ने मौका दिया। बाद में कटिहार की जनता ने बीजेपी को भी उसी भाव से स्वीकार किया, जैसे कभी कांग्रेस का यहां प्रभुत्व रहा। कुछ क्षेत्र में वामदलों का असर आज भी महसूस किया जाता है। कांग्रेस के दिग्गज नेता तारिक अनवर के गढ़ बनने से पहले कटिहार की जनता कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी पर भरोसा जता चुकी थी। 

 

जिले में कुल सात विधानसभा सीटे हैं। इनमें कटिहार, बरारी, प्राणपुर, मनिहारी, बलरामपुर, कदवा और कोढ़ा विधानसभा सीट शामिल हैं। पिछले चुनाव में कटिहार जिले में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच देखने को मिला था। सबसे अधिक तीन सीटों पर बीजेपी, दो पर कांग्रेस और जेडीयू व भाकपा माले का एक-एक सीट पर कब्जा हुआ था। अबकी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने तीनों मौजूदा विधायकों पर एक बार दोबारा भरोसा जताया है। 

 

कटिहार जिले का इतिहास महाभारत कालीन माना जाता है। इसके अलावा महाजनपद काल में यह इलाका अंग और मगध के आधीन रहा। 12वीं शताब्दी में जब बख्तियार खिलजी ने बिहार पर जीत हासिल की तो कटिहार मुस्लिम शासकों के अधीन आ गया। साल 1770 में पूर्णिया के गवर्नर मोहम्मद अली खान ने कटिहार को अंग्रेजों के हवाले कर दिया। बाद में कटिहार को 1872 में कलकत्ता राजस्व बोर्ड और बनारस राजस्व बोर्ड में स्थानांतरित किया गया। अंग्रेजों के शासनकाल में कटिहार में जमींदारों की हुकूमत थी।

 

नवाबों की मदद से शासन व्यवस्था चलाई जाती थी। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद साल 1973 में पूर्णिया से अलग करके कटिहार नाम का नया जिला बनाया गया। कटिहार जिले में चौधरी परिवार का दबदबा रहा है। उनके पास कटिहार में 15 हजार और पूर्णिया में 8500 एकड़ जमीन थी। खान बहादुर मोहम्मद बक्श चौधरी परिवार के संस्थापक थे।

 

जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा। 14 नवंबर को मतगणना होगी। चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 20 अक्टूबर है। 21 को नामांकन पत्रों की जांच होगी। 23 अक्टूबर नाम वापसी की आखिरी तारीख है। 

राजनीतिक समीकरण

कटिहार में हमेशा कांग्रेस का दबदबा रहा। 90 के दशक के बाद बीजेपी ने कांग्रेस के सामने चुनौती पेश की। 1999 से 2009 तक लगातार तीन बार बीजेपी के निखिल कुमार चौधरी लोकसभा चुनाव जीते। 2014 में तारिक अनवर ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीता। 2019 में कटिहार लोकसभा सीट पर जेडीयू ने कब्जा किया। 2024 में तारिक अनवर ने छठवीं बार जीत हासिल की।

 

विधानसभा चुनाव में भी कटिहार की जनता ने कांग्रेस, बीजेपी के अलावा समाजवादी दलों को मौका दिया। कटिहार विधानसभा सीट पर बीजेपी नेता तारकिशोर प्रसाद का साल 2005 से कब्जा है। लगभग 25.9 फीसद मुस्लिम मतदाताओं के बावजूद यहां बीजेपी के दबदबे को तोड़ नहीं पाया है। 

 

कदवा विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता शकील अहमद खान 2015 से विधायक हैं। कांग्रेस को यहां लगभग 32 फीसद मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलता है। हालांकि लगभग 30 फीसद ईबीसी की भूमिका भी निर्णायक है। 17 फीसद ओबीसी मतदाता भी खेल बिगड़ने की ताकत रखते हैं। मगर एकजुट होना जरूरी है। अगर अन्य जातिगत समीकरण की बात करें तो कदवा में सामान्य वर्ग की 5, अनुसूचित जाति की 9 और अनुसूचित जनजाति की 5 फीसद हिस्सेदारी है। बलरामपुर विधानसभा सीट ने सिर्फ तीन चुनाव जीते हैं। यहां अभी तक किसी भी राष्ट्रीय दल को जीत नसीब नहीं हुई है। 

 

प्राणपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कोई खास प्रभाव नहीं है। इसकी एक वजह 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद यहां होने वाला पहला चुनाव है। उस वक्त चली कांग्रेस विरोधी हवा का असर आज तक देखा जा रहा है। पिछले तीन चुनाव से प्राणपुर पर बीजेपी का कब्जा है। इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स का दबदबा है। करीब 47 फीसद उनकी हिस्सेदारी है। मगर वोट में बिखराव होने का फायदा बीजेपी को मिलता है।

 

मनिहारी विधानसभा की जनता ने चेहरों पर अधिक दांव लगाया है। यहां शुरुआत में कांग्रेस कमजोर रही, लेकिन 90 के दशक में वापसी की। मौजूदा समय में कांग्रेस नेता मनोहर प्रसाद सिंह मनिहारी से विधायक हैं। विधानसभा क्षेत्र में लगभग 38.90 फीसद मुस्लिम वोटर्स की भूमिका कांग्रेस की जीत में अहम है।

 

बरारी की जनता पिछले तीन चुनाव से अलग-अलग दलों पर दांव लगा रही है। अभी यह सीट जेडीयू के खाते में है। अगर सीट के समीकरण की बात करें तो लगभग 29.80 फीसद मुस्लिम वोटर्स की यहां निर्णायक भूमिका होती है।

 

कोढ़ा विधानसभा से बीजेपी की कविता देवी विधायक हैं। विधानसभा क्षेत्र में लगभग 31.5 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं। अन्य दल मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेलते हैं। इससे मतों का बंटवारा होता है और सीधा फायदा बीजेपी को मिलता है। कोढ़ा में 12.9 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 7.88 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं।

विधानसभा सीटें: 

बलरामपुर विधानसभा: यह सीट साल 2010 में अस्तित्व में आई। पहले चुनाव में बलरामपुर की जनता ने निर्दलीय दुलाल चंद्र गोस्वामी पर भरोसा जताया। इसके बाद 2015 और 2020 के चुनाव में भाकपा माले के महबूब आलम के सिर जीत का सेहरा सजा। बलरामपुर कटिहार जिले की इकलौती सीट है, जिस पर अभी तक किसी राष्ट्रीय दल को जीत नहीं मिली।

 

कदवा विधानसभा: इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा। उसे सात बार जीत मिली। चार बार कदवा की जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों पर दांव लगाया। 2015 से कांग्रेस नेता शकील अहमद खान विधायक हैं। 1995 और 2010 में दो बार बीजेपी को जीत मिली। अब्दुल जलील की बदौलत एनसीपी भी दो बार जीत का परचम लहराने में सफल रही।

 

प्राणपुर विधानसभा: 1977 में पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई। जनता पार्टी के महेंद्र नारायण यादव पहली बार प्राणपुर से विधायक बने। तीन साल बाद 1980 में कांग्रेस ने वापसी की। 1985 में आखिरी जीत हासिल करने वाली कांग्रेस पिछले 40 साल से यहां धूल फांक रही है। 2010 से प्राणपुर सीट पर बीजेपी के दबदबे कोई भी दल चुनौती नहीं दे सका। अगर जीत की बात करें तो प्राणपुर से अभी तक कांग्रेस, जनता दल और आरजेडी दो-दो बार जीत चुकी है। एक बार जनता पार्टी को भी मौका मिला। सबसे अधिक चार बार बीजेपी ने जीत का पताका फहराया।  

 

मनिहार विधानसभा: 1962 से 1972 तक मनिहारी में युवराज का दबदबा रहा है। वे लगातार चार बार विधायक बने। 1977 और 1980 में राम सिपाही यादव ने जनता पार्टी को जीत दिलाई। 1957 में पहला चुनाव जीतने वाली कांग्रेस को 1985 में मो. मुबारक हुसैन ने दूसरी जीत दिलाई। वे चार बार विधायक रहे। साल 2010 से मनिहारी सीट पर मनोहर प्रसाद सिंह का कब्जा है। वे पहली बार जेडीयू से जीते। मगर 2015 और 2020 का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जीता। इस सीट पर बीजेपी अभी तक नहीं जीती है।

 

बरारी विधानसभा: इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस 1980 के बाद नहीं जीती। उसे कुल 5 बार जीत मिली। 1977 में जनता पार्टी के जीत के बाद बरारी में हवा बदली। 90 के दशक में निर्दलीय और समाजवादी दलों पर लोगों ने अधिक भरोसा जताया। बरारी से वसुदेव प्रसाद कुल चार बार विधायक रहे। मुहम्मद सकूर और मंसूर आलम को तीन-तीन बार मौका मिला। 2005 और 2010 में बिहास चंद्र चौधरी ने लगातार दो बार बीजेपी को जीत दिलाई। 2015 में आरजेडी ने पहली तो 2020 में जेडीयू ने अपनी पहली जीत हासिल की।

 

कोढ़ा विधानसभा: यह विधानसभा सीट बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री का गढ़ रही है। 1667 से 1972 वे तीन बार विधायक रहे। मौजूदा समय में बीजेपी की कविता देवी विधायक हैं। कोढ़ा विधानसभा सीट पर बीजेपी को तीन, कांग्रेस को छह, जनता दल को दो और जनता पार्टी को एक बार जीत मिली। खास बात यह है कि कोढ़ा सीट पर बिहार के दो बड़े दल जेडीयू और आरजेडी को अभी तक जीत नहीं मिली।

 

कटिहार विधानसभा: यहां बीजेपी का दबदबा है। पिछले तीन चुनाव से उसे कोई शिकस्त नहीं दे सका। तारकिशोर प्रसाद लगातार चार बार से विधायक हैं। राम प्रकाश महतो ने आरजेडी को यहां दो बार जीत दिलाई। हालांकि 20 साल से उसे अपनी तीसरी जीत का इंतजार है। कटिहार सीट पर कांग्रेस चार, जनसंघ, लोकतांत्रिक कांग्रेस, सीपीआई, जनता पार्टी और जनता दल को एक-एक बार जीत मिली।

जिले का प्रोफाइल

कटिहार जिला लगभग 3,056 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। करीब 30 लाख यहां की आबादी है। तीन अनुमंडल और 16 प्रखंड वाले इस जिले में कुल 1547 गांव हैं। शहर और कस्बों की सरकार तीन शहरी निकायों से संचालित होती है। साक्षरता के मामले में जिला काफी पिछड़ा है। यहां की सिर्फ 52.24 फीसद जनता ही पढ़ी-लिखी है। 

 

कुल विधानसभा सीटें: 7

बीजेपी: 3

कांग्रेस: 2

जेडीयू: 1

भाकपा माले: 1



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