बांग्लादेश हाई कोर्ट ने बुधवार को पूर्व इस्कॉन संत चिन्मय कृष्ण दास को राजद्रोह के एक मामले में जमानत दे दी है। द डेली स्टार ने इस बात की जानकारी दी। पिछले साल 30 अक्टूबर को चटगांव में उनके और 18 अन्य लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज होने के बाद काफी विवाद उठ खड़ा हुआ था जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। आरोप था कि उन्होंने पिछले साल 25 अक्टूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में एक भगवा झंडे को बांग्लादेश के झंडे के ऊपर रखा था।
दास को मंगलवार को चटगांव के एक कोर्ट के सामने पेश किया गया था जहां पर उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था और उन्हें हिरासत में भेज दिया गया था। गिरफ्तारी के बाद पूरे बांग्लादेश ही नहीं बल्कि भारत में भी इसका भारी विरोध देखने को मिला था।
यह भी पढ़ेंः आधे घंटे तक की सुनवाई, फिर खारिज कर दी चिन्मय दास की जमानत याचिका
कौन हैं चिन्मय कृष्ण दास
चिन्मय कृष्ण दास बांग्लादेश सम्मिलिता सनातनी जागरण जोते के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं। यह एक ऐसा समूह है जो बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए काम करता है। वह बांग्लादेश में हिंदू (सनातनी) समुदाय के मुखर समर्थक रहे हैं, उन्होंने अल्पसंख्यक संरक्षण कानून, अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मामलों को तेजी से निपटाने के लिए न्यायाधिकरण और अल्पसंख्यक मामलों के लिए एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना जैसे प्रमुख सुधारों की मांग की है।
उन्होंने 25 अक्टूबर को चटगांव में और 22 नवंबर को रंगपुर में एक बड़ी सार्वजनिक रैलियों का आयोजन करके पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस घटना ने पूरे देश में महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया।
दास चटगांव के सतकानिया उपजिला से हैं। 2016 से 2022 तक, वह इस्कॉन के चटगांव मंडल के सचिव थे। बांग्लादेशी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, उनके धार्मिक भाषणों की वजह से उन्हें कम उम्र में ही लोकप्रियता मिल गई थी और उन्हें ‘शिशु बोक्ता’ या ‘शिशु वक्ता’ कहा जाने लगा था।
धार्मिक स्थलों में हुई थी तोड़फोड़
दरअसल बांग्लादेश में शेख हसीना को अपदस्थ किए जाने के बाद से ही अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की घटनाएं सामने आने लगीं। इस दौरान हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के तमाम धार्मिक स्थलों पर हमले हुए और हिंदू महिलाओं के साथ भी बलात्कार और हत्याओं की भी खबरें मीडिया में आईं। इसी को लेकर चिन्मय कृष्ण दास काफी मुखर रहे और इसके खिलाफ आवाज उठाई।
यह भी पढ़ेंः बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर 88 हमले, अंतरिम सरकार ने गिनाए आंकड़े
भारत-बांग्लादेश रिश्तों में आई खटास
हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार को भारत ने काफी गंभीरता से लिया और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को इसे रोकने के लिए कहा। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बांग्लादेश की यात्रा भी की, लेकिन हालत में कुछ सुधार नहीं हुआ। इसके अलावा बांग्लादेश ने चीन से हाथ मिलाने के साथ भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की जिसके बाद भारत और बांग्लादेश के संबंधों में थोडी खटास आ गई।
हालांकि, थाईलैंड में हुई बिम्सटेक की मीटिंग में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की अंतिरम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात की थी, लेकिन इससे भी कोई सार्थक हल नहीं निकला।