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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 1962: कांग्रेस ने मजबूती से जमा दिए थे पैर

महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव पहली बार 1962 में हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की और लंबे समय के लिए अपने शासन की नींव रख दी।

maharashtra assembly elections 1962

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 1962, Image Credit: Social Media

मौजूदा समय में महाराष्ट्र राज्य एक समय पर संयुक्त रूप से बॉम्बे स्टेट के तौर पर जाना जाता था। यह तब की बात है जब गुजरात एक अलग राज्य नहीं बना था और इसी बॉम्बे स्टेट का हिस्सा हुआ करता था। साल 1957 में इसी बॉम्बे स्टेट के मुख्यमंत्री यशवंत राव चव्हाण बने। वही यशवंत राव चव्हाण साल 1960 में नए महाराष्ट्र राज्य के भी पहले सीएम बने। हुआ यूं कि साल 1960 में गुजरात अलग हो गया तो वहां तुरंत चुनाव हुए और कांग्रेस के जिवराज मेहता 1 मई 1960 को गुजरात के पहले मुख्यमंत्री बने। बॉम्बे स्टेट के चुने हुए मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण 1957 में चुने ही गए थे तो महाराष्ट्र की विधानसभा भंग नहीं की गई। साल 1962 में जब अगले चुनाव हुए तो उसी के हिसाब से अलगे सीएम का फैसला हुआ।

 

महाराष्ट्र को अलग राज्य बनाने के लिए साल 1940 के 28 जनवरी को संयुक्त महाराष्ट्र सभा का गठन किया गया। दूसरे विश्व युद्ध के चलते 1945 तक ज्यादा कुछ नहीं हो पाया लेकिन 12 मई 1946 को इस संगठन की एक सभा में संयुक्त महाराष्ट्र रेजॉलूशन पास किया गया। साल 1950 से 1953 के बीच आंदोलन तेज हुआ। यह आंदोलन कई चरण से होकर गुजर ही रहा था। साल 1960 में केंद्र सरकार ने बॉम्बे रीऑर्गनाइजेशन एक्ट पास किया जिसके तहत गुजरात और महाराष्ट्र बनाने का फैसला किया गया। इसके तहत मुंबई को संयुक्त महाराष्ट्र और अहमदाबाद को गुजरात की राजधानी होना था।

 

कांग्रेस की बंपर हवा चली
 
महाराष्ट्र को अलग राज्य बनाने की लड़ाई लड़ने में यशवंत राव चव्हाण समेत कई कांग्रेसी नेताओं का अहम योगदान था। साल 1962 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव एक नए माहौल में हो रहा था। अब गुजराती अलग हो चुके थे और मराठियों के पास खुद का अपना अलग राज्य था जिसे भाषा के आधार पर अलग किया गया था। यशवंत राव चव्हाण कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे और कांग्रेस के सामने कोई भी पार्टी मजबूती से टिक नहीं पा रही थी। यशवंत चव्हाण से लोगों की भावनाएं जुड़ी थीं, वह मराठियों से अच्छा संपर्क रखते थे और तब तक बाकी पार्टियां इतनी मजबूत नहीं थीं कि वे कांग्रेस को चुनौती दे सकें।

 

उस वक्त यानी 1962 के चुनाव में महाराष्ट्र में कुल 264 विधानसभा सीटें थीं जिसमें से 33 अनुसूचित जाति के लिए और 14 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थीं। उस चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 1.93 करोड़ थी। लोगों ने चुनाव में खूब वोटिंग की। 60.36 पर्सेंट लोगों ने अपने वोट का इस्तेमाल किया।

80 पर्सेंट से ज्यादा सीटें जीती कांग्रेस

 

कांग्रेस को बंपर बहुमत मिला और 264 में से 215 सीटें जीतकर उसने सरकार बनाई। यानी कांग्रेस ने 81 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को सिर्फ 9 और सीपीआई को 6 सीटों पर जीत मिली। पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ने 15, रिपब्लिकन ने 3, सोशलिस्ट पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में 15 निर्दलीय विधायक भी जीते और विधानसभा पहुंचे। 

 

उसी साल लोकसभा के भी चुनाव हुए थे और केंद्र में पंडित नेहरू ने फिर से सरकार बनाई तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे यशवंत राव चव्हाण को दिल्ली बुला लिया। उन्हें पहले तो रक्षामंत्री बनाया गया फिर 1963 में नाशिक सीट पर हुए उपचुनाव में लोकसभा चुनाव लड़वाया गया जिसमें वह जीत भी गए। 1962 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में 44 सीटें थीं। तब कांग्रेस ने इसमें से 41 सीटें जीत ली थीं। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी और दो सांसद निर्दलीय चुने गए थे।

 

चव्हाण गए दिल्ली, कन्नमवार बन गए सीएम

 

यशवंत चव्हाण के दिल्ली चले जाने पर पुराने नेता बॉम्बे स्टेट की सरकार में मंत्री रह चुके मारोतराव कन्नमवार को मुख्यमंत्री बनाया गया। सिर्फ एक साल 4 दिन तक सीएम पद पर रहे मारोतराव का पद पर रहने के दौरान ही निधन हो गया। इस स्थिति में कांग्रेस ने पी के सावंत को कार्यकारी मुख्यमंत्री बनाया। 10 दिन के बाद कांग्रेस ने वसंतराव नाइक को सीएम बनाया और वह अगले एक दशक से ज्यादा समय तक महाराष्ट्र के सीएम रहे।

 

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