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पुराणों को पर्दे पर उतारा, बनाई मूवी इंडस्ट्री, कैसे दादा फाल्के बने फिल्मी दुनिया के 'पितामह?' पढ़ें किस्सा

दादा साहेब फाल्के। नासिक में पैदा हुए संस्कृत के विद्वान, जिन्हें खुद नहीं पता था कि वे इतनी बड़ी किवदंति बन जाएंगे। क्या है उनकी कहानी, आइए जानते हैं।

Dada Saheb Phalke

भारतीय फिल्म जगत के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के. (फोटो क्रेडिट- NFAI)

भारतीय सिनेमा में काम करने वाला शायद ही कोई ऐसा कलाकार हो जिसे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार हासिल करने की तमन्ना न हो। कौन हैं ये फाल्के, जिनके नाम पर पुरस्कार बंटते हैं और जिसे हासिल कर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी ऋणि महसूस करते हैं। अगर इनके बारे में नहीं जानते तो पहले इनकी कहानी समझ लीजिए। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाते हैं। उन्होंने ही आधिकारिक तौर पर दर्ज, भारत की पहली फीचर फिल्म बनाई थी। यह एक मूक फिल्म थी।

 

जिस जमाने में सिनेमा कोई जादुई दुनिया थी, उस जमाने में दादा साहेब फाल्के ने एक ऐसी दुनिया की नींव रखी, जिसे हिंदुस्तान सदियों नहीं भुला पाएगा। 30 अप्रैल 1870 को जन्मे दादा साहेब फाल्के का जन्म गोविंद सदाशिव और द्वारकाबाई के घर महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ। गोविंद सदाशिव मंदिर में पुजारी थे और संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। उन्हीं के घर जन्मे धुंधिराज गोविंद फाल्के। उनके 6 भाई बहन थे। 


एक कैमरे ने बदल दी दादा फाल्के की दुनिया
त्रंबकेश्वर से प्राइमरी की पढ़ाई करने के बाद वे 1885 में जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, बॉम्बे पहुंच गए। उन्होंने चित्रकारी में दाखिला लिया, फिर वे कला भवन चले गए। वहां से महाराजा सायाजीवार विश्वविद्यालय बड़ोदरा पहुंच गए। उन्होंने वहीं इंजीनियरिंग, ड्राइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी की पढ़ाई की। पहली बार यहीं उन्होंने एक कैमरा खरीदा और उसके बाद उनकी पूरी दुनिया बदल गई।

कैसे पड़ी पहली फिल्म की नींव?
दादा साहेब फाल्के प्रयोगधर्मी थे। उन्होंने गोधरा और गुजरात में जमकर कलाकारी दिखाई और फिर भारतीय पुरातत्व विभाग में ड्राफ्ट्समैन के तौर पर काम करने लगे। उन्होंने चित्रकार राजा रवि वर्मा के साथ भी काम किया। उन्होंने जब पहली बार अंग्रेजी सिनेमा 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी तो उनका मन हुआ वे भी हिंदुस्तानी देवी-देवताओं और पौराणिक मान्यताओं पर फिल्म बनाएंगे। यहीं से भारतीय सिनेमा की नींव पड़ी। 

इन फिल्मों को बना चुके थे दादा फाल्के
दादा साहेब फाल्के फिल्म मेकिंग सीखने साल 1912 में ब्रिटेन गए थे। उन्होंने सेसिल हेपवर्थ से फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग ली। वे अपने जमाने के जाने-माने फिल्मकार थे। दादा साहेब फाल्के ने उधार लेकर देश की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई। यह फिल्म 1912 में बन गई लेकिन प्रदर्शन पहली बार 3 मई 1913 को हुआ। 1913 में उन्होंने मोहिनी भस्मासुर, 1914 में सत्यवान सावित्री, 1917 में लंगा दहन, 1918 में श्रीकृष्ण जन्म और साल 1919 में कालिया मर्दन जैसी फिल्में बनाईं। 

क्या थी दादा साहेब की आखिरी फिल्म?
दादा साहेब फाल्के ने पहली बार हिंदुस्तान सिनेमा फिल्म्स कंपनी बनाई। उनका साथ 5 उद्योगपतियों ने दिया। उन्होंने फिर फाल्के डायमंड कंपनी बनाई। उन्होंने मॉडल स्टूडियो बनाया। उन्होंने टेक्नीशियंस को ट्रेनिंग दी। उन्होंने सेतुबंधन नाम की एक आखिरी साइलेंट फिल्म 1932 में बनाई थी। साल 1937 में उन्होंने गंगावर्तन नाम से फिल्म बनाई। यह बोलती फिल्म थी। 16 फरवरी 1944 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

कैसे बन गए सिनेमा के पितामह?

दादा साहेब फाल्के के नाम से भारत सरकार ने 1969 में पुरस्कार देना शुरू किया। यह पुरस्कार राष्ट्रपति देते हैं। इसमें विजेता को एक शॉल, स्वर्ण कमल और 10 लाख रुपये से सम्मानित किया जाता है। आज का सिनेमा जैसा नजर आता है, उसकी नींव दादा साहेब फाल्के ने रखा है। उन्होंने अपने जीवनकाल में दादा साहेब फाल्के ने कई शॉर्ट और फिचर फिल्में बनाईं।भारतीय सिनेमा उनका हमेशा ऋणी रहेगा। 

 

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