• MUMBAI 19 Nov 2024, (अपडेटेड 19 Nov 2024, 2:33 PM IST)
महायुति सरकार, मराठवाड़ा इलाके में सबसे ज्यादा परेशानियों से जूझ रही है। यहां की जातीय गणित में महायुति की पार्टियां उलझ गई हैं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस। (तस्वीर- देवेंद्र फडणवीस, फेसबुक)
महाराष्ट्र का मराठवाड़ा। महाराष्ट्र के 8 जिले इस क्षेत्र के अंदर आते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद से ही इस इलाके में बीजेपी की चुनौतियां बढ़ने लगी हैं। क्या विधानसभा चुनावों में भी ये मुश्किलें कम नहीं होंगी? आइए विस्तार समझते हैं। मराठवाड़ा इलाके में ही सबसे ज्यादा सक्रिय नेताओं में से एक हैं मनोज जरांगे पाटिल। मनोज जरांगे खुद राजनीति में उतर चुके हैं। वे चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं लेकिन यह बता रहे हैं कि किसे वोट नहीं देना है।
मराठवाड़ा इलाके में कुल 46 विधानसभा सीटें हैं। इस इलाके में रावसाहेब दानवे, कंपजा मुंडे और प्रताप चिखालिकर, अशोक चह्वाण जैसे दिग्गज अपनी सियासी जमीन तैयार कर चुके हैं। यहां बीते 6 महीने में कई दिग्गज चुनाव हार चुके हैं। इस क्षेत्र में महज 8 सीटें एनडीए को हासिल हुईं। महायुति गठबंधन के कुल विधायकों की संख्या अभी 188 है। बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी तीनों मिलकर लोकसभा चुनावों में वह माहौल नहीं बनाए, जिसकी उम्मीद थी।
मनोज जरांगे पाटिल किसका बिगाड़ेंगे खेल? मनोज जरांगे पाटिल, सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ जमकर बरस रहे हैं। वे चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं लेकिन अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि महायुति के खिलाफ वोट दें। उन्होंने माराठा बाहुल इलाकों में कोई जनसभा नहीं की है। वे भी महायुति की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। मनोज जरांगे से महा विकास अघाड़ी गठबंधन के नेता अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करने की मांग कर रहे हैं। वे मराठाओं के नेता हैं और उनसे वे भावनात्मक तौर पर जुड़े भी हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने अपनी नाराजगी से ही महायुति को नुकसान पहुंचाया था, इस बार वे अपील भी क रहे हैं।
कैसे मराठा बनाम ओबीसी हुई लड़ाई? महाराष्ट्र की लड़ाई अब मराठा बनाम ओबीसी की लड़ाई हो गई है। आरक्षण के मुद्दे पर दोनों समुदायों के बीच राजनीतिक अनबन है। ओबीसी कोटा के कार्यकर्ता लक्ष्मण हेके ने जरांगे पाटिल के आंदोलन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया। मराठा चाहते हैं कि उन्हें ओबीसी का दर्जा मिले। ओबीसी चाहता है कि ऐसा न होने पाए। बीजेपी ओबीसी वोटरों में संदेश दे रही है कि एक रहेंगे सेफ रहेंगे, वहीं एमवीए मराठाओं को लुभाने के लिए जातिगत जनगणना का नारा दे रही है।
चुनावी जनसभा में अजित पवार। (तस्वीर- फेसबुक)
महायुति के लिए नाक की लड़ाई बनी ये चुनावी जंग महायुति ने मराठवाड़ा के 46 में 28 विधानसभाओं में मराठाओं को टिकट दिया है। यह गठबंधन, इस इलाके में आपसी संघर्ष से ही जूझ रहा है। नांदेड़ के मुखेड़ इलाके में बीजेपी के मौजूदा विधायक तुषार राठौड़ के खिलाफ शिवसेना नेता बालाजी खतगांवकर ने पर्चा भरा है। जालना में रावसाहेब दानवे, अपने बेटे संतोष और बेटी संजना के चुनाव प्रचार में उतरे हैं।
धनंजय मुंडे के सामने परली विधानसभा में राजेश देशमुख हैं। नांदेड़ में अशोक चह्वाण अपनी बेटी के चुनाव प्रचार में उतरे हैं।
क्यों डरी है महायुति? महायुति सरकार से किसान और मराठा, दोनों वर्ग नाराज है। किसान एमएसपी से लेकर कर्ज तक पर नाराज हैं, वहीं मराठा आरक्षण को लेकर नाराज हैं. मुस्लिम वर्ग पहले से ही बीजेपी के पक्ष में नहीं है। अब अगर ओबीसी और दलित वर्ग भी सत्तारूढ़ गठबंधन से हाथ पीछे खींच ले तो विधानसभा की तस्वीर बदल सकती है।
एकनाथ शिंदे एक चुनावी जनसभा में। (तस्वीर- फेसबुक)
किसानों की नाराजगी किस बात पर है? मराठवाड़ा और विदर्भ के किसान MSP को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि एमएसपी की जो राशि सरकार ने तय की है, उससे कम उन्हें मिल रहा है। 70 विधानसभाओं की मुख्य फसल सोयाबीन है, जिसे 4000 से 4200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा रहा है, जबकि इसकी कीमत सरकार ने 4892 तय कर रखी है। कपास की बिक्री महज 6700 रुपये प्रति क्विंटल से हो रही है, वहीं इसकी MSP 7521 है। सोयाबीन की फसल की खरीद घटी है, किसान अपनी लागत तक वसूल नहीं पा रहे हैं। खुले बाजार में किसान इसे 3600 रुपये प्रति क्विंटल बेचने को मजबूर हैं। किसानों की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह भी है।