दिल्ली के चांदनी चौक से सटी सीट मटिया महल दिल्ली विधानसभा बनने के साथ ही 1993 में बनी थी। सेंट्रल दिल्ली जिले में स्थित मटिया महल विधानसभा सीट जब से बनी है तब से शोएब इकबाल का दबदबा यहां पर कायम है। उन्होंने सात बार अलग अलग पार्टियों से इस सीट से चुनाव लड़ा और 6 बार जीत हासिल की है।
2020 में क्या हुआ
पिछले विधानसभा चुनाव में शोएब को 67,282 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले बीजेपी के रविंदर गुप्ता को कुल 17,041 वोट ही मिले थे।
इस बार आम आदमी पार्टी ने शोएब इकबाल के बेटे आले मोहम्मद को टिकट दिया है। आले मोहम्मद इस वक्त चांदनी महल वॉर्ड से पार्षद हैं। वह 2023 में एमसीजी के डिप्टी मेयर भी रह चुके हैं। आले मोहम्मद साल 2012 से ही लगातार एमसीडी के पार्षद चुने जा रहे हैं। 2022 में एमसीडी चुनाव में उन्होंने सबसे ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी।
क्या है राजनीतिक इतिहास
साल 1993 में मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का दर्जा खत्म करके विधानसभा सीट के रूप में बदला गया। तब से लेकर 2020 तक एक बार को छोड़कर इस सीट पर शोएब इकबाल का कब्जा रहा है।
पहली बार शोएब इकबाल 1993 में फिर 1998 में जनता दल के टिकट पर यहां से विधायक चुने गए। इसके बाद 2003 में जनता दल (सेक्युलर) फिर 2008 में लोक जनशक्ति पार्टी और फिर 2013 में उन्होंने जनता दल (यूनाइटेड) से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
साल 2015 में पहली बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली में चुनावी मैदान में उतरी। उस साल शोएब इकबाल चुनाव नहीं जीत सके और आसिम अहमद खान के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर उसके बाद 2020 में आम आदमी पार्टी ने शोएब को टिकट दिया और उन्होंने फिर से जीत हासिल की।
क्या हैं समस्याएं
मटिया महल सीट की समस्या भी चांदनी चौक से काफी मिलती जुलती है। यहां पर जाम की समस्या काफी है। साथ ही संकरी गलियों में भी काफी जाम देखने को मिलता है। स्थिति यह है कि इन गलियों में 100 मीटर की दूरी तय करने में भी 4-5 मिनट लग जाते हैं। बुजुर्गों के लिए भीड़ की वजह से इन गलियों में चल पाना काफी मुश्किल है।
इसके अलावा बिजली के तारों के जाल सड़कों पर लटकते हुए आपको यहां दिख जाएंगे। लोगों का कहना है कि सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई काम नहीं किया है।
क्या है जातीय-धार्मिक समीकरण
मटिया महल मुस्लिम बाहुल्य सीट है। यहां पर 60 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. बाकी के वोटर्स मूलतः हिंदू हैं। इस सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई थी।