मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन ने 73 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार थे। उनका इलाज सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में चल रहा था। उनके निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर है। वह अपने समय के बहेतरीन तबला वादक थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी शुरुआत बतौर तबलावादक कैसे हुई थी। जाकिन हुसैन ने आठ साल पहले बताया था कि कैसे उनके पिता अल्ला रक्खा ने प्रार्थना की जगह म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की लय उनके कानों में डालकर इस दुनिया में स्वागत किया था। उन्होंने बताया था कि जन्म के बाद पहली बार मेरे पिता ने मुझे अपनी गोद में उठाया था। उनके पिता भी बेहतरीन तबला वादक थे और मशहूर सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ शोज करते थे।
मुझे जब घर लाया गया तो उनकी गोद में डाल दिया गया। हमारे यहां परंपरा है कि पिता बच्चे की कान में कुछ अच्छे शब्द कहता है। उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठाया है और मेरे कान में तबले के लय को सुनाया था। मेरी मां ये देखकर हैरान हो गई।
पिता ने प्रार्थना नहीं सुनाई थी तबले की आवाज
उन्होंने कहा था, 'ये तुम क्या कर रहे हो। तुम्हें पता है ना कि प्रार्थना कहनी है ना कि रिदम्स'। उन्होंने जवाब में कहा यही मेरी प्रार्थना है। मैं इसी तरह से प्रार्थना करता हूं। मैं मां सरस्वती और भगवान गणेश का भक्त हूं। उन्होंने कहा कि मुझे ये ज्ञान मेरे शिक्षक से मिला और मैं ये अपने बेटे को दे रहा हूं। जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च को 1951 में मुंबई में हुआ था। उन्हें 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था।
तबले का करते थे बेहद सम्मान
अपने करियर की शुरुआत में जब वो ट्रेन से सफर करते थे तो उन्हें सीट नहीं मिलती थी। तब वह अखबार बिछाकर बैठते और सो जाते थे। उनके तबले में किसी का पैर ना लगे इसलिए वो उसे अपनी गोद में लेकर सोते थे। अपने इंटरव्यू में जाकिर ने बताया था कि जब वो 12 साल की उम्र के थे तब अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे उस कॉन्सर्ट में पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्ला खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महराज मौजूद थे। मैंने पहली बार स्टेज पर परफॉर्म किया और मुझे 5 रुपये मिले थे। मैंने अपनी जिंदगी में इतना पैसा कमाया। लेकिन वो 5 रुपये मेरे लिए बहुत मुल्यवान थे।