'पंचायत 4' में नानाजी को नहीं पहचान पाए लोग, महारथी हैं राम गोपाल बजाज
'पंचायत 4' में फुलेरा गांव की प्रधान मंजू देवी के पिता की एंट्री हुई। सीरीज में उन्होंने 10 मिनट के किरदार से लोगों का दिल जीत लिया। क्या आप पहचान पाए कौन हैं रिंकी के नानाजी?

राम गोपाल बजाज
'पंचायत' वेब सीरीज को दर्शकों ने खूब पसंद किया है। सीरीज की कहानी गांव की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस सीरीज के हर किरदार ने दर्शकों के दिलों में अपनी अलग पहचान बनाई है। हाल ही में इसका चौथा सीजन रिलीज हुआ है। सीरीज के चौथे सीजन में मंजू देवी के पिता के नए किरदार ने दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने सीरीज में महज 10 मिनट का किरदार निभाया है। उनकी खूब चर्चा हुई। मंजू देवी के पिता को ज्यादातर लोग नहीं पहचान पाए।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सीरीज में मंजू देवी के पिता यानी रिंकी के नाना, असल में मशहूर थिएटर आर्टिस्ट और निर्देशक हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी को उन्होंने ऐक्टिंग सिखाई है। फुलेरा गांव के प्रधान मंजू देवी के पिता का किरदार निभाने वाले शख्स का नाम राम गोपाल बजाज है। आइए उनके बारे में जानते हैं...
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10 मिनट में दिखाया जलवा
राम गोपाल बजाज ने 'पंचायत 4' में छोटा सा रोल किया था। उन्होंने एक सीन में कहा था कि प्रधान गांव के लिए नहीं अपने फायदे के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने सचिव जी को न्यूट्रल रहने की सलाह दी थी। यही सीरीज का क्लाइमेक्स था कि प्रधान जी चुनाव हार जाते हैं क्योंकि उन्होंने लोगों के लिए कोई काम नहीं किया। सीरीज में उनका डॉयलॉग था, 'आशीर्वाद कोई जादू टोना थोड़ी ना है जैसी करनी वैसी भरनी, जो जैसा करेगा वैसा फल पाएगा। घर तोड़ने वाले को सबकुछ मिल सकता है लेकिन शांति नहीं।'
रिंकी के नाना के रूप में राम गोपाल बजाज ने न सिर्फ कहानी को एक जबरदस्त पकड़ दी बल्कि अपनी ऐक्टिंग से भी हर किसी को प्रभावित किया। वह एक ऐसे बूढ़े के रूप में इस वेब सीरीज में आए हैं जो ठीक से चल भी नहीं पाता है और उसे बाइक पर बैठने तक में दिक्कत होती है। डायलॉग डिलीवरी हो, हावभाव हो या फिर स्क्रिप्ट के मुताबिक, खुद को ढालना, राम गोपाल बजाज ने अपने छोटे से रोल में भी जान फूंक दी है।
कौन हैं राम गोपाल बजाज?
राम गोपाल बजाज का जन्म 5 मार्च 1940 को बिहार के सहरसा में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1984 में फिल्म 'उत्सव' से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की थी। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में काम किया है जिसमें 'मासूम' (1983), 'हिप हिप हुर्रे' (1984), 'मिर्च मसाला' (1985), 'चांदनी' (1989) हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी (2003), सरफरोश (1999), पिंजर (2003), तलवार (2015) का नाम शामिल है। उनके काम को पहचान फिल्म 'परिजानिया' से मिली थी। वह हॉलीवुड स्टार जैकी चैन की फिल्म 'द मिथ' में नजर आए थे। 'जॉली एलएलबी 2' में वह वकील रिजवी साहब के रोल में नजर आए थे।
राम गोपाल बजाज के प्रसिद्ध नाटक
उन्होंने 'सूर्या की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक' (1974), 'आषाद का एक दिन' (1992), 'आधे अधूरे', 'मुक्तधारा', 'अंधायुग' समेत कई प्ले का निर्देशन किया है। 'घासीराम कोतवाल' में उन्होंने नाना फणडवीस का किरदार निभाया था जो उनके करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
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पटना आकाशवाणी से शुरू हुआ था करियर
राम गोपाल बजाज ने पटना विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद हिंदी में एम.ए कर रहे थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था, 'कॉलेज के दूसरे साल में मैंने एक दिन ऐसे ही सोचा कि पटना आकाशवाणी घूम आता हूं। मैं पटना आकाशवाणी देखने गया था। वहां मुझ से रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति ने मेरा नाम पूछा और कहा कि क्या करते हो? मैंने उन्हें बताया कि मैं छात्र हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि क्या तुम अनाउंसमेंट करोगे? तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है। हम तुम्हें सब सिखाएंगे।1960-1961 में पटना आकाशावणी में अनाउंसर हो गया। उसके बाद मैंने उनके लिए कई नाटकों में काम किया। इसी दौरान मुझे एनएसडी के बारे में पता चला। इससे पहले मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था।' राम गोपाल बजाज ने साल 1965 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रेजुएशन किया और बाद में इसी संस्थान के डायरेक्टर भी बने। उनका कार्यकाल 1995 से 2001 तक था।
कई मशहूर कलाकारों को सिखाई ऐक्टिंग
राम गोपाल बजाज को ऐक्टिंग का गुरू माना जाता है। उन्होंने दिवंगत अभिनेता इरफान खान, पकंज त्रिपाठी, राजपाल यादव, पीयूष मिश्रा, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत कई कलाकारों को ऐक्टिंग सिखाई हैं। इन कलाकारों के साथ कई नाटकों का निर्देशन भी किया है। उन्हें कॉलेज में साथ के लोग बज्जू दा बुलाते थे। फिर वह कॉलेज के छात्रों के लिए बज्जू दा से बज्जू भाई हो गए।
द लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, 'सीमा बिस्वास ऐक्टिंग सीखने के लिए एनएसडी आई थीं। वह असम की थीं तो उन्हें हिंदी बोलने में बहुत दिक्कत होती थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं अपनी हिंदी की स्पीच कैसे ठीक करूं। मैंने सीमा से कहा कि वर्णमाला का बोर्ड लेकर आओ। हमेशा अक्षरों को इर्रेगुलर सीक्वेंस में पढ़ें जैसे कि क, ख, ग, घ की जगह घ, ग,ख, क उसी तरह नंबर को 1,2,3, 4 की बजाय 4,3,2,1 क्योंकि शब्दों में कभी भी सीक्वेंस नहीं आता है। आप स्पीच पढ़ते समय व्यंजनों को पकड़िए क्योंकि वह मुश्किल है, स्वर तो बोलना आसान है। उन्होंने कहा कि व्यंजनों की वजह से ही भाषा बनी है। बिना व्यंजनों के तो कुछ भी नहीं है।'
2003 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। उन्हें रंगमच में अहम योगदान देने के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका हैं। वह आज भी फिल्मों और ओटीटी में सक्रिय हैं और कई दिग्गज कलाकार आज भी उनसे ऐक्टिंग के टिप्स लेते हैं या उनके नाटक में काम करके अपनी कला को बेहतर बनाते हैं।
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