अमजद खान ने 70 से 90 के दशक के बीच में 150 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। उनका करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा था। एक्टर हर किरदार में जान फूंक देते थे। वह सिर्फ शानदार अभिनेता ही नहीं फिल्म मेकर भी थे। उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण किया था। उन्हें इंडस्ट्री में यारों का यार कहा जाता था। वह हर किसी की मदद करते थे। फिर चाहे वह उनका दोस्त हो या कोई फिल्म मेकर। वह फिल्म मेकर्स के पास पैसे नहीं होने पर फीस तक नहीं लेते थे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो अपने लिए कैसी मौत चाहते है।
खुद के लिए ऐसी मौत चाहते थे अमजद खान
अमजद खान से पूछा गया था कि आप अपने लिए कैसी मौत चाहते हैं। उन्होंने जवाब देते हुए कहा था, 'मेरे एक हाथ में सिगरेट हो और दूसरे हाथ में चाय का कप हो और मैं शूटिंग कर रहा हूं। मेरे सभी बच्चे मेरे पास बैठे हो'। उनका ये इंटरव्यू काफी वायरल हुआ था। उन्हें चाय पीने का बहुत शोक था। उन्हीं की तरह बॉलीवुड के किंग शाहरुख खान ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें सेट पर सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। उन्होंने कहा था मेरा सपना है कि कोई निर्देशक मुझे एक्शन कहे और फिर मैं मर जाऊं। वो कट कहे बोले और मैं कभी उठूं ही नहीं।
फिल्म 'शोले' से मिली पहचान
अमजद खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट 11 साल की उम्र में फिल्म 'नाजीन' से की थी। 17 साल की उम्र में वह फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं है' में नजर आए थे। इस फिल्म के बाद वह बहुत ज्यादा कॉन्फिडेंट हो गए थे। उन्होंने मुगले आजम के निर्देशक के आसिफ के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया। के आसिफ के निधन के बाद वह परेशान हो गए थे। वो छोटे-मोटे रोल करते थे लेकिन कोई बड़ी फिल्म नहीं मिलती थी ।
33 साल की उम्र में उन्हें राजकपूर की फिल्म 'हिंदोस्तान की कसम' में काम मिला था। इसके बाद 1975 में उन्हें सलीम जावेद ने फिल्म 'शोले' ऑफर की थी। हालांकि शोले में गब्बर के किरदार के लिए सलीम जावेद की पहली पसंद डैनी डेन्जोंगपा थे। डैनी दूसरी फिल्म की शूटिंग में बिजी थे जिस वजह से ये रोल अमजद को मिला। उन्होंने गब्बर के किरदार को अमर कर दिया। आज भी इस फिल्म के डायलॉग लोगों की जुबान पर चढ़े हुए है।