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दूसरे राज्य के नेताओं को बिहार क्यों बुला रही हैं पार्टियां?

बिहार में सभी पार्टियां जातिगत वोटों को साधने के लिए बाहरी नेताओं को बुलाने पर जोर दे रही हैं। बीजेपी 40 से ज्यादा नेताओं को मैदान में उतार चुकी है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

संजय सिंह, पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों में दूसरे राज्यों के नेताओं को बुलाने की होड़ लग गई है। बीजेपी पहले ही दूसरे प्रदेश के 45-45 सांसदों और विधायकों को मैदान में उतार चुकी है। अब कांग्रेस भी झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के ऐसे नेताओं को तलाश रही है। तलाश वैसे नेताओं की ज्यादा है जो यहां के जातीय समीकरण को साध सकें। झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी की मिली जुली सरकार भी है, जो बिहार के राजनीतिक समीकरण में फिट बैठती है। दोनो राज्यों के बीच राजनीतिक रिश्ता पुराना रहा है। सवर्ण, ओबीसी और दलित नेताओं को ज्यादा प्राथमिकता दी जाएगी।

 

जेडीयू का लव कुश वोट पर मजबूत पकड़ है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं इस जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुर्मी जाति पर मजबूत पकड़ के कारण कुशवाहा वोट बैंक का झुकाव भी एनडीए की ओर है। बीजेपी के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की तुलना में उपेंद्र कुशवाहा इस समाज के बड़े चेहरे हैं। इनका साथ एनडीए को है। कांग्रेस की मजबूरी है कि इस वोट बैंक में सेंधमारी कैसे करें। 

काग्रेस के पास कमी
कांग्रेस के पास बिहार में कुर्मी और कुशवाहा वोट बैंक को आकर्षित करने वाला कोई बड़ा चेहरा नहीं है। इक्के-दुक्के जो थे वे पाला बदलकर दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर अपना दांव लगाना चाहती है। वे छत्तीसगढ़ में कुर्मी समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। जातीय समीकरण को साधने के लिए उनका डिमांड बिहार में है, लेकिन नीतीश कुमार के आगे वे कुर्मी समाज को कितना साध पाएंगे यह वक्त बताएगा।


झारखंड के नेताओं पर भी दाव 

विधानसभा चुनाव में जातीय वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस झारखंड के कद्दावर नेताओं को भी बिहार बुलाएगी। झारखंड के सबसे बड़े कद्दावर नेताओं में सुबोध सहाय कांत की गिनती होती है। इनका संबंध वर्ष 1974 के आंदोलन से भी रहा है। पार्टी का मानना है कि इनके आने से कायस्थ समाज के वोटरों पर बेहतर प्रभाव पड़ेगा। गोड्डा की दीपिका पांडेय झारखंड सरकार में कांग्रेस कोटे से मंत्री हैं। 

 

गोड्डा बिहार की सीमा को छूता है। इनके आने से सवर्ण मतदाता कांग्रेस की ओर आकर्षित हो सकते हैं। बेरमो के विधायक कुमार जयमंगल के पिता राजेंद्र सिंह का प्रभाव बिहार की राजनीति में भी था। जयमंगल स्वयं ट्रेड यूनियन की राजनीति करते हैं। राजपूत मतदाताओं को पटाने के लिए जयमंगल को बिहार बुलाया जा सकता है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर, मंत्री राधाकृष्ण किशोर, केशव महतो कमलेश को भी बिहार विधानसभा चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी की जा रही है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के भी कद्दावर नेताओं को बुलाया जाएगा।

 

जेएमएम और आरजेडी का भी मिलेगा साथ

महागठबंधन को बिहार विधानसभा के चुनाव में जेएमएम और आरजेडी का साथ मिलेगा। झारखंड में आरजेडी कोटे से मंत्री संजय यादव स्वयं अपने बेटे को बिहार विधानसभा का चुनाव लड़वाना चाहते हैं। मंत्री का पैतृक आवास बिहार के बांका जिले में है। बेटे को यदि आरजेडी का टिकट मिलता है तो उसका राजनीतिक लाभ आसपास के कांग्रेस उम्मीदवारों को भी मिलेगा। 

 

इधर झारखंड मुक्ति मोर्चा भी महागठबंधन का हिस्सा है। कुछ सीटों पर जेएमएम को भी चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। बिहार में आदिवासियों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ही स्टार प्रचारक का काम करेंगे। इसका थोड़ा बहुत लाभ घटक दलों को मिल सकता है।

 

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