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चुनाव के साइलेंट पीरियड में क्या एक्शन ले सकता है प्रशासन?

दिल्ली में वोटिंग से पहले साइलेंस पीरियड चल रहा है। इस दौरान पुलिस और प्रशासन की शक्तियां क्या हैं, विस्तार से समझते हैं।

Delhi Election

दिल्ली पुलिस। (File Photo Credit: PTI)

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दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार थम गया है। दिल्ली में अब आचार संहिता का 'साइलेंस पीरियड' लागू है। साइलेंस पीरियड के दौरान सार्वजनिक सभाओं और रैलियों पर रोक होती है। नेता चुनाव प्रचार के लिए बड़ी संख्या में कहीं इकट्ठा नहीं हो सकते। बड़ी भीड़ कहीं नहीं जमा हो सकती है।

साइलेंस पीरियड के दौरान ही भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 भी लागू हो जाती है। चुनाव के दौरान सारे प्रशासनिक और कानून-व्यवस्था से जुड़े फैसले चुनाव आयोग के ही निर्देश पर होते हैं। अब दिल्ली में 5 से ज्यादा लोगों के जुड़ने, झुंड में कहीं जाने और चुनाव प्रचार से जुड़े कुछ प्रतिबंध लागू होते हैं। 

आचार संहिता के दौरान ही धारा 163 का जिक्र आता है। चुनाव आयोग धारा  'साइलेंस पीरियड' के बारे में बात करती है। आखिर इस दौरान क्या होता है, इसके उल्लंघन पर पुलिस क्या कर सकती है, पुलिस कमिश्नर और जिला मजिस्ट्रेट के अधिकार क्या-क्या होते हैं, विस्तार से समझते हैं।  

क्यों लागू होते हैं ऐसे प्रतिबंध?
लोक प्रतिनिधित्व अधनियम, 1951 की धारा 126 के मुताबिक वोटिंग खत्म होने के 48 घंटों की अवधि के दौरान सभी तरह की सार्वजनिक सभाओं पर रोक लग जाती है। इस दौरान कोई शख्स किसी मतदान क्षेत्र में चुनाव से संबंधित सार्वजनिक सभा और जुलूस नहीं बुला सकता है, न ही उसमें शामिल हो सकता है। टेलीफोन, टेलीविजन या सोशल मीडिया के जरिए चुनाव से जुड़ा प्रचार नहीं करेगा। कोई संगीत समारोह, थिएटर या प्रदर्शनी नहीं कराई जा सकती है, जिसका मकसद चुनावी हो। अगर कोई ऐसे नियम तोड़ता है तो उसे दो साल की सजा हो सकती है। 

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पुलिस कमिश्नर-मजिस्ट्रेट के अधिकार क्या होते हैं?
अगर चुनाव के दौरान कर्फ्यू की स्थिति बनती है, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 लागू हो जाती है। इस धारा के लागू होने के बाद पुलिस कमिश्नर और जिला मजिस्ट्रेट के अधिकार बढ़ जाते है। सामान्य दिनों में इस संबंध में अधिकार जिला प्रशासन के पास होते हैं। चुनाव के दौरान आयोग में यह शक्तियां निहित होती हैं। अगर चुनाव में बूथ कैप्चरिंग या हंगामे की स्थिति बनती है तो केंद्रीय बल, चुनाव आयोग के निर्देश पर कुछ कठोर फैसले भी ले सकते हैं।

अगर 'कर्फ्यू' की स्थिति है तो प्रशासन की ताकत और बढ़ जाती है। कर्फ्यू की स्थिति में किसी खास जगह को, किसी इलाके में रहने वाले लोगों को, आम जनता को, किसी खास इलाके में रहने वाले लोगों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। यह धारा 2 महीने से ज्यादा दिनों तक लागू नहीं रह सकती है।

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क्या-क्या कर सकते हैं सुरक्षा अधिकारी?
वोटिंग के दिन और एक दिन पहले तक पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि भीड़ जमा न होने पाए। किसी भी तरह की शांति भंग न होने पाए, संदिग्ध लोगों के आइडेंटिटी कार्ड चेक करने का अधिकार मिलता है। होटल, गेस्ट हाउस और संदिग्ध गाड़ियों की चेकिंग की जा सकती है।

 


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