रामदास अठावले: कवि से चतुर नेता तक हर फॉर्मूले में हिट कैसे?
शिवसेना से भिड़कर बने 'नेता', शरद पवार ने बनाया 'मंत्री', कैसे अंबेडकर की विरासत संभाल रहे 'कवि'रामदास अठावले? पढ़ें पूरी कहानी।

RPI(A) अध्यक्ष रामदास आठवले। (फोटो क्रेडिट-www.facebook.com/ramdasathawale)
एक राजनेता जो कवि भी है। अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा का कवि नहीं, अपनी परंपरा शुरू करने वाला कवि। जो जब कविता लिखता है, तब छंद-बहर की सीमाएं पीछे छूट जाती हैं, शब्दों की खिचड़ी से जो कविता तैयार होती है, वह व्याकरण के नजरिए से ठीक हो न हो, तालियां खूब पड़ती हैं। ये ऐसे कवि हैं, जिन्हें जाति की राजनीति करने में महारत हासिल है, ये चुनाव लड़ें या न लड़ें, इनका केंद्रीय मंत्री बनना तय होता है। ये कोई और नहीं, रामदास अठावले हैं, जो ससंद में अपने चुटीले अंदाज के लिए लिए बेहद मशहूर हैं।
7 अगस्त 2023। सीरियस मुद्दे पर संसद में बहस चल रही थी। दिल्ली सेवा बिल (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार-संशोधन-विधेयक, 2003) पर पक्ष-विपक्ष के लोगों में खूब जमकर कहा-सुनी हो रही थी। विपक्ष तैश में था कि लोकतांत्रिक केंद्र शासित प्रदेश में, उपराज्यपाल की ताकतें बढ़ाने के लिए इस हद तक कैसे जा सकती है। तभी इस पर रामदास अठावले उठते हैं और कविता सुनाते हैं और पूरा सदन तालियों के गूंज उठता है।
उनकी कविता की लाइनें कुछ ऐसी हैं, जिन्हें आप भी सुनेंगे तो ठहाके लगाने से रोक नहीं पाएंगे। कविता कुछ ऐसी थी, 'अमित भाई का इतना अच्छा आ गया है बिल, सामने वालों को हो रहा है फिल, नरेंद्र मोदी के पास ही इतनी अच्छी विल, दिल्ली में हो रही है शराब की डील, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बहुत अच्छी बन गई जोड़ी, फिर कांग्रेस और आप वालों की कैसे आगे जाएगी गाड़ी, नरेंद्र मोदी जानते हैं जनता की नाड़ी, इसलिए तो मैंने बढ़ाई है दाढ़ी।'
अब आप इसे कविता कहें या न कहें, सदन में लोगों ने जमकर तालियां बजाईं। रामदास अठावले का यही हुनर है। वे दलित समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। महाराष्ट्र में उनकी पार्टी का अच्छा वोट बैंक है। वे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। एक जमाने में वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (UPA) का हिस्सा रहे लेकिन साल 2014 में जब नेतृत्व परिवर्तन हुआ तब से लेकर अब तक वे नरेंद्र मोदी सरकार से जुड़े रहे हैं।
कौन हैं रामदास अठावले?
रामदास अठावले 25 दिसंबर 1959 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के अगलगांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम बंधु बापू अठावले और मां का नाम होंसाबाई था। रामदास अठावले ने सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ, मुंबई से कानून की पढ़ाई की। वे छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उनके जीवन पर भीमराव अंबेडकर का प्रभाव था। 1974 में दलित पैंथर मूवमेंट से प्रभावित होकर रामदास अठावले ने अर्जुन कांबले और गंगाधर गाडे की अगुवाई वाले गुट में शामिल हो गए। वे रिपल्बिकन पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े और जमकर काम करने लगे। दलित पैंथर, दलितों के शोषण के खिलाफ काम करने वाली एक तेज तर्रार संस्था थी।
शिवसैनिकों से भिड़कर बने बड़े नाम
मराठवड़ा विश्वविद्यालय का नाम उन्होंने अंबेडकर विश्वविद्यालय करने के लिए आंदोलन चलाया, जिसमें वे चर्चित हो गए। इसी दौरान मराठाओं और दलितों में हिंसा भड़की। किसी तरह समझौता हुआ और विश्वविद्यालय का नाम बाबा साहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय नाम रखा गया। वे इसी साल, आंदोलनकारी से राजनेता बन गए थे। रामदास अठावले साल 1990 से लेकर 1996 तक महाराष्ट्र विधानसभा परिषद के सदस्य रहे। शरद पवार के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें सामाजिक न्याय और ट्रांसपोर्ट विभाग मंत्रालय भी मिला। साल 1990 से 95 तक वे राज्य की राजनीति में बहुत सक्रिय रहे। वे पंढरपुर निर्वाचन क्षेत्र से आते थे। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से हटकर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) बना ली थी।
रामदास अठावले सूबे के जाने-माने नेता बनते चले गए। वे पहली बार मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से 1998-1999 के बीच लोकसभा सासंद रहे। 1999 से लेकर 2004 तक दोबारा सांसद बने। 2004 से 2009 तक भी सांसद रहे। वे दलित वोटरों को अपने पक्ष में करते चले गए। साल 2011 में उन्होंने यूपीए से किनारा कर लिया। वे खुद संसद में बता चुके हैं कि जिसके अच्छे दिन रहते हैं, वे उन्हीं के साथ रहते हैं। दरअसल साल 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे, वे हार गए थे। आरोप लागाया कि उनके साथ कांग्रेस के वोटर गए ही नहीं।
साल 2011 में रामदास अठावले की पार्टी, बीजेपी और शिवसेना के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो गई। सबने मिलकर बीएमसी का चुनाव लड़ा। साल 2014 में रामदास अठावले ने राज्यसभा की राह पकड़ ली। उन्हें भी राज्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने 6 जुलाई 2016 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की कमान संभाली। तब केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत के आधीन उन्हें ये जिम्मेदारी मिली थी। उनकी पार्टी और बीजेपी, 2011 से जुड़ी है। साल 2019 में भी वे उन्हें मंत्री बनाया। साल 2024 में भी वे केंद्रीय मंत्री बने। रामदास अठावले ऐसे नेता हैं, जिनकी जरूरत महाराष्ट्र के जातीय गणित को साधने के लिए हर वर्ग को है। महाराष्ट्र में दलित वोटरों की संख्या 19 प्रतिशत के आसपास है। उनके पास एक मजबूत कैडर है, जिसके लिए लोग उन्हें आसानी से मंत्रिमंडल में शामिल भी कर लेते हैं।
राष्ट्रवादी राजनीति में कैसे अपनी पहचान बनाए रखे हैं अठावले?
रामदास अठावले, अपनी पार्टी को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। जब साल 2015 में हरियाणा में दलितों पर हमला हुआ था, तब उन्होंने कहा था कि दलितों को खुद ही सरकार हथियार दे दे, जिससे वे अपनी हिफाजत कर सकें। साल 2017 में उन्होंने एक बार कहा था कि दलितों को जातीय उत्पीड़न से बचने के लिए हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध बन जाना चाहिए। उन्होंने जातीय भेदभाव को लेकर संघ और बीजेपी की आलोचना भी की है। वे बताते हैं कि जातीय हिंसा से निपटने के लिए लोगों को अंतरजातीय विवाह करना चाहिए। रामदास अठावले सिर्फ यहीं नहीं रुके। वे आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को भी आरक्षण देने की वकालत करते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी RPI (A) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है। देखने वाली बात ये है कि एक बार फिर महाराष्ट्र के लोग उन पर भरोसा जताते हैं या नहीं।
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