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जहां महिला स्कीम, वहां हुआ खेला... दिल्ली में भी ऐसा हुआ तो?

एसबीआई की रिसर्च बताती है कि जिन राज्यों में महिलाओं से जुड़ी योजनाओं का ऐलान हुआ था, वहां वोट देने वाली महिलाओं की संख्या काफी बढ़ गई।

female voter

प्रतीकात्मक तस्वीर। (File Photo Credit: PTI)

कुछ सालों पहले तक चुनावी राजनीति से महिलाएं दूर रहती थीं। मगर अब हालात बदल गए हैं। अब महिलाएं न सिर्फ राजनीति में दिलचस्पी ले रहीं हैं, बल्कि किसी को सत्ता में लाने और हटाने का दम भी रखती है। यही वजह है कि अब राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को लुभाने के लिए कई योजनाएं शुरू कर रहीं हैं। दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव के लिए हर पार्टी महिलाओं को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। 


दो महीने पहले ही महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे। उन दोनों ही राज्यों में मौजूदा सरकार की वापसी की बड़ी वजह महिलाएं ही थीं। यही कारण है कि दिल्ली में भी महिलाओं के लिए हर पार्टी कई तरह के वादे कर रही हैं।

महिलाएं कैसे बन रहीं गेमचेंजर?

नवंबर में महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे। दोनों ही राज्यों में रूलिंग पार्टी की वापसी हुई। दोनों ही राज्यों में महिलाओं को हर महीने आर्थिक मदद दी जाती है।


महाराष्ट्र में चुनाव से पहले 'लाडकी बहिन योजना' शुरू की। इसके तहत 21 से 65 साल की उन महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये मिलते हैं, जिनकी सालाना कमाई 2.5 लाख से कम है। नतीजा ये हुआ कि महिलाओं ने वोटिंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। महिला वोटरों में से 65 फीसदी से ज्यादा ने चुनाव में वोट डाला।


इसी तरह झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार 'मइंया योजना' चलाती है। इसके तहत 21 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को हर महीने 1 हजार रुपये की मदद मिलती है। हालांकि, ये मदद उन्हीं महिलाओं को मिलती है, जिनकी सालाना कमाई 3 लाख रुपये से कम है। इस योजना से 48 लाख महिलाओं को फायदा होता है। चुनाव से पहले सोरेन सरकार ने मईयां योजना की राशि 1 हजार रुपये से बढ़ाकर 2,500 करने का ऐलान किया। नतीजा ये हुआ कि कुल महिला वोटरों में से 70.46 फीसदी ने वोट डाला। महिलाओं की ये जबरदस्त वोटिंग सोरेन सरकार के लिए निर्णायक साबित हुई।

महिला स्कीम से फायदा क्या?

हाल ही में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के डेटा के आधार पर एसबीआई की एक रिपोर्ट आई है। इसमें बताया गया है कि जिन 19 राज्यों में महिलाओं से जुड़ी योजनाओं का ऐलान किया गया, वहां वोट देने वाली महिलाएं 1.5 करोड़ से ज्यादा बढ़ गईं। इसके उलट, जिन राज्यों में ऐसी घोषणाएं नहीं हुईं, वहां वोट करने वाली महिलाएं सिर्फ 30 लाख ही बढ़ीं।


उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में लाडकी बहिन योजना लाई गई थी। यहां पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में वोट देने वाली महिलाओं की संख्या 52.6 लाख बढ़ गई। वहीं, मध्य प्रदेश में भी लाडली बहना योजना चलती है और 2023 के चुनाव में यहां 28.3 लाख ज्यादा महिलाओं ने वोट दिया। झारखंड में वोट देने वाली महिलाओं की संख्या 17 लाख तक बढ़ी।

क्या दिल्ली में भी होगा खेला?

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए हर पार्टी महिलाओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने पिछले साल महिला सम्मान योजना शुरू की थी। इसके तहत महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये की मदद मिलती है। पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने वादा किया है कि अगर सरकार बनी तो इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया जाएगा। 


सिर्फ आम आदमी पार्टी नहीं, बल्कि कांग्रेस ने भी वादा किया है कि अगर वो सत्ता में आई तो महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये दिए जाएंगे। बीजेपी ने अब तक अपना घोषणापत्र जारी नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि वो भी महिलाओं के लिए इसी तरह की स्कीम का ऐलान कर सकती है। महिलाओं से जुड़ी स्कीम का ऐलान करने का मकसद एक ही है और वो महिला वोटरों का साथ। 


चुनाव आयोग के मुताबिक, दिल्ली में इस बार 1.55 करोड़ से ज्यादा वोटर्स हैं। इनमें 71.74 लाख महिलाएं हैं। जबकि, 2020 में 1.47 लाख वोटरों में से 66.81 लाख महिलाएं थीं। यानी, कुल मिलाकर 5 लाख महिला वोटर्स बढ़ गईं हैं। अगर ये बढ़ी हुई महिला वोटर्स किसी एक तरफ चली गईं, उस पार्टी का फायदा होना लगभग तय है।


पिछले चुनाव में कम से कम 13 सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर 7 हजार से कम था। 9 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का अंतर 5 हजार से भी कम था। यानी, यहां पर खेला होने की संभावनाएं ज्यादा हैं। इस हिसाब से अगर किसी पार्टी की महिला स्कीम से खुश होकर अगर 25 से 30 फीसदी महिलाएं भी उसके साथ गईं तो यहां गेम पलट सकता है। इसे ऐसे समझिए कि पिछले चुनाव में बिजवासन सीट से आम आदमी पार्टी के भूपिंदर सिंह जून बीजेपी के सत प्रकाश राणा से महज 753 वोटों से जीते थे। अगर इस बार यहां की ज्यादातर महिलाएं किसी एक तरफ चली जाती हैं, तो जीत उसकी हो सकती है। 

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