उत्तरी महाराष्ट्र एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गढ़ रहा है। उत्तरी महाराष्ट्र के नासिकल, जलगांव, धुले और नंदुरबार में प्याज की खेती होती है। देश के ज्यादातर हिस्सों में इसी इलाके से प्याज जाता है। 6 लोकसभा और 35 विधानसभा सीटों वाले इस इलाके में 2024 के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ सरकार के प्रति अंसतोष नजर आया। इस इलाके में महायुति गठबंधन का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। किसान, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से नाराज नजर आए। शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के साथ भारतीय जनता पार्टी के इस गठबंधन की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि कैसे यहां के सियासी समीकरणों को साधा जाए।
महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन, इस इलाके में बेहतर प्रदर्शन दिखा चुका है। MVA में कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (UBT) शामिल हैं। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस क्षेत्र में 13 सीटें हासिल करने में कामयाब हुई थी। शिवसेना ने 6 सीटें जीती थीं, एनसीपी को 7 सीटें मिली थीं, कांग्रेस को 5 और AIMIM को 2 सीटें मिली थीं। 2 निर्दलीय भी जीते थे। साल 2024 तक समीकरण बदल गए थे। शिवसेना और एनसीपी बंट गई थीं। जब लोकसभा चुनाव हुए थे 6 संसदीय सीटों पर कांग्रेस 2 सीट, बीजेपी 2 सीट और एनसीपी (शरद) और शिवसेना (ठाकरे) ने एक-एक सीटें हासिल कीं। ठीक 5 साल पहले यहां बीजेपी ने 5 सीटें जीती थीं और शिवसेना ने 1। अब इस खोए गढ़ को बचाने की चुनौती बीजेपी के पास है।
कैसे किसानों को साधने की कोशिश कर रही है महायुति?
किसान नेता और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) के पदाधिकारी देवेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि क्षेत्र में प्याज की खेती जमकर होती है। देश में प्याज की किल्लत रोकने के लिए दिसंबर 2023 में नरेंद्र मोदी सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध से पहले प्याज पर निर्यात शुल्क बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया गया था। 30 अप्रैल तक नियार्त पर बैन जारी रहा, जब लोकसभा चुनाव आए तो 4 मई को इसे हटा दिया गया। 13 सितंबर को सरकार ने प्याज पर निर्यात शुल्क हटाकर 40 प्रतिशत से 20 प्रतिशत कर दिया। यह कोशिश किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए की गई थी लेकिन असरदार साबित नहीं हुई।
क्यों नाराज हैं किसान?
किसान सरोकारों से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकर्ता पुजारी शर्मा बताते हैं कि प्याज निर्यात पर सरकार के रुख से स्थानीय किसान नाराज हैं। यह वही इलाका है, जहां से देश का 30 फीसदी प्याज होता है। शरद पवार कृषि मंत्री रहे हैं। उनके कृषि मंत्री रहने के दौरान ही कई ऐसे फैसले लिए गए, जिनकी वजह से उनके खिलाफ जनाक्रोश बढ़ा लेकिन साल 2008 में जब उन्होंने कृषि ऋण माफी का ऐलान किया था, तबसे किसानों का एक तबका उन्हें बेहद पसंद करने लगा। शरद पवार, बीजेपी और महायुति के खिलाफ आक्रोश को बेहतर तरीके से भुनाना जानते हैं।
महायुति के लिए क्यों मुश्किल हुई है राह?
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (शरद गुट) के नेता देवेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि प्याज क्षेत्र में मराठा वोटर निर्णायक स्थिति में है। मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल उधर मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं। मराठा भी महायुति सरकार से आरक्षण को लेकर नाराज हैं, किसान भी नाराज हैं। ऐसे में महायुति सरकार के लिए यहां की राह आसान नजर नहीं आ रही है। वहीं महायुति को भरोसा है कि मुफ्त बिजली और प्याज पर संशोधित नीतियों की वजह से किसान उनका समर्थन करेंगे। अगर यहां हिंदुत्व का मुद्दा असरदार नहीं हुआ तो शायद बीजेपी के लिए राह आसान नहीं होने वाली है।