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बिहार में फिर क्यों लग रहे 'भूरा बाल साफ करो' के नारे?

बिहार ने हिंसा का वह दौर भी देखा है, जब भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला समुदाय के लोग जातीय हिंसा का शिकार हुए थे। इस नारे ने दशकों तक, बिहार की सियासत तय की। अब अचानक यह चर्चा में क्यों है, समझिए।

Anand Mohan

आनंद मोहन। (Photo Credit: PTI)

संजय सिंह, पटना: चुनाव जीतने और अपनी राजनीतिक महत्ता बरकरार रखने के लिए हर दल के नेता किसी भी स्तर पर उतरने को तैयार हैं। गड़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं। 1990 के दशक में जब मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया जा रहा था। इस दौरान एक नारा गूंजा था भूराबाल साफ करो।

भूराबाल का मतलबभूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला (कायस्थ) जैसी जातियों को निशाने पर रखा गया था। कोसी के बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन ने इस गड़े हुए नारे को फिर उखाड़ा है। इस नारे की वजह से राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी है। इधर भारतीय जनता पार्टी ने भी हिंदुत्व के नाम पर वोटरों को गोलबंद करने के लिए बंटोगे तो कटोगे जैसे नारे दे रही हैं।

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क्या फिर से बंट रहा है बिहार?

ऐसे नारे विधानसभा चुनाव से पूर्व जाति और धर्म की लकीरें खींचते नजर आ रही हैं। चुनाव आते आते सारे मुद्दे गौण हो जाते हैं। जातीय और धर्म का मामला हावी हो जाता है। नेता भी वोटरों की एक कमजोरी से अच्छी तरह वाकिफ हैं। कुछ दिनों पहले आनंद मोहन ने एक कार्यक्रम के दौरान यह कहा था कि अब समय बदल गया है। भूराबाल ही तय करेगा कि सिंहासन पर कौन बैठेगा। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां गुस्से में हैं। 

नेताओं ने क्या कहा है?

बिहार के अन्य दलों ने तो खुलकर इसका राजनीतिक विरोध नहीं किया। आरजेडी नेता अशोक महतो इस नारे के विरोध में सामने आए। अशोक महतो ने कहा कि इस चुनाव में तमाम बहुजन मिलकर भूराबाल को साफ करेंगे। अशोक महतो के इस बयान के बाद राजनीतिक विवाद और बढ़ गया। दोनों ओर से वीडियो युद्ध शुरु हो गई। जानकारों का कहना है कि पिछड़ों और अतिपिछड़ों की गोलबंदी और इसके जवाब में बड़ी जातियों की एकजुटता बिहार की राजनीति का आजमाया हुआ फार्मूला है।

जातीय सम्मेलनों की बिहार में धूम

बिहार में इस बार जमकर जातीय सभाएं हो रही हैं। कई जातीय सम्मेलन हो चुके हैं। बिहार में जातीयता की जमीन और मजबूत हुए हैं। अशोक महतो के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि कोई माय का लाल पैदा नहीं हुआ है जो भूराबाल को साफ कर सके। उनके इस बयान से राजनीतिक हलकों में और प्रतिक्रिया हुई। इस बयान की आलोचना भी की गई। इस तरह के बयानों से सामाजिक कटुता बढ़ती है। 

 

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बीजेपी का रुख क्या है?

बीजेपी पर भी आरोप लग रहे हैं कि वोटों की गोलबंदी के लिए धर्म की राह पकड़ ली है। बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने यह बयान दिया है कि यदि बिहार में हमारी सरकार बनी तो बांग्लादेशी और घुसपैठियों को सरहद पार भगाया जाएगा। गिरिराज सिंह इस तरह का बयान पहले भी दे चुके हैं। इसके पूर्व उन्होंने कहा था कि यदि मस्जिद से वोट का फतवा जारी किया गया तो मंदिरों से भी घड़ीघंट की आवाज सुनाई देगी। उनका यह नारा भी इन दिनों चर्चा में है। वह बटेंगे तो कटेंगे भी कह चुके हैं।

बिहार में फिर जातीय राजनीति पर जोर

 केंद्रीय मंत्री गिरिराज अपने बयान से हिंदू वोटरों को गोलबंद करने में लगे हैं। उनके बयान से गोलबंदी पर कितना प्रभाव पड़ता है। यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा। बहरहाल चुनाव से पूर्व विवादास्पद नारों की वजह से राजनीतिक कटुता के साथ साथ सामाजिक वैमनस्यता भी बढ़ती जा रही है।

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