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जाकिर हुसैन कैसे बनवाते थे तबला? पढ़ें दिलचस्प किस्सा

जाकिर हुसैन के तबले की आवाज सुनकर दर्शक अलग दुनिया में पहुंच जाते थे। आप जानते हैं वो अपने तबले को लेकर बहुत सारी बातों का ध्यान रखते थे।

zakir hussain

जाकिर हुसैन (क्रेडिट इमेज- पीटीआई)

देश के मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन ने 73 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। वह पिछले दो हफ्ते से अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें इडियो पैथिक पलमनरी फाइबरोसिस बीमारी थे। उनके निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर है। अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन, कमल हासन, अनुपम खेर, दीया मिर्जा, करीना कपूर, रणवीर सिंह समेत तमाम सितारोंं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। जाकिर के निधन से उनके लिए तबला बनाने वाले हरिदास वटकर को गहरा धक्का लगा है। उन्होंने कहा, 'मैंने सबसे पहले उनके (जाकिर हुसैन) के पिता अल्ला रक्खा के लिए तबले बनाना शुरू किया और 1998 से जाकिर हुसैन साहब के लिए तबले बना रहा था।'

 

मुंबई के कांजुर मार्ग स्थित अपनी कार्यशाला से बातचीत के दौरान वटकर ने कहा कि उनकी 73 वर्षीय तबला वादक से आखिरी मुलाकात इसी वर्ष अगस्त में मुंबई में हुई थी। उन्होंने ने कहा, 'वह गुरु पूर्णिमा का दिन था। मैं उनसे एक हॉल में मिला था, जहां उनके बहुत से प्रशंसक भी मौजूद थे। इसके अगले दिन मैं नेपियन सी रोड के नजदीक शिमला हाउस को-ऑपरेटिव सोसाइटी में उनके घर गया। यहां मेरी उनसे काफी देर तक बातचीत हुई।

 

तबले की ध्वनि को लेकर सजग थे जाकिर

 

वटकर अपने परिवार से आने वाले तीसरी पीढ़ी के तबला बनाने वाले हैं। उन्होंने बताया कि 'जाकिर इस बात को लेकर बहुत सजग रहते थे कि उनको कब और कैसा तबला चाहिए। वे  तबले से निकलने वाली आवाज को लेकर भी बहुत महत्व देते हैं। जब उनसे पूछा गया कि पिछले दो दशकों में उन्होंने जाकिर हुसैन के लिए कितने तबले बनाए हैं, तो वटकर ने जवाब दिया, 'अनगिनत।'

 

कैसा था जाकिर का तबला बनाने वाले से रिश्ता

 

वटकर ने कहा, ' मैं उनके लिए नए तबले तो बनाता ही था। साथ ही उनके संग्रह के तबलों की मरम्मत भी करता था।' तबला निर्माता ने आगे कहा, 'मैंने उनके लिए तबले बनाए और उन्होंने मेरी जिदगी बना दी।' यह पूछे जाने पर कि क्या वह और जाकिर हुसैन नियमित संपर्क में थे वटकर ने कहा, 'नियमित तो नहीं। जब उस्ताद को जरूरत होती थी तब वे मुझे नए तबले और कुछ पुराने वाद्ययंत्रों की मरम्मत के लिए फोन करते थे।'

 

हरिदास ने अपने बाबा केराप्पा रामचंद्र वटकर और पिता रामचंद्र वटकर के पद चिह्नों पर चलकर तबला बनाने की कला सीखी है। उन्होंने कहा, 'हमारी बातचीत महीनों के अंतराल के बाद होती थी और यह ऐसी बातचीत नहीं थी जिसे आप सामान्य बातचीत कहें।

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