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चुनाव के दौरान प्राइवेट गाड़ियों पर क्या हैं चुनाव आयोग के अधिकार?

सरकारी नियम है कि चुनाव अधिकारी कमी पड़ने पर प्राइवेट गाड़ियों को उनके ड्राइवर समेत बुला सकता है। इसके लिए प्रशासन अपनी तरफ से गाड़ी मालिकों को भुगतान करता है।

election commission private vehicle

इलेक्शन ड्यूटी के दौरान कई कामों में आती हैं गाड़ियां, Source- Freepik

देश में दो राज्यों (महाराष्ट्र-झारखंड) में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। चुनाव आयोग हर कोशिशें कर रहा है इलेक्शन में कोई भी धांधली न रह जाए। इसी सिलसिले में आयोग प्राइवेट कार मालिकों को भी तलब करता है, जिनसे गाड़ी लेकर चुनाव संबंधी काम करवाया जाता है। 

 

आइए जानते हैं कि चुनाव आयोग किन गाड़ियों को चुनाव संबंधी काम के लिए लेता है और उन गाड़ियों से किस तरह के काम करवाता है।

गाड़ी लेने का सरकारी नियम

 

सरकारी नियम है कि चुनाव अधिकारी कमी पड़ने पर प्राइवेट गाड़ियों को उनके ड्राइवर समेत बुला सकता है। दरअसल, पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी के गाजियाबाद में जिला निर्वाचन अधिकारी की तरफ से पहले से तय कार मालिकों से कहा गया था कि वे अपनी गाड़ियां इलेक्शन ड्यूटी के लिए रिजर्व पुलिस लाइन में प्रभारी निर्वाचन अधिकारी (ट्रांसपोर्ट) के हवाले कर दें। गाड़ी के शेड के लिए तिरपाल आदि का बंदोबस्त भी मालिक को करने के लिए कहा गया था।

 

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा में जिक्र

 

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 160 में इस बात का जिक्र है कि चुनाव से जुड़े काम के लिए गाड़ियों की मांग की जा सकती है। ये मांग केवल सरकार कर सकती है, न कि चुनाव लड़ रही पार्टियां। यह मांग लिखित आदेश पर ही होती है। धारा 160 के सबसेक्शन में इस बात का भी उल्लेख है कि किन हालातों में प्रशासन गाड़ी नहीं ले सकता। अगर वाहन का मालिक, कोई उम्मीदवार या पार्टी पहले से ही गाड़ी का कानूनी तौर इस्तेमाल कर रहे हों तो प्रशासन उस गाड़ी को नहीं ले सकता।

 

गाड़ी के मालिक को क्या मिलता है

 

चुनाव आयोग जितने दिनों के लिए गाड़ी को लेता है, उस हिसाब से जिला प्रशासन गाड़ी मालिक को किराया देता है। इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि किराया मनमाना नहीं होता, बल्कि यह पहले से तय रकम होती है, जो चुनाव आयोग निश्चित करता है। इसके अलावा अगर कोई वाहन मालिक अपना वाहन देने से मना करता है तो उसपर कार्रवाई भी हो सकती है। 

क्यों पड़ती है गाड़ियों की जरूरत

 

इलेक्शन के दौरान लाखों काम होते हैं. इसमें एक बहुत जरूरी काम है पारदर्शिता और सेफ्टी के लिए निगरानी करना. इलेक्शन ड्यूटी में लगे सुरक्षाबल, फ्लाइंग स्क्वाड और बाकी कर्मचारी-अधिकारियों के लिए भारी और हल्के सभी तरह की गाड़ियां ली जा सकती हैं. मतपेटियों को एक से दूसरी जगह ले जाने में भी गाड़ियां चाहिए होती हैं.

कर्मचारी करते हैं सफर

 

चुनाव के दौरान हेल्दी चुनाव करवाना इलेक्शन कमीशन की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में आयोग के पास करने और करवाने के लिए सैकड़ों काम होते हैं। चुनाव ड्यूटी में लगे सुरक्षाबल, फ्लाइंग स्क्वाड और बाकी कर्मचारी-अधिकारियों के लिए भारी और हल्के सभी तरह की गाड़ियों की जरूरत होती है। मतपेटियों को भी एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए गाड़ियां चाहिए होती हैं।

 

चुनाव आने से पहले ही आयोग गाड़ी मालिकों को डाक के जरिए इसकी जानकारी पहले ही दे देता है। गाड़ी को कहां जमा कराना है, कितने दिनों की जरूरत है, इन सारी बातों का ब्यौरा होता है। बाद में नोटिस भी निकाला जाता है ताकि गाड़ी मालिक अपनी गाड़ियां तय तारीख तक जमा करा दें।

 

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