• MUMBAI 14 Nov 2024, (अपडेटेड 14 Nov 2024, 2:31 PM IST)
भारतीय जनता पार्टी की नेता पंकजा मुंडे ने महाराष्ट्र में पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से इतर एक राजनीतिक की शुरुआत की है, उन्हें एक नारे पर आपत्ति है। क्या है मामला, आइए जानते हैं।
महाराष्ट्र विधान परिषद की सदस्य पंकजा मुंडे। (फोटो- www.facebook.com/PankajaGopinathMunde)
देश में उपचुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक, झारखंड से लेकर महाराष्ट्र तक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक नारे की धूम मची है, 'बंटेंगे तो कटेंगे।' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम हिमंता बिस्वा सरमा तक की जुबान पर ये नारा बैठ गया है। बीजेपी लेकिन महाराष्ट्र में इस नारे पर आगे नहीं बढ़ पा रही है, वजह पकंजा मुंडे हैं।
पंकजा मुंडे को यह नारा पसंद नहीं है, वे अपनी राजनीति को इस राजनीति से अलग मानती हैं। उन्हें महाराष्ट्र के लिए बटेंगे तो कटेंगे का नारा पसंद नहीं है, क्योंकि वे इसे अपनी राजनीति के खिलाफ मानती हैं। दिलचस्प बात ये है कि पंकजा मुंडे खुद, महाराष्ट्र विधान परिषद की सदस्य हैं, वह भी बीजेपी से ही। वे बीजेपी के दिग्गज नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के साथ हुए एक इंटरव्यू में उन्होंने जो कहा है, वह शायद ही राज्य और देश के बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को पसंद हो। पंकजा मुंडे ने कहा, 'सच कहूं तो मेरी राजनीति अलग है। मैं सिर्फ इसलिए इसका समर्थन नहीं करूंगी क्योंकि मैं उसी पार्टी से जुड़ी हूं। मेरा मानना है कि हमें सिर्फ विकास पर काम करना चाहिए। एक नेता का काम इस धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अपना बनाना है। इसलिए हमें महाराष्ट्र में इस तरह का कोई मुद्दा उठाने की जरूरत नहीं है।'
क्या योगी आदित्यनाथ को नापसंद करती हैं पंकजा? पकंजा मुंडे ने अपने इंटरव्यू में ही यह इशारा कर दिया है था कि महाराष्ट्र के राजनीतिक संदर्भ, यूपी से अलग हैं। सीएम योगी ने यह नारा, यूपी में ही पहली बार लगाया है। पंकजा कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी को न्याय दिया है, उन्होंने लोगों को राशन दिया, आवास और सिलेंडर देखते वक्त, उन्होंने जाति या धर्म नहीं देखा।
पंकजा मुंडे की राजनीतिक हैसियत क्या है? पंकजा मुंडे, गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं। वे केंद्रीय मंत्री रहे और महाराष्ट्र बीजेपी के बड़े नेताओं उनकी गिनती होती थी। वे ओबीसी वर्ग की बड़ी नेता मानी जाती हैं और जब से महाराष्ट्र ने लोकसभा चुनावों में बीजेपी को झटका दिया, पंकजा मुंडे को ज्यादा अहमियत दी जाने लगी। वे चर्चित नेताओं में शुमार हैं और बार-बार एहसास दिला देती हैं कि उनका कद छोटा नहीं है।
खुद प्रधानमंत्री क्या कहते हैं? प्रधानमंत्री बटेंगे तो कटेंगे का नारा नहीं दे रहे हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ की ही तर्ज पर एक रहेंगे सेफ रहेंगे का नारा दे रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस जातीय विभाजन का खेल खेल रही है, मराठा और दूसरी ओबीसी जातियों को लड़ा रही है, इस वजह से एक रहना जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस नारे पर विपक्ष के नेताओं का कहना है वे सीएम योगी की ही जुबान बोल रहे हैं लेकिन अलग अंदाज से।
अशोक चह्वाण को भी नहीं रास आया ये नारा बीजेपी सांसद और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को भी ये नारा रास नहीं आया है। उन्होंने भी कहा है कि बटेंगे तो कटेंगे का नारा ठीक नहीं है, यह आप्रासंगिक है और इसे लोग पसंद नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे वोट जिहाद और धर्मयुद्ध के नारे को ज्यादा महत्व नहीं देते हैं क्योंकि बीजेपी और सत्तारूढ़ महायुति की नीति देश और महाराष्ट्र का विकास है। बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर उन्होंने साफ कहा है कि ऐसे नारों की कोई प्रासंगिकता नहीं है। ये नारे चुनावी हैं, यह नारा ठीक नहीं है, मुझे नहीं लगता कि लोग इसे पसंद करेंगे। व्यक्तिगत तौर पर ऐसे नारों को वे पसंद नहीं करते हैं।
बटेंगे तो कटेंगे नारे से महायुति अलग क्यों? महायुति के दिग्गज नेताओं में शुमार अजित पवार भी सीएम योगी के नारे को दोहराने से डर रहे हैं। उन्होंने एक चुनावी मंच पर ही ये इशारा कर दिया था कि ऐसे नारे महाराष्ट्र में काम नहीं करेंगे। बीजेपी, हिंदुत्ववादी राजनीति करती है लेकिन चाहे अजित गुट की एनसीपी हो या शरद पवार की, दोनों का कोर वोट बैंक भी अल्पसंख्यक हैं। अजित पवार की पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में नवाब मलिक भी शुमार हैं, जो अल्पसंख्यक समाज से आते हैं। वह तो साफ कह चुके हैं कि महायुति का एजेंडा भी धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का नहीं है, यह बीजेपी का अपना एजेंडा है। महाराष्ट्र की सियासत अब इशारा कर रही है कि न केवल महायुति बल्कि पंकजा मुंडे जैसे नेता भी बटेंगे तो कटेंगे के नारे को पसंद नहीं कर रहे हैं।