तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने की राह में रोड़े क्या हैं?
1990 के दशक से लेकर 2000 तक, बिहार की सत्ता में लालू यादव का दबदबा रहा। जब विदाई हुई तो 2 दशक से सत्ता से बाहर बैठे हैं। तेजस्वी यादव सीएम बनने की कवायद कर रहे हैं लेकिन इसमें कई रोड़े हैं।

राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव। (AI Image, Photo Credit: Sora)
'20 साल से दहाड़ रहा पलायन का रावण, जल्द होगा संहार, आ रही है तेजस्वी सरकार। बिहार के युवा नहीं भूलेंगे लाठी की मार, पानी का बौछार, इसलिए समस्त बिहार वासियों की एक ही पुकार, अबकी बार तेजस्वी सरकार। सस्ते होंगे राशन दाल, जब आएगी तेजस्वी सरकार। युवा तेजस्वी जब सत्ता में आएंगे, हर बिहारवासी को इज्जत दिलाएंगे।'
बिहार में इंडिया ब्लॉक की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के ये नारे सोशल मीडिया से लेकर बिहार की सड़कों तक छाए हुए हैं। आरजेडी, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर पेश कर रही है। दावा है कि जब वह सत्ता में आएंगे, बिहार से गरीबी, भ्रष्टाचार को मिटा देंगे, कानून का राज स्थापित करेंगे, पलायन थम जाएगा, करोड़ों युवाओं को रोजगार मिल जाएगा। बिहार बीमारू राज्यों की लिस्ट से बाहर आ जाएगा, बिहार में बाहरी राज्यों से लोग नौकरी की तलाश में आएंगे।
तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर पार्टी नेतृत्व इनता आश्वस्त है कि आरजेडी नेता अभी से ही उन्हें मुख्यमंत्री बता रहे हैं। पार्टी पर बैठे शीर्ष नेताओं का साफ कहना है कि 20 साल से सत्ता में काबिज नीतीश कुमार के शासन से लोग ऊब गए हैं, राज्य में अपराधी बेलगाम हैं, 'गुंडाराज' का दौर आ गया है, बिहार बदलाव चाहता है, तेजस्वी यादव के सहारे बिहार की जनता का उद्धार होगा। दिलचस्प बात यह है कि ये दावे सिर्फ आरजेडी की तरफ से किए जा रहे हैं। बिहार की सत्ता पर कौन बैठेगा, इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने अभी तय ही नहीं किया है। यह सब आसान नहीं है, तेजस्वी की राह में कई रोड़े हैं, जिन्हें उन्हें पार करना है।
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आखिर तेजस्वी यादव के सीएम बनने की राह में रोड़े क्या हैं?
इंडिया गठबंधन के दलों की चुप्पी
वाम दल हों या कांग्रेस, किसी भी पार्टी के पोस्टरों में, नेताओं के बयानों में यह नहीं कहा गया है कि बिहार की सियासी चाबी तेजस्वी यादव को मिलेगी। CPI (ML) (L) के दीपांकर भट्टाचार्य हों या कांग्रेस नेता राहुल गांधी, किसी ने नहीं कहा है कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे।
वोटर अधिकार यात्रा के दौरान 24 अगस्त को राहुल गांधी से पुर्णिया की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने सवाल किया। सवाल था, 'तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि अगर अगली सरकार बनेगी देश में तो राहुल गांधी पीएम बनेंगे। संविधान बचाने के लिए, लोकतंत्र बचाने के लिए, इन सबों को भरोसा है कि आप उस पर काम करेंगे तो बिहार को लेकर अब तक आपकी पार्टी से साफ क्यों नहीं किया जा रहा है कि तेजस्वी यादव सीएम बनेंगे?

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राहुल गांधी ने जवाब के नाम पर चुप्पी साध ली, जो जवाब दिया, वह उलझाने वाला है
राहुल गांधी, कांग्रेस:-
बहुत अच्छे तरीके से एक पार्टनरशिप बनी है। हम सारी की सारी पार्टियां एक साथ जुड़कर काम कर रही हैं। कोई टेंशन नहीं है और म्युचुअल रिस्पेक्ट है। एक-दूसरे की मदद हो रही है तो मजा भी आ रहा है। आइडियोलॉजिकली हम अलाइन्ड हैं। पॉलिटिकली अलाइन्ड हैं। तो बहुत अच्छा रिजल्ट आएगा। मगर, वोट चोरी को रोकना है।
राहुल गांधी ने जवाब तो दिया लेकिन कांग्रेस के नाम पर मुहर नहीं लगाई।
कांग्रेस खुद तेजस्वी की राह में रोड़ा है
बिहार में 243 विधानसभाएं हैं। साल 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। जीत सिर्फ 19 सीटों पर मिली थी। 4 उम्मीदवार ऐसे थे जिनकी जमानत तक जब्त हो गई। राष्ट्रीय जनता दल ने 144 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही थी, देशभर में जनाधार कम हो रहा था। कांग्रेस ने ज्यादा सीटें मांगी थीं, 70 सीटें मिलीं। स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा। कांग्रेस को सिर्फ 19.8 फीसदी वोट पड़े। इसके उलट 144 सीटों पर चुनाव लड़कर आरजेडी ने 74 सीटें हासिल कर लीं। कांग्रेस का वोट शेयर 9.6 फीसदी मिला, वहीं 23 फीसदी वोट आरजेडी को मिला। इसके उलट 125 सीटें हासिल करने में एनडीए सफल रहा।
2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने सात सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जीत सिर्फ 3 सीटों पर मिली। एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया। खराब प्रदर्शनों के बाद भी कांग्रेस अब ज्यादा सीटें मांग रही है। कांग्रेस खेमे से जुड़े लोगों का कहना है कि 70 से 100 सीटें पार्टी मांग रहा है, वहीं 30 से ज्यादा उन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार उतारना चाहती है, जहां जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं। अल्पसंख्यक, मुस्लिम और यादव बाहुल सीटें। अब तक कांग्रेस का स्ट्राइक रेट कम रहा है। राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व हाशिए पर है, कोई बड़ा नेता नहीं है। राज्य कांग्रेस के बड़े नेता राजेश कुमार भी लोकप्रिय नेताओं में शुमार नहीं हैं। ऐसे में जीत की सारी जिम्मेदारी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तेजस्वी यादव भरोसे है। बिहार में बहुमत का आंकड़ा 122 है। कांग्रेस की ज्यादा सीटों की जिद खेल बिगाड़ सकती है।
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VIP और लेफ्ट की ओर से ज्यादा सीटों की मांग
मुकेश सहनी विकास शील इंसान पार्टी के अध्यक्ष हैं। वह बिहार विधानसभा चुनाव में करीब 60 सीटें मांग रहे हैं। वाम दल भी 40 सीटों पर दावा ठोक रहे हैं। यह सीटें, कांग्रेस अपने खाते से नहीं देना चाह रही है। दिलचस्प बात यह है कि मुकेश सहनी जिस वोट बैंक पर (मल्लाह, निषाद) पर अपना दावा ठोकते हैं, उनकी आबादी 2.60 प्रतिशत के आसपास है। वामदलों के पास न तो बड़ा चेहरा है, न ही आरजेडी की तरह जातिगत वोट। इन दलों को ज्यादा सीटें मिलने का मतलब है कि बिहार में तेजस्वी का खेल ही बिगड़ेगा।

कुनबे की कलह
लालू यादव के कुनबे में सियासी कलह अब सार्वजनिक है। भाई तेज प्रताप और बहन रोहिणी आचार्य दोनों, तेजस्वी से बहुत खुश नहीं है। रोहिणी को यह बात खटकने लगी है कि उन्होंने पार्टी प्रमुख और अपने पिता को किडनी दी, उनके लिए कष्ट सहा लेकिन पार्टी में अहम पदों पर 'जयचंद' बैठे हैं।
तेज प्रताप और रोहिणी आचार्य दोनों का इशारा पार्टी के कुछ बड़ नेताओं की ओर है, जिनमें एक नाम संजय यादव का भी है। ऐसा कहा जा रहा है कि अब संजय यादव ही बिहार में तेजस्वी यादव की राजनीति तय कर रहे हैं।
भाई तेज प्रताप यादव, एक जमाने में उन्हें अर्जुन और खुद को कृष्ण बताते थे, अब उन्हीं के पीछे पड़ गए हैं। उनकी विधानसभा राघोपुर में चुनाव प्रचार करने चले जाते हैं। उन्होंने अपनी पार्टी बनाई है, जिसका नाम 'जनशक्ति जनता दल' है। वह अब तेजस्वी यादव के खिलाफ मुखर होकर बयान दे रहे हैं।
तेज प्रताप यादवः-
'जब अर्जुन पर हमला होता था, कृष्ण उसे सुदर्शन चक्र से रोक देते थे। तेजस्वी पर जब भी हमला होता है तो मैं ही उनका बचाव करता रहा हूं। मैं कृष्ण हूं और तेजस्वी मेरा अर्जुन। गोली चलने पर आगे होगा मेरा सीना।'
(जुलाई 2021)
इसी 'कृष्ण' ने तेजस्वी के लिए अब अपने सुर बदल लिए हैं। उन्हें अहंकार से लेकर अपने खिलाफ साजिश तक के लिए कोस रहे हैं। उनका कहना है कि तेजस्वी यादव डांस करते हैं, काम नहीं करते। वह जयचंदों की साजिश में घिर गए हैं।
तेज प्रताप यादव:-
छोटे भाई हैं तो उनको समझना चाहिए, कौन राम है, कौन लक्ष्मण है। उनको मर्यादा देखना चाहिए, बड़े भाई का सम्मान करना चाहिए। खैर, इन चीजों पर मैं ध्यान नहीं दे रहा, वह जो भी कर रहे होंगे अपना बुद्धि और विवेक से कर रहे होंगे। हो सकता है जयचंद लोग उनको बोल रहे होंगे। अपना बुद्धि विवेक भी लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए।

जंगलराज का ठप्पा: इससे कैसे उबरेंगे तेजस्वी?
बिहार की राजनीति में लालू यादव के प्रभावी होने के बाद, राज्य में भ्रष्टाचार और अपराध की घटनाएं अपने पीक पर पहुंच गईं थीं। साल 1990 से लेकर 1997 तक बिहार लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 1997 से 2005 तक लागू यादव की पत्नी राबड़ी देवी राज्य की मुख्यमंत्री रहीं। करीब डेढ़ दशक की सत्ता में बिहार अपराध की राजधानी कहा जाने लगा। दिनदहाड़े हत्याएं, अपहरण और फिरौती का खेल बेहद आम हो गया था। कई नरसंहार भी हुए। अदालत तक को यह कहना पड़ा कि बिहार में जंगलराज है। 5 अगस्त 1997 को जस्टिस वीपी आनंद और जस्टिस धर्मपाल सिंह की बेंच ने कहा कि बिहार में सरकार नहीं, जंगलराज चल रहा है। कोर्ट की यह टिप्पणी बिहार के हालात पर थी।
चारा घोटाला की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं तो अपराध और बढ़ गया। डॉक्टर, इंजीनियर, डीएम, DGP हर अधिकारी डरा हुआ था। यह वही दौर था जब बिहार में लक्ष्मणपुर-बाथे और सेनारी जैसे नरसंहार हुए, शिल्पी-गौतम हत्याकांड और चंपा विश्वास बलात्कार कांड जैसे मामले चर्चित रहे। विपक्ष ने आरोप लगा कि अपराधियों को RJD नेताओं ने संरक्षण दिया। पुलिस तमाशबीन रही, अपराधियों को संरक्षण देती रही। पुलिस निष्क्रिय थी। 1997 में पटना हाईकोर्ट ने इसे 'जंगलराज' करार दिया। NCRB के अनुसार, बिहार में हत्या, अपहरण, और दंगे देश में सबसे ज्यादा थे।
सामाजिक न्याय का नारा देने वाले लालू पर भ्रष्टाचार और जातिवाद के आरोप लगे। 2005 में सत्ता विरोधी लहर ऐसे आई कि नीतीश कुमार बीते 2 दशक से मुख्यमंत्री हैं। लालू यादव का परिवार सत्ता से बाहर रहा। नीतीश कुमार के सहारे एक बार आरजेडी 2015 में और एक बार 2024 में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा तो बनी लेकिन ज्यादा दिन यह गठबंधन टिक नहीं पाया। चुनावी कैंपेन में बीजेपी लालू यादव को रावण बताती है, तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज। तेजस्वी यादव, इस चुनाव में भी इस ठप्पे से उबरते नजर नहीं आ रहे हैं। खुद उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
नीतीश कुमार और ब्रांड मोदी, दोहरी चुनौती
नीतीश कुमार 2005 से ही बिहार के मुख्यमंत्री हैं। एनडीए हो या महागठबंधन, सरकार किसी की भी बनी, सत्ता में नीतीश कुमार रहे। बिहार में उनकी छवि 'सुशासन बाबू' की रही। यह छवि आज भी कायम है। व्यक्तिगत उन पर भ्रष्टाचार के कोई संगीन आरोप नहीं लगे। ईमानदार नेता की छवि रही है। 2 साल से बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हैं। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में अपराध बढ़ा है। हत्या और दहेज हत्या जैसे अपराधों में बिहार शीर्ष राज्यों में शामिल है। तमाम चुनौतियों के बाद भी लोगों में तेजस्वी सरकार को लेकर आशंका है।
दूसरी तरफ बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के सहारे आगे बढ़ रही है। बिहार में बीजेपी विकास कार्यों को गिना रही है, लोक कल्याणकारी योजनाओं के बारे में दावे कर रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सड़क योजनाओं को लेकर क्रांतिकारी परिवर्तनों का दावा कर रही है। पीएम मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी अब तक के चुनावों में सुपरहिट रही है। तेजस्वी के सीएम बनने की राह में एक रोड़ा यह भी है।
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