जब 5 विधायक गायब करके BJP ने गिरा दी शिबू सोरेन की सरकार
झारखंड बनने के साथ ही बार-बार गठबंधन बदलने वाले शिबू सोरेन कई बार सीएम बने लेकिन कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। कभी बीजेपी से धोखा मिला तो कभी कांग्रेस ने दगा दे दिया।

शिबू सोरेन (फाइल फोटो), Image Credit: Social Media
साल 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में खिचड़ी जैसी स्थिति बन रही थी। नए नवेले झारखंड में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था और किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जनता दल (यूनाइटेड) से तो कांग्रेस ने शिबू सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा से गठबंधन किया था। नतीजे ऐसे आए कि सरकार बनाने के लिए जमकर खींचतान हुई। शपथ दिला दी गई तो राज्यपाल पर सवाल उठे। विपक्षी नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (NDA) के नेताओं ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक से गुहार लगाई। आखिरकार शिबू सोरेन को 10 दिन के अंदर ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और फिर से सत्ता में बीजेपी और उसके गठबंधन की वापसी हुई।
सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी के 30 विधायक जीते थे और उसकी सहयोगी जेडीयू के 6 विधायक थे। 36 विधायक लाकर बीजेपी आश्वत हो ही रही थी कि झारखंड में खलबली मच गई। बीजेपी ने पांच निर्दलीय विधायकों के साथ कुल 41 विधायकों को लिया और राज्यपाल सैयद सिबती राजी के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया। कमोबेश ऐसा ही दावा जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन भी कर रहा था। हालांकि, उसके लिए 41 विधायक जुटाना काफी दूर की कौड़ी साबित होता दिख रहा था। इसके बावजूद 2 मार्च को राज्यपाल सैयद सिबती राजी ने शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।
बीजेपी ने इसी दिन वादा किया था कि वह 41 विधायकों को दिल्ली ले जाएगी और राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने उन्हें पेश करेगी। उधर शिबू सोरेन शपथ लेते ही एक्शन में आ गए थे। बीजेपी की कोशिश थी कि वह कैसे भी करके 41 विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंचे। वहीं, शिबू सोरेन किसी भी सूरत में इन विधायकों को रोकना चाहते थे। बीजेपी को भी इसका अंदेशा था कि शिबू सोरेन सीएम बनने के बाद विधायकों को लालच देने की स्थिति में आ गए हैं और मामला कभी भी पलट सकता है। ऐसे में उसने एक ऐसा खेल रचा जिसे ऑपरेशन डेकॉय कहा गया।
BJP के खेल में सब फंसे
बीजेपी को सिर्फ 5 ही विधायक और चाहिए थे और उसकी कोशिश थी कि वह पांच निर्दलीय विधायकों को लेकर अपना सरकार बना लेगी। बीजेपी का कहना था कि वह 3 मार्च 2000 को राष्ट्रपति एपी जे अब्दुल कलाम के सामने सभी 41 विधायकों को पेश करेगी। इससे पहले 2 मार्च को ही झारखंड के राज्यपाल सैयद सिबती राजी ने शिबू सोरेन को शपथ लेने का न्योता दे दिया। उसी दिन उनको शपथ भी दिला दी गई और सिर्फ 17 विधायकों वाली पार्टी के नेता शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए।
बीजेपी ने दावा किया कि वह अपने 41 विधायकों को लेकर राज्यपाल से मिल चुकी थी इसके बावजूद राज्यपाल ने ऐसा कदम उठाया। उसने यह भी कहा कि शिबू सोरेन ने दावा ही कुल 36 विधायकों के समर्थन का किया था। बीजेपी यह भी कह रही थी कि एक बार मुख्यमंत्री बन जाने के बाद शिबू सोरेन अन्य विधायकों को लालच देने की कोशिश करेंगे और इस तरह वह बहुमत जुटाएंगे। ऐसे में जेएमएम और कांग्रेस के गठबंधन को सरकार बनाने से रोकने के लिए बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने मिलकर एक प्लान बनाया। इसे इतना गुप्त रखा गया कि रांची में कैंप कर रहे राजनाथ सिंह को भी इसकी सूचना नहीं दी।
कहां गायब हो गए थे 5 विधायक?
कहा गया कि 41 विधायक एक प्लेन से दिल्ली जा रहे हैं लेकिन गए सिर्फ 36 ही। इन्हीं पांच विधायकों पर सबकी नजर थी। बीजेपी को अंदेशा था कि इन्हें रोकने के लिए झारखंड की शिबू सोरेन सरकार कुछ भी कर सकती है। बीजेपी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने बाद में कहा कि 2 मार्च को रांची में इस प्लेन की तलाशी ली गई लेकिन 5 निर्दलीय विधायक नहीं मिले।
हुआ कुछ यूं कि रांची एयरपोर्ट पर एक बड़ा सा प्राइवेट जेट दिल्ली जाने के लिए लाया गया। बीजेपी की ओर से बुक किए गए इस प्लेन के बारे में कहा गया था कि इसी से 41 विधायक दिल्ली जाएंगे। हालांकि, सिर्फ 36 विधायक ही इस प्लेन से गए। इसमें बीजेपी ने पांच ऐसे लोगों को बिठाया गया जो बीजेपी के ही कार्यकर्ता थे और वे एक्टिंग कर रहे थे उन पांच निर्दलीय विधायकों की। यानी 5 निर्दलीय विधायक गायब हो चुके थे। बीजेपी के ही कई नेताओं को इसकी जानकारी नहीं थी कि वे कहां चले गए।
कहा जाता है कि शिबू सोरेन सरकार ने पुलिस को एक्टिव कर दिया था कि सड़क पर चलने वाली गाड़ियों की तलाशी की जाए। बीजेपी की सरकारों वाले राज्यों जैसे कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ जाने वाले रास्तों पर जा रही गाड़ियों की जमकर तलाशी ली गई लेकिन यहां भी ये विधायक नहीं मिले। बीजेपी को इस बात का भी अंदेशा था इसलिए उसने कुछ ऐसा किया जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। बीजेपी ने इन पांच विधायकों को छत्तीसगढ़ या ओडिशा के बजाय पश्चिम बंगाल भेज दिया। इन 5 निर्दलीय विधायकों को रांची से दुर्गापुर और फिर वहां से सड़क के रास्ते खड़गपुर ले जाया गया।
हताश होने लगे थे शिबू सोरेन
इनके लिए एकदम नई गाड़ियां मंगाई गईं। कम उम्र के ये विधायक कुर्ता-पायजामा भी नहीं पहनते थे तो कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि ये विधायक हैं। ऐसे में ये पांचों छिपते-छिपाते पश्चिम बंगाल में दाखिल हो गए। दुर्गापुर से खड़गपुर पहुंचे इन विधायकों ने खड़गपुर से भुवनेश्वर की ट्रेन पकड़ी और सुबह 5 बजे पहुंचे। अब तक ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक को इसकी सूचना दे दी गई थी। इन विधायकों को एक बीजेपी विधायक के घर ले जाया गया। 3 मार्च तक जेएमएम और कांग्रेस एकदम बेताब हो चुकी थी। रांची और दिल्ली के साथ-साथ अहमदाबाद में भी इन विधायकों की तलाश हो रही थी लेकिन ये कहीं मिल ही नहीं रहे थे।
5 विधायकों को सुरक्षित कर चुकी बीजेपी को अभी भी डर था। ऐसे में उसने एक और खेल खेला। बयान जारी किए गए कि सभी 41 विधायक दिल्ली में हैं। फिर यह भी कह दिया गया कि अभी कुछ विधायक रांची में ही हैं। जब बीजेपी ने राष्ट्रपति से मुलाकात का समय ले लिया तब जाकर इन पांचों विधायकों को भुवनेश्वर से दिल्ली फ्लाइट से लाया गया।
इस बारे में प्रमोद महाजन ने बताया था, 'हमें डर था कि दिल्ली पुलिस इन विधायकों को हिरासत में ले सकती है। इसलिए हमारे वरिष्ठ नेता एयरपोर्ट पर मौजूद थे ताकि यह बता सकें कि अपहरण जैसे आरोप नहीं लगाए गए हैं।' अब इन विधायकों को गुजरात भवन ले जाया गया और वहां इन्हें मीडिया के सामने पेश किया गया। इसके बाद सभी 41 विधायक राष्ट्रपति से मिलने गए। बीजेपी का एक विधायक बीमार थे तो वह एंबुलेंस से राष्ट्रपति भवन पहुंचे। इस तरह एनडीए ने राष्ट्रपति के सामने साबित कर दिया था कि उसके पास बहुमत है और राज्यपाल ने बहुमत न होने के बावजूद शिबू सोरेन को सीएम पद की शपथ दिला दी है। हालांकि, राष्ट्रपति भी ज्यादा से ज्यादा विश्वास प्रस्ताव की ही बात कह सकते थे।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया तो देश की सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया कि 11 मार्च 2005 तक शिबू सोरेन अपना बहुमत साबित करें। वहीं, इससे पहले राज्यपाल ने 15 मार्च तक का समय दिया था। हालांकि, आखिर में जब शिबू सोरेन को एहसास हो गया कि अब वह समर्थन नहीं जुटा पाएंगे तो उन्होंने राज्यपाल से मुलाकात की और 11 मार्च 2005 को इस्तीफा दे दिया। इसके बाद फिर से अर्जुन मुंडा ने शपथ ली और झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए।
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