न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत की ओर से शिरकत की। उन्होंने यहां कई मुद्दों पर दुनिया के देशों का ध्यान खींचा। इस दौरान पाकिस्तान को आतंकवाद पर घेरने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में बड़े सुधारों की जरूरतों पर जोर दिया। उन्होंने भारत की ओर से बोलते हुए कहा कि भारत दुनिया में बड़ी जिम्मेदारी उठाने को तैयार है। विदेश मंत्री ने कहा कि अब समय आ गया है कि UNSC को नए सिरे से आकार दिया जाए ताकि यह वास्तव में दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाला बन सके। यहां उन्होंने सीधे तौर पर स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी पर जोर दिया।
2025 में यूएन के 80वें सेशन में संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधारों की मांगें मुख्य रूप से UNSC की संरचना, वैश्विक प्रतिनिधित्व और प्रभाव पर केंद्रित हैं। ये मांगें दूसरे विश्व युद्ध के बाद की पुरानी व्यवस्था को आज की वास्तविकताओं के अनुरूप बनाने पर जोर देते हैं। प्रमुख सुधारों में स्थायी सदस्यता का विस्तार, वीटो शक्ति पर सीमाएं, और ग्लोबल साउथ के लिए अधिक प्रतिनिधित्व शामिल हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के देशों पर बराबर का दायित्व होना।
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आखिर ऐसा क्या है कि बार-बार सुधार की मांग उठ रही है, विस्तार से समझते हैं-
1. UNSC की संरचना में असमानता
अभी UNSC में पांच स्थाई सदस्य (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस) के पास ही केवल वीटो शक्ति है जिसके कारण यह किसी भी प्रस्ताव को रोक लेने में कारगर होते हैं। यह वीटो पॉवर अक्सर दुनिया के मुद्दों पर निर्णय लेने में बाधा डालती है। भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान (G4 देश), और अफ्रीकी देश स्थायी सीटों की मांग करते हैं, ताकि वैश्विक शक्ति संतुलन को बेहतर ढंग से दर्शाया जा सके। UNSC की संरचना 1945 की भू-राजनीतिक स्थिति पर आधारित है।
2. वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अक्षम
जलवायु परिवर्तन, साइबर युद्ध, आतंकवाद, महामारी, और शरणार्थी संकट जैसे मुद्दों पर UN की प्रक्रिया धीमी रही है। उदाहरण के लिए, COVID-19 महामारी के समय विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की प्रक्रिया पर सवाल उठे थे। वीटो शक्ति के कारण UN में तुरंत निर्णय लेना मुश्किल होता है, जिससे संकटों में प्रभावी दखलंदाजी नहीं हो पाता। UN शांति मिशन अक्सर पैसों की कमी के कारण इन कामों को पूरा करने में असमर्थ रहते हैं जैसे साउथ सूडान या कांगो में।
3. वित्तीय और प्रशासनिक समस्याएं
UN का बजट मुख्य रूप से कुछ देशों (जैसे अमेरिका, जो 22% योगदान देता है) पर निर्भर है। कई देश समय पर योगदान नहीं देते, जिससे संगठन के काम पर असर पड़ता है। ऊपर से UN की जटिल प्रशासनिक संरचना और नौकरशाही निर्णय प्रक्रिया को और धीमा करती है। कुछ UN मिशनों और एजेंसियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जैसे शांति मिशनों में यौन शोषण के मामले।
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4. उभरते देशों की बढ़ती मांग
भारत, UN शांति मिशनों में सबसे बड़े सैनिक योगदानकर्ताओं में से एक है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (PPP के आधार पर), UNSC में स्थायी सीट की मांग करता है। भारत का तर्क है कि उसका आर्थिक, सैन्य, और जनसंख्या का प्रभाव उसे वैश्विक शासन में बड़ी जिम्मेदारी देता है। G4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान) और अफ्रीकी देश सुधारों की वकालत करते हैं, ताकि उनकी आवाज को अधिक महत्व मिले। ग्लोबल साउथ का मानना है कि UN की नीतियां अक्सर पश्चिमी देशों के हितों को प्राथमिकता देती हैं, जैसे व्यापार और पर्यावरण नियमों में।
5. मानवाधिकार और निगरानी पर सवाल
UN मानवाधिकार परिषद (UNHRC) पर पक्षपात से भरे कार्रवाई के आरोप लगते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ देशों (जैसे इजराइल) पर अधिक ध्यान और अन्य (जैसे चीन) पर कम कार्रवाई की शिकायतें हैं। इजराइल जैसे देशों द्वारा पेगासस और Azure जैसे उपकरणों का उपयोग, जिनका संबंध UN के कुछ क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन से जोड़ा गया, ने संगठन की निगरानी प्रणाली पर सवाल उठाए हैं। UN की निगरानी तंत्र को और प्रभावी करने की मांग होती है।
6. वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव
चीन और रूस UN में अपने प्रभाव का उपयोग वैश्विक नीतियों को आकार देने के लिए करते हैं, जो पश्चिमी देशों के हितों से टकराता है। यह शक्ति संतुलन सुधारों की जरूरतों पर दबाव देता है। भारत, ब्राजील, और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश वैश्विक शासन में अपनी भूमिका बढ़ाने की मांग करते हैं, जो UN की वर्तमान संरचना में संभव नहीं है। अफ्रीकी संघ और ASEAN जैसे संगठन UN में अधिक प्रतिनिधित्व चाहते हैं।
भारत UN सुधारों का प्रमुख समर्थक है। UNSC में स्थायी सीट की मांग करता है। 2025 में भी भारत ने कई देशों के साथ मिलकर सुधारों के लिए प्रस्ताव पेश किए।