दिल्ली के स्कूलों में कितना चला देशभक्ति पाठ्यक्रम, क्या है हकीकत?
दिल्ली सरकार ने 28 सितंबर 2021 भगत सिंह की जयंती पर देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत की थी। इस पर कितना काम हुआ और इसको लेकर क्या है स्कूलों की हकीकत, आइए इसके बारे में जानें।

वादों का सच, Photo Credit: Khabargaon
वादा- देशभक्ति पाठ्यक्रम
दिल्ली सरकार के स्कूलों में शुरू की गई हैपीनेस करिकुलम और एंटरप्रिन्योरशिप करिकुलम की सफलताओं के बाद अब देशभक्ति पाठ्यक्रम भी लाया जाएगा।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने शिक्षा क्षेत्र में कई बड़े सुधारों और योजनाओं की शुरुआत की है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले उनके 28 वादों में से एक देशभक्ति पाठ्यक्रम (Patriotism Curriculum) रहा। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छात्रों के भीतर देशप्रेम, नैतिक मूल्यों और समाज सेवा की भावना को बढ़ाने के लिए इस पहल की शुरुआत की गई।
इसका मुख्य उद्देश्य क्या?
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देशप्रेम की भावना जगाना: छात्रों में भारत के प्रति सम्मान और गर्व की भावना उत्पन्न करना।
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मूल्य आधारित शिक्षा: नैतिकता, ईमानदारी, और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे मूल्यों को बढ़ावा देना।
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सक्रिय नागरिकता: छात्रों को यह सिखाना कि वो समाज और देश की बेहतरी में अपनी भूमिका कैसे निभा सकते हैं।
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सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता: भ्रष्टाचार, जातिवाद, भेदभाव, और अन्य सामाजिक बुराइयों के प्रति संवेदनशील बनाना।
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व्यावहारिक शिक्षण: देशभक्ति को केवल सिद्धांत तक सीमित न रखकर व्यवहार में उतारना।
काम क्या किया?
दैनिक प्रार्थना: स्कूलों में रोजाना प्रार्थना के साथ देशभक्ति पर आधारित विचार प्रस्तुत करना।
गतिविधियां और चर्चा: छात्रों के साथ इंटरएक्टिव गतिविधियां और ग्रुप डिस्कशन करना।
रियल-लाइफ एप्लिकेशन: छात्रों को उनके आसपास की समस्याओं को पहचानने और हल निकालने के लिए प्रोत्साहित करना।
कहानियों और प्रेरणादायक उदाहरणों का उपयोग: भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और आधुनिक समय के नायकों के उदाहरणों के माध्यम से शिक्षा देना।
लागू करने का कारण?
अरविंद केजरीवाल का मानना है कि आज के बच्चे केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रह गए हैं और उनमें देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव कम हो रहा है। केजरीवाल का उद्देश्य था कि शिक्षा के माध्यम से भविष्य की पीढ़ी को नैतिक और जिम्मेदार नागरिक बनाया जाए।
देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत दिल्ली सरकार ने 28 सितंबर 2021 (भगत सिंह की जयंती पर) को की थी। यह पहल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी और इसे एक नई दिशा में शिक्षा सुधार के रूप में देखा गया। हालांकि, इस पर कितना काम हुआ यह भी समझना बहुत जरूरी है। यह कितने स्कूलों में लागू हुआ और क्या इसे रोजाना रूटीन में लाया गया? देशभक्ति पाठ्यक्रम को लेकर क्या है स्कूलों की हकीकत?
हकीकत क्या?
देशभक्ति पाठ्यक्रम को पूरी दिल्ली के 1030 से अधिक सरकारी स्कूलों में लागू किया था। यह कक्षा नर्सरी से 12वीं तक के छात्रों के लिए तैयार किया गया है जिसमें उनकी उम्र और समझ के अनुसार सामाग्री तैयार की गई है। इस पहल का शिक्षकों और छात्रों ने खुलकर स्वागत किया है जिससे छात्रों में देशप्रेम और जिम्मेदारी की भावना विकसित हो रही है।
हालांकि, कुछ शिक्षकों को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। देशभक्ति पाठ्यक्रम को अमल करने में समय और संसाधनों की कमी हो रही है जिसके कारण इसे प्रभावी ढंग से लागू करने में कठिनाई हो रही है। इसके अलावा इस पहल का सटीक मूल्यांकान करना भी चुनौतीपूर्ण है।
अभी भी सामने आ रही चुनौतियां
भले ही देशभक्ति पाठ्यक्रम ने छात्रों में देशप्रेम की भावना को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसके पूर्ण प्रभाव का आकलन करने के लिए और रिसर्च की आवश्यकता है। भले ही दिल्ली सरकार द्वारा लागू किए गए देशभक्ति पाठ्यक्रम ने थोड़े बहुत पॉजिटीव रिजल्ट दिए लेकिन इसके बावजूद कई चुनौतियां अभी भी बनी हुई है जो दिल्ली सरकार के लिए बाधा बन सकती हैं।
1- शिक्षकों की ट्रेनिंग और तैयारियां
कई शिक्षकों को देशभक्ति पाठ्यक्रम को पढ़ाने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई है। ऐसे में पाठ्यक्रम को सही तरीके से लागू करने में कठिनाई हो रही है। शिक्षकों को अपनी समझ सीमित होने के कारण इसे प्रभावी ढंग से छात्रों तक पहुंचना चुनौती बन जाता है।
2- संसाधनों की कमी
सरकारी स्कूलों में समय और संसाधनों की बेहद कमी है जिससे देशभक्ति पाठ्यक्रम को प्रभावशाली तरीके से चलाने में कठिनाई हो रही है। खासकर बड़े स्कूलों में जहां छात्रों की संख्या अधिक है।
3- मूल्यांकन प्रणाली जीरो
देशभक्ति पाठ्यक्रम का आकलन करने के लिए कोई ठोस मूल्याकंन प्रणाली नहीं है जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि छात्रों में वास्तव में देशभक्ति को लेकर कोई विकास हो रहा है या नहीं।
4- स्कूलों में समय की पाबंदी
पहले से ही छात्रों के लिए एक निर्धारित समय तय किए गए है जिसमें उन्हें हर विषय पढ़ना है। ऐसे में देशभक्ति पाठ्यक्रम के लिए समय निकालना मुश्किल हो रहा है क्योंकि इससे अन्य विषयों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है।
5- छात्रों की अलग सोच
हर छात्र की देशभक्ति और नैतिकता के प्रति समझ और जुड़ाव एक जैसी नहीं है। ऐसे में पाठ्यक्रम को सभी छात्रों के लिए प्रभावशाली बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
6- देशभक्ति पाठ्यक्रम को गंभीरता से नहीं लेना
कुछ स्कूल और शिक्षक इस पहल को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हैं। ऐसे में पाठ्यक्रम के उद्देश्य केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं।
7- राजनीतिकरण का खतरा
कई बार ऐसे पहल को राजनीतिक एजेंडा के रूप में देखा जाता है। दरअसल इसकी वास्तविकता और उद्देश्यों पर सवाल उठाए जाते हैं, जिससे इसे अपनाने में रुचि कम हो सकती है।
सरकार क्या कर सकती है उपाय?
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शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाना।
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पाठ्यक्रम के लिए विशेष समय और संसाधन सुनिश्चित करना।
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प्रभाव को मापने के लिए उचित मूल्यांकन प्रणाली विकसित करना।
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पाठ्यक्रम को राजनीति से दूर रखते हुए इसे राष्ट्रीयता और शिक्षा के मुद्दे तक सीमित रखना।
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