नौतन विधानसभा: नारायण प्रसाद बचाएंगे BJP का किला या पलट जाएगी बाजी?
बिहार की नौतन विधानसभा में दो बार से नारायण प्रसाद चुनाव जीत रहे हैं। इस बार उनकी ही पार्टी के कुछ नेता बगावती तेवर दिखा रहे हैं।

नौतन विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon
पश्चिमी चंपारण जिले में आने वाली यह विधानसभा उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से लगी हुई है। एक तरफ बेतिया और गोविंदगंज विधानसभा है तो बाकी के हिस्से वाल्मीकि नगर, चनपटिया और लौरिया विधानसभा से लगते हैं। कभी केदार पांडेय जैसे दिग्गज नेताओं की सीट के नाम से चर्चित रही नौतन विधानसभा का प्रतिनिधित्व अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नारायण प्रसाद कर रहे हैं। 95 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी वाले इस विधानसभा क्षेत्र में खेती ही मुख्य व्यवसाय है और बाढ़ जैसी समस्याएं सबसे आम हैं। रोजगार के चक्कर में पलायन तो बाकी बिहार की तरह ही इस विधानसभा को भी जैसे तोहफे में मिला है।
बाढ़ और कटाव वाले इस क्षेत्र में तटबंधों की मांग लगातार होती रही है। विस्थापन हर साल होने वाली एक समस्या है जिसका निदान पूरे बिहार के साथ-साथ नौतन को भी खोजना है। नाली, सड़क और मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी समस्याएं यहां हावी हैं और विधायक को भी लगातार उससे जुड़े सवालों के जवाब देने पड़ते हैं। इस विधानसभा सीट में लगभग 17 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। लगातार बीजेपी और जेडीयू के कब्जे में रही इस सीट पर विपक्ष की राह मुश्किल लगती है। हालांकि, राहुल गांधी की यात्रा ने यहां थोड़ा बहुत माहौल बदलने की कोशिश जरूर की है।
मौजूदा समीकरण
2 बार इस विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने नारायण प्रसाद लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं। बीजेपी और जेडीयू फिलहाल साथ ही हैं तो पूरी उम्मीद है कि यह सीट बीजेपी की झोली में जा सकती है और नारायण प्रसाद एक बार फिर से यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी खूब मेहनत की है। ऐसे में उम्मीद है कि कांग्रेस एक बार फिर से यहां अपना उम्मीदवार उतारेगी। यही वजह है कि कांग्रेस के नेता इस सीट पर खूब मेहनत कर रहे हैं।
बीजेपी के लिए समस्या यह है कि उसी के नेता सत्येंद्र शरण बगावती मोड में दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया या सही से मैनेज नहीं कर पाई तो वह चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए यहां मुश्किलें भी पैदा हो सकती हैं। राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' भी नौतन से गुजरी थी और यहां कांग्रेस ने खूब पसीना बहाया है। कांग्रेस नेता राजकुमार कुशवाहा भी इस सीट से अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। वहीं, नई नवेली जन सुराज भी इस बार यहां के मुकाबले को रोमांचक बना सकती है।
2020 में क्या हुआ था?
2015 में जब जेडीयू और आरजेडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तब भी बीजेपी के नारायण प्रसाद ने ने यहां जीत हासिल कर ली थी। 2020 के चुनाव में जेडीयू और बीजेपी साथ मिलकर लड़े तो यह सीट फिर से बीजेपी के खाते में आई। नारायण प्रसाद ही फिर से बीजेपी के उम्मीदवार बने। वहीं, विपक्षी गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई। कांग्रेस ने नारायण प्रसाद के सामने शेख रहमान को टिकट दिया।
चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी के नारायण प्रसाद ने शेख मोहम्मद कामरान को भी चुनाव हरा दिया। निर्दलीय चुनाव लड़ी मनोरमा प्रसाद 15 हजार वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहीं। मनोरमा प्रसाद 2010 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़कर जीती थीं। रोचक बात है कि मनोरमा प्रसाद ने 2010 में नारायण प्रसाद को ही चुनाव हराया था। नारायण प्रसाद तब लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। 2020 के चुनाव में नारायण प्रसाद को कुल 78,657 वोट मिले और कांग्रेस के शेख कामरान को 52 हजार वोट मिले।
विधायक का परिचय
2009 में इस विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। तब नारायण प्रसाद बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर चुनाव लड़े थे और विधायक बन गए थे। 2010 में वह एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन जेडीयू की मनोरमा प्रसाद से हार गए थे। 2015 में वह बीजेपी के टिकट पर लड़े और अब उसी के विधायक हैं। 1985 में राजनीति की शुरुआत करने वाले नारायण प्रसाद ने तब बीजेपी से ही अपनी शुरुआत की थी। तब वह ब्लॉक और जिला स्तर पर बीजेपी में सक्रिय थे। तेली समुदाय से आने वाले नारायण प्रसाद 2001 में जिला परिषद का चुनाव जीते थे और बाद में विधानसभा तक पहुंचे। 2021 से 2022 तक वह बिहार की नीतीश कुमार सरकार में टूरिज्म मंत्री भी थे।
2020 के चुनावी हलफनामे में नारायण प्रसाद ने बताया था कि उनकी कुल संपत्ति लगभग 75 लाख रुपये के आसपास है। तब उन पर 7 लाख रुपये का एक कार लोन भी था। तब उन्होंने बताया था कि उनके खिलाफ न तो कोई मुकदमा चल रहा है और न ही उन्हें कभी किसी मामले में दोषी पाया गया था।
विधानसभा सीट का इतिहास
इस विधानसभा सीट को भूतपूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय की वजह से जाना जाता है। 1967 में इस सीट से पहली बार चुनाव जीते केदार पांडेय लगातार 4 बार यहां से विधायक बने। जब वह सीएम भी बने तब भी इसी सीट से विधायक थे। 1980 में वह सांसद बन गए तो उनकी पत्नी कमला पांडेय यहां से विधायक बनीं और वह भी दो चुनाव जीतीं। 1990 के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के रेवाकांत द्विवेदी ने यहां बाजी पलट दी थी। उस चुनाव में केदार पांडेय की पत्नी कमला पांडेय न सिर्फ चुनाव हारीं बल्कि तीसरे नंबर पर रहीं।
1995 में रेवाकांत द्विवेदी को बड़ा झटका लगा और वह पांचवें नंबर पर पहुंच गए। उस चुनाव में कांग्रेस ने केदार पांडेय के परिवार से किनारा करते हुए शंभु शरण शुक्ला को टिकट दिया था लेकिन वह 8वें नंबर पर रहे। सतन यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़कर यहां से जीत हासिल की थी। 1995 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे बैद्यनाथ महतो 2000 में भी चुनाव जीते और 2005 में दोनों बार जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीते। 2009 में बैद्यनाथ महतो सांसद बन गए तो नारायण प्रसाद ने जीत हासिल की। 2010 में नारायण प्रसाद मनोरमा देवी से हार गए लेकिन 2015 और 2020 में फिर उन्होंने ही जीत हासिल की।
1967- केदार पांडेय- कांग्रेस
1969-केदार पांडेय- कांग्रेस
1972-केदार पांडेय- कांग्रेस
1977-केदार पांडेय- कांग्रेस
1980-कमला पांडेय- कांग्रेस
1985-कमला पांडेय- कांग्रेस
1990-रेवाकांत द्विवेदी- CPI
1995- सतन द्विवेदी- निर्दलीय
2000-बैद्यनाथ महतो- समता पार्टी
2005-बैद्यनाथ महतो- जेडीयू
2005-बैद्यनाथ महतो- जेडीयू
2009- नारायण प्रसाद- BSP (उपचुनाव)
2010- मनोरमा प्रसाद- जेडीयू
2015-नारायण प्रसाद- BJP
2020-नारायण प्रसाद- BJP
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