बिहार, देश के सबसे ज्यादा पलायन प्रभावित राज्यों में से एक है। बिहार की एक बड़ी आबादी दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में रहती है। बिहार सिर्फ पलायन की वजह से नहीं, इन उत्पादों की वजह से जाना जाता है। आइए जानते हैं।
मधुबनी पेंटिंग की प्रदर्शनी। (Photo Credit: PTI)
बिहार की 89 फीसदी आबादी गांव में रहती है। राज्य में बड़े उद्योग-धंधों की कमी है, जिसकी वजह से लोगों को रोजगार के लिए अपने राज्य से बाहर जाना पड़ता है। बिहार की 7.2 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कमाने के लिए राज्य के बाहर, दूसरे शहरों में पलायन कर चुकी है। बिहार सरकार, अपने आर्थिक सर्वे में मानती है कि राज्य पर 3.62 लाख करोड़ रुपये ज्यादा का कर्ज है। बिहार ने 44,608 करोड़ रुपये, केंद्र से कर्ज लिया है।
साल 2021 में एक मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स नीति आयोग ने जारी किया था, जिसमें बिहार को देश का सबसे गरीब राज्य बताया गया था। बिहार की 51.91 फीसदी आबादी गरीब है। झारखंड दूसरे नंबर पर है, जहां 42.16 प्रतिशत लोग गरीब हैं। अर्थव्यवस्था से लेकर सामाजिक स्थिति तक में खराब पायदान पर खड़े बिहार की अलग पहचान बनाने वाले भी कुछ उत्पाद ऐसे हैं, जिनके लिए बिहार देश में जाना है।
बिहार के इन उत्पादों को को जियोग्राफिकल आइडेंटिकेशन टैग या GI टैग भी मिला है। ये उत्पाद, न केवल बिहार की संस्कृति के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपनी लोक प्रियता के लिए भी देशभर में खूब चर्चा में रहते हैं। आइए जानते हैं बिहार की शान बने इन उत्पादों के बारे में-
मधुबनी पेंटिंग
साल 2007 में मधुबनी पेंटिंग को GI टैग मिला। यह मिथिला की कला है, जो दुनियाभर में मशहूर है। पहले यह कला महिलाओं तक सीमित थी लेकिन अब पुरुष कलाकार भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं। घर-घर में बनाई जाने वाली मधुबनी पेंटिंग, पूरे देश में मशहूर है।
खासियत: मधुबनी पेंटिंग अब अब कागज, कपड़ा से निकलकर कैनवास तक पहुंच गई है। मिथिलांचल की इस परंपरा में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है। यह पीढ़ियों की कला है, जिसे बिहार के लोग संवार रहे हैं। इन चित्रकलाओं में कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, प्रकृति, फूल, पक्षी और देशज चित्रकारी होती है। मधुबनी पेंटिंग, अब लाखों में बिक रही है।
बिहार में खटवा कला भी कमाल की है। इसे साल 2016 में GI टैग मिला। खटवा एक कपड़े को काटकर उसके टुकड़ों को दूसरे कपड़े पर सिलकर डिजाइन बनाने की कला है। यह एप्लीक डिजाइन है।
खासियत: इस कला का इस्तेमाल चादर, तौलिया, छतरी और कढ़ाई-बुनाई के लिए पहले होता था, अब बिहार की यह कला धूम मचा रही है। सुई और धागे से कलाकार, खटवा शिल्पकला को तैयार करते हैं। अब फैशन के नए दौर में लोग इस कला की जमकर प्रशंसा कर रहे हैं।
खटवा कला। (Photo Credit: Bihar Bhavan)
सुजनी कला
बिहार की सुजनी कला, भुसुरा गांव से शुरू हुई कढ़ाई की कला है। साल 2006 में इसे GI टैग मिला। पहले छोटे बच्चों के लिए चद्दर और गद्दे बनाने के लिए लोग इसे तैयार करते थे। इसे कहीं-कहीं कथरी भी कहते हैं। पुरानी साड़ी, धोती के टुकड़ों से बनाए गए रंग-बिरंगे पैच देखने में सुंदर लगते हैं।
खासियत: इस कला से अब लोग सामाजिक संदेश भी दे रहे हैं। इस कला में छोटी-छोटी कलाकृतियां बनाई जाती हैं, तोता-मैना, कबूतर, कौआ, यक्ष-यक्षिणी जैसे आकृतियों को उकेरा जाता है। बिहार की यह कला देशभर में मशहूर है। 2019 में इसे यूनेस्को सील ऑफ एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला। अब इसे साड़ियों, दुपट्टों और घर की सजावट में भी देखा जाता है।
सुजनी कला। (Photo Credit: Bihar Bhavan)
सिक्की कला
साल 2007 में सिक्की कला को GI टैग मिला था। मिथिला में महिलाएं पहले सिक्की बनाती थीं। यह बेहद बारीक कला है, जिसे महिलाएं 'गोल्डन ग्रास' से तैयार करती हैं। सिक्की यूपी-बिहार में उगने वाली घास है। यह घास बेहद चमकदार होती है।
खासियत: बिहार में इससे टोकरी, बैक, कोस्टर, चटाई और फोटो तैयार किया जाता है। साल 2013 में गणतंत्र दिवस परेड में बिहार की झांकी का थीम सिक्की कला थी। सिक्की कलाकृतियां देश-दुनिया में खूब पसंद की जाती हैं।
सिक्की कला। (Photo Credit: India Mart)
भागलपुरी सिल्क
साल 2013 में भागलपुरी सिल्क को भी GI टैग मिला। भागलपुर को दुनिया सिल्क सिटी के तौर पर भी जाती है। भागलपुरी सिल्क दुनियाभर में मशहूर है।
खासियत: भागलपुरी सिल्क को'क्वीन ऑफ फैब्रिक्स' के नाम से लोग जानते हैं। इसकी डिजाइनिंग कमाल की होती है। भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है। वैदिक काल से मौर्य काल तक यह कला, बिहार में खूब फली-फूली है।
भागलपुरी सिल्क।
जर्दालू आम
बिहार के जर्दालू आम को साल 2018 में GI टैग मिला। इस आम के चर्चे पूरे भारत में हैं। भागलपुर और आसपास के जिलों में इसे उगाया जाता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस आम को कई दिग्गजों को भेज चुके हैं। इस आम को रहमत अली खान बहादुर लेकर आए थे। इस आम की मांग पूरे देश में है।
खासियत: ये आम पकने के बाद पीले रंग के होते हैं, इनकी खूबसूरत और चमकदार बनावट इन्हें खास बनाती है।
जर्दालु आम।
कतरनी चावल
साल 2018 में बिहार के कतरनी चावल को GI टैग मिला। यह महकदार और लजीज चावल है, जो मुंगेर, बांका और दक्षिण भागलपुर में उगाया जाता है। इसका नाम इसके दाने की नोक से आया, जो सुई जैसी दिखती है।
खासियत: यह चूड़ा या बनाने के लिए मशहूर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर, राजकीय अतिथियों को यह चावल उपहार में देते हैं। यह देशभर में लोकप्रिय हो रहा है।
कतरनी चावन।
मगही पान
मगही पान की देशभर में धूम है। साल 2018 में इसे GI टैग मिला। मगही पान औरंगाबाद, गया, नवादा और नालंदा में उगाया जाता है।
खासियत: यह अपने चमकदार हरे रंग, मीठे स्वाद और मुलायम बनावट के लिए जाना जाता है। यह पान कम रेशेदार, तीखा और जल्दी घुलने वाला होता है। यह पान, आम पान की तुलना में महंगा होता है।
मगही पान।
शाही लीची
साल 2018 में शाली लीची को भी GI टैग मिला। यह मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में उगाई जाती है। बिहार सरकार और डाक विभाग ने इसे घर-घर पहुंचाने की व्यवस्था भी की है। यह बिहार का चौथा GI टैग हासिल करने वाला उत्पाद है, जिसकी मांग पूरे देश में है।
खासियत: शाही लीची खुशबू, रसीले गूदे और छोटे बीज के लिए मशहूर है।
शाही लीची।
सिलाव खाजा
बिहार का सिलाव खाजा, दुनियाभर में मशहूर है। साल 2018 में इसे GI टैग मिला। यह नालंदा जिले में सबसे ज्यादा बनता है। सिलाव खाजा हल्का कुरकुरा होता है, जिसमें कई परतें होती हैं।
खासियत: गेहूं, मैदा, घी, चीनी, इलायची और सौंफ के मिश्रण से बनी यह मिठाई, दुनियाभर में पसंद की जाती है। जब यह मिठाई तैयार हो जाती है तो इसे चीनी की चाशनी में डुबोया जाता है। इसका इतिहास राजा विक्रमादित्य और गौतम बुद्ध के समय से जुड़ा है।